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भगवान शिव को प्यारा सावन मास

(पं. आर.एस. द्विवेदी-हिफी फीचर)

हिंदू धर्म में सावन मास को बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है। सावन के महीने में भगवान शिव की भक्ति का विशेष महत्व है। इस महीने को कई जगहों पर पर्व के रूप में मनाया जाता है। मान्यता है कि सावन के महीने में भगवान शिव की उपासना करने से जीवन में सुख एवं समृद्धि की प्राप्ति होती है और सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं। शास्त्रों में यह भी बताया गया है कि सावन का महीना भगवान शिव को अति प्रिय है। इस वर्ष 4 जुलाई से सावन मास का शुभारंभ हो रहा है और अधिक मास के कारण यह 2 महीने का होगा। ऐसे में भगवान शिव की भक्ति के लिए 2 महीने का समय मिलेगा।
शास्त्रों में बताया गया है भगवान शिव को सावन का महीना अति प्रिय है। ऐसा इसलिए क्योंकि पर्वतराज हिमालय की पुत्री माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए सावन के महीने में कठोर तपस्या की और इससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनकी यह मनोकामना पूर्ति का आशीर्वाद दिया था। इसलिए मान्यता है कि सावन के महीने में भगवान शिव की उपासना करने से वह आसानी से प्रसन्न हो जाते हैं।
एक कथा यह भी प्रचलित है कि भगवान शिव सावन के महीने में धरती पर आकर अपने ससुराल जाते हैं। जहां उनका स्वागत किया जाता है। इसलिए उनके स्वागत के लिए शिव भक्त जलाभिषेक अथवा रुद्राभिषेक करते हैं।
धार्मिक ग्रंथों में बताया गया है कि सावन मास में ही देवता और असुरों द्वारा समुद्र मंथन किया गया था। जिसमें हलाहल विष विश भी निकला था। यह ऐसा विष था जिससे पूरे सृष्टि को सर्वनाश निश्चित था। इसलिए संसार के उत्थान के लिए भगवान शिव ने स्वयं उस विष को कंठ में धारण कर लिया था। इसलिए उन्हें नीलकंठ के नाम से भी जाना जाता है। सभी देवताओं ने विष के वेग को कम करने के लिए शिवजी पर जल का अभिषेक किया था। यही कारण है कि सावन के महीने में भगवान शिव का जलाभिषेक करने से, वह जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं भक्तों की सभी प्रार्थना सुनते हैं।
श्रावण मास वर्षा एवं हरियाली का समय होता है और यह अति मनमोहक समय होता है। श्रावण मास का प्रत्येक दिन महत्वपूर्ण है, लेकिन श्रावण मास में सोमवार का विशेष फल है। श्रावण मास में भगवान भोलेनाथ का पूजन-अर्चन करने तथा जलाभिषेक, रुद्राभिषेक, जप इत्यादि का विशेष फल है। कहा जाता है कि इस महीने में भगवान भोलेनाथ की कृपा से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इस श्रावण मास में रामचरित मानस एवं राम नाम संकिर्तन का विशेष महत्व है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार श्रावण के महीने में माता पार्वती ने तपस्या करके भोलेनाथ को प्रसन्न किया था और उन्हें पति रूप में प्राप्त किया था। इसलिए भी भगवान भोले नाथ को यह मास अत्यधिक प्रिय है।
पुराणों के अनुसार इस महीने में श्रवण नक्षत्र वाली पूर्णिमा आती है जिसके नाम पर इस महीने का नाम ‘श्रावण’ पड़ा। हिन्दू पंचांग या हिन्दू कैलेण्डर के अनुसार वर्ष का पांचवा महीना सावन का महीना होता है। हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार सावन का महीना हिन्दुओं का सबसे पवित्र महीना होता है। इस महीने से हिन्दुओं की धार्मिक भावनाएं और आस्था जुड़ी होती हैं। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह महीना प्रत्येक वर्ष जुलाई से अगस्त के बीच में पड़ता है।
इस महीने में हिन्दू भगवान शिव की पूजा आराधना करते हैं। इसे भगवान शंकर का महीना भी कहते हैं। यह पूरा महीना भक्तिमय गीतों और धार्मिक माहौल का होता है। हिन्दू देवी-देवताओं के मंदिरों में दर्शनार्थियों की भीड़ लगी रहती है। इस माह के खास दिनों पर हिन्दू उपवास रखते हैं और पूरे महीने शुद्ध व शाकाहारी भोजन करते हैं।
सावन का महीना केवल भक्ति के लिए ही प्रसिद्ध नहीं है बल्कि इस महीने में कई महत्वपूर्ण हिन्दू त्यौहार भी पड़ते हैं। यह भी एक कारण है जिसके लिए हिन्दू धर्म में सावन महीने की मान्यता इतनी अधिक है। श्रावण महीने में मनाये जाने वाले मुख्य हिन्दू त्यौहारों में रक्षाबंधन, नाग पंचमी और हरियाली तीज है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का महोत्सव सावन महीने की पूर्णिमा के 7 दिन के बाद अष्टमी के दिन मनाया जाता है।
सावन का महीना लोगों को ईश्वर से जुड़ने का और भगवान की भक्ति के लिए सबसे उत्तम है। हर तरफ मंदिरों में लोगों की भीड़, भजन-कीर्तन की आवाज, मंत्रोच्चारण और बड़े-बड़े मेलों का आयोजन इस माह की महत्वता को और भी बढ़ा देता है। सावन के माह में महिलाएं उपवास रखती हैं और अपने परिवार के स्वस्थ रहने की कामना करती हैं। भक्तों की सबसे ज्यादा भीड़ सावन के महीने में ही लगती है। भारत में प्रसिद्ध भगवन शिव के भक्तों द्वारा किए जाने वाला कांवड़ यात्रा भी सावन के महीने में ही किया जाता है।
सावन का महीना किसानों के लिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी समय किसान कई प्रकार के अनाज, सब्जी और फूल आदि की बुआई करते हैं। धान, मक्का, ज्वार, बाजरा, सूरजमुखी और कई प्रकार की सब्जी आदि की बुआई सावन के महीने में किया जाता है। कहने को सावन का महीना एक हिन्दू भक्ति महीना होता है परन्तु सावन का यह महीना सभी के लिए राहत का महीना होता है। अप्रैल से जून तक की भीषण गर्मी से मनुष्य और जीव दोनों त्रस्त हो जाते है, पेड़-पौधे, नदी, नहर, तालाब और कुएं आदि सुख जाते हैं और कई स्थानों पर तो सूखे जैसे हालात बन जाते है जो लोगों को बदहाल कर देता है। सावन के महीने में होने वाली तेज बारिश पृथ्वी के इस बदहाल वातावरण में नई जान देता है और हर तरफ खुशी की एक नई लहर दिखने लगती है।
दूसरी मान्यता के अनुसार समुद्र मन्थन के समय समुद्र से निकले हलाहल विष को भगवान भोलेनाथ अपने गले में धारण किया, जिससे उनके गले में हो रही जलन को शांत करने के लिए सभी देवताओं ने मिलकर भगवान शिव का जलाभिषेक किया। इससे उनको उस हलाहल विष के प्रभाव से शांति मिली और वह प्रसन्न हुए। तब से भगवान शिव को जलाभिषेक करने का विशेष महत्व है।
कुंवारी कन्याएं अच्छे पति को प्राप्त करने के लिए सोमवार व्रत करती हैं। जो भक्त जिस कामना को लेकर भोलेनाथ के दरबार में जाता है और श्रद्धा से पूजन-पाठ करता है, उसकी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। ज्योतिष के दृष्टिकोण से श्रावण मास में सूर्य राशि परिवर्तन करते हैं, जिसका प्रभाव सभी 12 राशियों पर पड़ता है। श्रावण मास में भोलेनाथ और माता जी की असीम अनुकंपा रहती है। (हिफी)

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