गीता प्रेस पर कांग्रेस का बेतुका विरोध

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
सामाजिक उत्थान मंे गीता प्रेस गोरखपुर का जितना योगदान रहा है, उसे देखते हुए गांधी शांति पुरस्कार अल्पकृतज्ञता ही कही जाएगी। इसके बावजूद नरेन्द्र मोदी सरकार के संस्कृति मंत्रालय ने यह फैसला करके उन करोड़ों लोगों को खुशी प्रदान की है जो अपने घरों मंे रामचरित मानस, भगवद्गीता, हनुमान चालीसा और समय-समय पर किये जाने वाले व्रत-त्योहार जैसे करवा चौथ, हलषष्ठी, दीपावली पर लक्ष्मीपूजन, वृहस्पतिवार व्रत कथा, वैभव लक्ष्मी पूजन, सोलह सोमवार आदि व्रतों के विधान की पुस्तकें रखते हैं। गीता प्रेस के प्रकाशन कल्याण और उसके वार्षिक अंक तो आज भी संभालकर रखे मिल जाएंगे। इनको पढ़कर और सुनकर सामाजिक दायित्व निर्वहन की प्रेरणा मिलती है। आश्चर्य है कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश को गीता प्रेस गोरखपुर को गांधी शांति पुरस्कार देने पर आपत्ति क्यों है? यह उनकी संकीर्ण मानसिकता ही कही जाएगी। कांग्रेस के छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जहां अपने राज्य मंे राज्य की बेटी कौशल्या के जन्मस्थली का विकास कर रहे हैं और उनके बेटे और राज्य के भानजे मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के वनगमन स्थलों को पर्यटक स्थल के रूप में विकसित कर रहे हैं, तब श्रीराम के जीवन चरित्र को पुस्तकों के माध्यम से घर-घर पहुंचाने वाले गीता प्रेस गोरखपुर को सम्मानित करने से उनको कष्ट क्यों हो रहा है। अभ्युदय और प्रेरक साहित्य सबसे सस्ते दामों मंे प्रकाशित कर जन कल्याण करने वाले गीता प्रेस के गरिमामयी सौ वर्ष पूरे हो गये हैं और भारत भूमि अगर उसे सम्मानित कर रही है तो यह उसका स्वाभाविक अधिकार है।
वर्ष 2021 के लिए गांधी शांति पुरस्कार गीता प्रेस, गोरखपुर को प्रदान किया जाएगा। गीता प्रेस को यह पुरस्कार अहिंसक और अन्य गांधीवादी तरीकों से सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तन की दिशा में
उत्कृष्ट योगदान के लिए दिया जाएगा। संस्कृति मंत्रालय द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता वाली जूरी ने सर्वसम्मति से गीता प्रेस, गोरखपुर को गांधी शांति पुरस्कार के लिए चुनने का फैसला किया। बयान में कहा गया है कि प्रधानमंत्री मोदी ने शांति एवं सामाजिक सद्भाव के गांधीवादी आदर्शों को बढ़ावा देने में गीता प्रेस के योगदान को याद किया। बयान के अनुसार मोदी ने कहा कि गीता प्रेस को उसकी स्थापना के सौ साल पूरे होने पर गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित किया जाना संस्थान द्वारा सामुदायिक सेवा में किये गये कार्यों की पहचान है।
गीता प्रेस की शुरुआत वर्ष 1923 में हुई थी और यह दुनिया के सबसे बड़े प्रकाशकों में से एक है, जिसने 14 भाषाओं में 41.7 करोड़ पुस्तकें प्रकाशित की हैं, जिनमें श्रीमद्भगवद्गीता की 16.21 करोड़ प्रतियां शामिल हैं।
गांधी शांति पुरस्कार एक वार्षिक पुरस्कार है, जिसकी शुरुआत सरकार ने 1995 में महात्मा गांधी की 125वीं जयंती के अवसर पर गांधी द्वारा प्रतिपादित आदर्शों को सम्मान देते हुए की थी। मंत्रालय ने कहा कि पुरस्कार किसी भी व्यक्ति को दिया जा सकता है चाहे उसकी राष्ट्रीयता, नस्ल, भाषा, जाति, पंथ या लिंग कोई भी हो। मंत्रालय ने कहा कि पुरस्कार में एक करोड़ रुपये, एक प्रशस्ति पत्र, एक पट्टिका और एक उत्कृष्ट पारंपरिक हस्तकला अथवा हथकरघा वस्तु शामिल है। हाल के समय में सुल्तान कबूस बिन सैद अल सैद, ओमान (2019) और बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान (2020), बांग्लादेश को यह पुरस्कार दिया गया है।
आश्चर्य है कि कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने गीता प्रेस, गोरखपुर को गांधी शांति पुरस्कार देने के फैसले की आलोचना की है। जयराम रमेश ने ट्वीट किया है- साल 2021 के लिए गांधी शांति पुरस्कार गोरखपुर के गीता प्रेस को प्रदान किया जा रहा है, जो कि अपना शताब्दी वर्ष मना रहा है। अक्षय मुकुल की 2015 में आई एक बहुत अच्छी जीवनी है। इसमें उन्होंने इस संगठन के महात्मा के साथ तूफानी संबंधों और राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक एजेंडे पर उनके साथ चली लड़ाइयों का खुलासा किया है। यह फैसला वास्तव में एक उपहास है और सावरकर और गोडसे को पुरस्कार देने जैसा है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गीता प्रेस को पुरस्कार के लिए चुने जाने के लिए बधाई दी और क्षेत्र में उसके योगदान की सराहना की। उन्होंने ट्वीट किया, ‘‘मैं गीता प्रेस, गोरखपुर को गांधी शांति पुरस्कार 2021 से सम्मानित किए जाने पर बधाई देता हूं। उन्होंने लोगों के बीच सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन को आगे बढ़ाने की दिशा में पिछले 100 वर्षों में सराहनीय कार्य किया है। गीता प्रेस के कुल प्रकाशनों की संख्या 1,600 है। इनमें से 780 प्रकाशन हिन्दी और संस्कृत में हैं। शेष प्रकाशन गुजराती, मराठी, तेलुगू, बांग्ला, उड़िया, तमिल, कन्नड़, अंग्रेजी और अन्य भारतीय भाषाओं में हैं। रामचरित मानस का प्रकाशन नेपाली भाषा में भी किया जाता है।बेहद कम मूल्य पर धार्मिक पुस्तकें मुहैया कराने के चलते दुनिया भर में मशहूर गोरखपुर के गीता प्रेस में सुबह-सवेरे जब कर्मचारी अपने-अपने कार्यस्थल पहुंच रहे होते हैं तो उससे आधा घंटे पहले ही प्रभारी राजाराम अपना काम शुरू कर चुके होते हैं। चतुर्भुज श्रीनारायण के चित्र वाली सुनहरे फ्रेम में जड़ी एक तस्वीर को साफ करके और उस पर फूल-माला चढ़ाकर फ्रेम में पीछे लगे लकड़ी के हत्थे को पकड़कर वे तकरीबन 80,000 वर्गफीट में फैले
प्रेस परिसर की यात्रा पर निकल
पड़ते हैं। फ्रेम में भगवान नारायण के चित्र के साथ ऊपर और नीचे दो बार ‘हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे, हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे’ तो लिखा ही है, प्रार्थना का एक निर्देश भी लिखा है- ‘थोड़ी-थोड़ी देर में कहते रहो- हे नाथ! हे मेरे नाथ! मैं आपको भूलूं नहीं!’
यह सिलसिला शाम 5 बजे तक चलता है। तब तक राजाराम प्रत्येक कर्मचारी को चार बार यह संकीर्तन सुना चुके होते हैं। दो बार भोजनावकाश से पहले और दो बार उसके बाद। दरअसल, गीता प्रेस में यह सिलसिला 96 साल से चला आ रहा है। यह परंपरा बन चुकी है। यहां वैसे भी प्रकाशन से लेकर विपणन और वितरण जैसे सभी कार्य परंपरा की धुन पर ही संचालित होते नजर आते हैं, चाहे वह सस्ते मूल्य में निर्दोष छपाई की परंपरा हो या फिर अपने प्रकाशनों में किसी किस्म का कोई विज्ञापन न छपने की परंपरा-सब कुछ वैसे ही प्रवाहमान है। पिछले कुछ दिनों से यहां बदलाव की एक शांत, लेकिन बेहद निर्णायक बयार बहती दिख रही है। इसमें पुरानी परंपराएं बदल तो नहीं रहीं, लेकिन अब उन्होंने आगे के सफर के लिए तकनीक के नए पंखों का इस्तेमाल शुरू कर दिया है। गीता प्रेस के नीतिनियामक ट्रस्ट के वरिष्ठ सदस्य बैजनाथ अग्रवाल इससे इनकार भी नहीं करते। अग्रवाल के मुताबिक, ‘किंडल जैसे माध्यमों पर जाने का एक और बड़ा मकसद यह भी है कि विदेश में रहने वाले भारतीय और भारत में रहने वाले किशोर और युवा मुद्रित पुस्तकों की तुलना में किंडल जैसे माध्यम पर अब ज्यादा समय बिताते हैं। ऐसे में सद्साहित्य के प्रचार-प्रसार के लिए उसे इन प्लैटफॉर्म पर ले जाना जरूरी हो गया है।’
गीता प्रेस के बारे में आमतौर पर कहा जाता रहा है कि वह हर साल अपने प्रकाशनों की बिक्री के रेकॉर्ड खुद ही तोड़ता रहता है। अपनी स्थापना से लेकर अब तक 68 करोड़ से अधिक पुस्तकें प्रकाशित कर चुके गीताप्रेस ने केवल बीते साल में ही श्रीमद्भाग्वद गीता की 48 लाख प्रतियां और श्री राम साहित्य की 35 लाख से ज्यादा प्रतियां प्रकाशित की हैं। (हिफी)