विश्व-लोक

ह्वाइट हाउस की सुरंगों पर परमाणु बम भी बेअसर

मध्य काल में भारत से लेकर यूरोप तक राजा, महाराजाओं और शासकों ने अपने किलों में बड़े पैमाने पर सुरंगों का निर्माण कराया था ताकि संकट के समय वह उसके जरिए ऐसी जगह भाग सकें, जहां महफूज रहें। अगर किले पर किसी तरह का हमला हो भी जाए तो उन्हें बचने का मौका मिले। इसलिए खुफिया सुरंगें दुनिया के हर कोने में मिलती हैं। व्हाइट हाउस में भी कई सुरंगें हैं जो आपातकाल में प्रेसीडेंट, उनके परिवार और व्हाइट हाउस स्टाफ को सुरक्षित बाहर ले जा सकती हैं। इसकी किसी को कानोंकान खबर भी नहीं होगी। एसोसिएटेड प्रेस के मुताबिक निर्माण कार्य को पूरी तरह से गुप्त रखा गया। कामगारों के फोन तक टैप होते रहे। यहां के सीक्रेट बंकर की दीवार इतने मोटे कंक्रीट की बनी है कि उसपर परमाणु बम और किसी भी रेडिएशन का असर नहीं हो सकता है। साथ ही ऐसी व्यवस्था है कि जमीन के भीतर होने के बाद भी बंकर और सुरंगों में पर्याप्त ऑक्सीजन आती-जाती रहे। सिएटल टाइम्स के अनुसार भीतर इतना खाना हरदम रखा रहता है जो आपात हालात में कई महीने चल सकता है।
जब सुरंगें नहीं बनी थीं, तब से ही इसे लेकर अमेरिकी पत्रकारों के बीच तमाम बातें कही जाने लगीं थीं। साल 1930 में ये बातें जोरों पर थीं। हालांकि तब ऐसी कोई सुरंग व्हाइट हाउस में नहीं थी लेकिन साल 1941 में पर्ल हार्बर अटैक के बाद वास्तव में इसके निर्माण की जरूरत महसूस की गई। काम भी शुरू हो गया। सुरंगों का बनना साल 1950 में तत्कालीन प्रेसिडेंट हैरी एस ट्रूमैन के कार्यकाल में शुरू हुआ। तब लगभग डेढ़ सौ साल पहले बने इस प्रेसीडेंट हाउस की हालत खस्ता होने लगी थी। उसकी दीवारों में जगह-जगह दरारें बनने लगीं। तय किया गया कि भवन को दोबारा बनाने की जरूरत है। तब प्रेसीडेंट ट्रूमैन पास के ही ब्लेयर हाउस में शिफ्ट हो गए। पूरे तीन सालों तक वहीं रहे। इस दौरान व्हाइट हाउस का निर्माण नए सिरे से हुआ। इसी बीच सेफ्टी को देखते हुए एक टनल भी तैयार हुई जो ईस्ट विंग को वेस्ट विंग से जोड़ती थी। इसके जरिए खुफिया बंकर तक पहुंचा जा सकता था।
साल 1987 में दूसरी सीक्रेट सुरंग तैयार हुई, तब यूएस के 40वें राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन हुआ करते थे। रीगन के कार्यकाल में लगातार बढ़ती आतंकी हमलों की धमकी के कारण ये सुरंग तैयार की गई।

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