लेखक की कलम

मायावती की सफल होती रणनीति

बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की नेता और उत्तर प्रदेश की तीन बार मुख्यमंत्री रह चुकीं मायावती ने अपनी पार्टी को चुस्त-दुरुस्त बनाने का जिम्मा स्वयं संभाल रखा है। उन्हांेने कई बार कड़े फैसले लिये उनको पलटा भी लेकिन उनकी रणनीति है कि बसपा उत्तर प्रदेश के साथ ही अन्य राज्यों मंे भी सशक्त बने। इसका पहला परीक्षण बिहार विधानसभा चुनाव में हुआ था। इस चुनाव मंे मायावती ने विपक्षी महागठबंधन से दूर रहकर अपने दम पर चुनाव लड़ा। कैमूर जिले की रामगढ़ विधानसभा सीट पर बसपा प्रत्याशी सतीश कुमार सिंह यादव को विजयश्री भी प्राप्त हुई है। दलितों पर पूरी तरह भरोसा करने वाली मायावती ने अपने उम्मीदवार लोकप्रियता के आधार पर उतारे थे। यही कारण रहा कि रामगढ़ मंे यादव बिरादरी के सतीश कुमार सिंह को प्रत्याशी बनाया। उनकी रणनीति सफल रही। इसी प्रकार कई सीटों पर बसपा प्रत्याशियों ने दमदार उपस्थिति दर्ज करायी है। इस बार का विधानसभा चुनाव बिहार मंे एकतरफा रहा जहां सत्ता पक्ष को ही मतदाताओं ने आंख मूंद कर समर्थन किया है। प्रशांत किशोर जैसे चुनावी रणनीतिकार और बिहार को अपराधमुक्त करने का वादा करने वाले की पार्टी जनसुराज पार्टी को एक भी विधायक नहीं मिल पाया है। ऐसे मंे बसपा का प्रदर्शन सराहनीय माना जाएगा। बिहार मंे मिली सफलता से उत्तर प्रदेश मंे बसपा कार्यकर्ताओं का हौसला मजबूत हुआ है। ध्यान रहे कि 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव मंे बसपा को सिर्फ एक विधायक मिला है।
बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने बिहार में अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी है। हालांकि कहा कि अगर चुनाव पूरी तरह से स्वतंत्र और निष्पक्ष होते तो बसपा और सीट जरूर जीतती। मालूम हो कि बिहार विधानसभा चुनाव में कुल 243 सीट में बसपा को मात्र एक सीट पर जीत मिली है। बसपा प्रमुख मायावती ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, ‘मैं बिहार विधानसभा के हाल में हुए चुनाव में कैमूर जिले की रामगढ़ विधानसभा सीट पर बसपा के उम्मीदवार सतीश कुमार सिंह यादव को जीत दिलाने के लिये पार्टी के सभी सदस्यों को बधाई देती हूं तथा उनका तहेदिल से आभार प्रकट करती हूं।’ बिहार में सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने बिहार की 243 सदस्यीय विधानसभा के चुनाव में 202 सीट पर जीत दर्ज की। बिहार विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी 89 सीट जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। जनता दल यूनाइटेड ने 85 सीट जीतीं, जबकि केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान के नेतृत्व वाली लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) को 19 सीट मिलीं हैं।
मायावती ने कहा कि बिहार के प्रशासन एवं सभी विरोधी दलों ने ‘मतों की गिनती बार-बार कराने के बहाने बसपा उम्मीदवार को हराने’ का पूरा प्रयास किया लेकिन ‘पार्टी के बहादुर कार्यकर्ताओं के पूरे समय डटे रहने के कारण विरोधियों का यह षड्यंत्र सफल नहीं हो सका।’ उन्होंने एक्स पर कहा कि बिहार के इस क्षेत्र की अन्य सीट पर विरोधियों को कांटे की टक्कर देने के बावजूद बसपा उम्मीदवार चुनाव नहीं जीत सके जबकि अगर चुनाव पूरी तरह से स्वतंत्र एवं निष्पक्ष होता तो लोगों से मिली प्रतिक्रिया के अनुसार बसपा और भी कई सीट जरूर जीतती।’ उन्होंने अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं से कहा कि वे घबराए नहीं तथा आगे और भी अधिक तैयारी के साथ काम करें।बसपा प्रमुख ने विरोधी पार्टियों तथा राज्य प्रशासन पर उनके दल के उम्मीदवारों के खिलाफ साजिश करने का आरोप लगाते हुए अपने कार्यकर्ताओं को भविष्य के चुनावों के लिए सतर्क और सक्रिय रहने का आहृवान किया।
मायावती की पार्टी यूपी में पिछले 13 साल से सत्ता से बाहर है लेकिन उनकी पार्टी के वोटर यूपी, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में भी मिल जाएंगे। बिहार में रामगढ़ सीट पर बीएसपी की जीत से मायावती और उनके समर्थकों का उत्साह बढ़ा है। मायावती की पार्टी ने बिहार में 40 सीटों पर चुनाव लड़ा था। रामगढ़ सीट की बात करें तो यहां पिछले चुनाव में आरजेडी के सुधाकर सिंह जीते थे। उन्होंने 58,083 वोट पाकर जीत हासिल की थी। वहीं, बीएसपी के कैंडिडेट अंबिका सिंह 57,894 वोटों पर सिमट गए थे। वहीं, बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में ये सीट बीजेपी के पास थी। तब बीजेपी के प्रत्याशी अशोक कुमार सिंह ने जीती थी तब अंबिका सिंह आरजेडी के प्रत्याशी थे। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में मायावती की पार्टी बसपा का वोट शेयर 1.35 फीसदी दिख रहा है। ये चुनाव आयोग का आधिकारिक डेटा है। उत्तर प्रदेश की सियासत में बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती ने समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव के पीडीए (पिछड़े, दलित, अल्पसंख्यक) फॉर्मूले पर भरपूर निशाना साधा है। गुरुवार को बसपा के संस्थापक और दिवंगत नेता कांशीराम की पुण्यतिथि पर लखनऊ के कांशीराम स्मारक पर आयोजित महारैली में मायावती ने सपा पर तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा कि सपा सत्ता में रहते दलितों को भूल जाती है, लेकिन चुनावों के समय पीडीए का नारा लगाकर उनका वोट लूटने की कोशिश करती है। दरअसल, मायावती का यह बयान एक बड़ा संकेत था कि उनकी पार्टी बसपा अपने कोर वोट बैंक, खासकर जाटव समुदाय को अपने पाले में और मजबूती से करने की कोशिश कर रही है।
पिछले चुनावों के आंकड़ों पर नजर डालें तो बसपा के प्रति यह वफादारी डगमगा रही है। सपा की स्थापना 1984 में कांशीराम ने बहुजन समाज, यानी कि दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यकों को सशक्त बनाने के लिए की थी। उत्तर प्रदेश में यह पार्टी 2007 के विधानसभा चुनावों में चरम पर पहुंची थी, जब उसे 30.43 फीसदी वोट मिले और 206 सीटें हासिल हुईं। यह आंकड़ा बताता है कि उस समय बसपा ने न सिर्फ जाटवों बल्कि गैर-जाटव दलितों, मुसलमानों और कुछ ऊपरी जातियों को जोड़ने
में कामयाबी हासिल की थी। यह सफलता सर्वजन हिताय-सर्वजन सुखाय के नारे पर टिकी थी, जहां मायावती ने सभी वर्गों को साथ लेकर सरकार बनाई।
उसके बाद ग्राफ नीचे आने लगा और 2012 के विधानसभा चुनावों में बसपा का वोट शेयर गिरकर 25.95 फीसदी रह गया। चुनाव आयोग के मुताबिक, पार्टी को 80 सीटें मिलीं, लेकिन यह 2007 के मुकाबले करीब 5 फीसदी की बड़ी गिरावट थी। सत्ता में रहते हुए विकास के वादे पूरे न होना और भ्रष्टाचार के आरोपों को इसकी बड़ी वजह माना गया। इसके बाद 2014 के लोकसभा चुनावों में बसपा को यूपी में एक भी सीट नहीं मिली और वोट शेयर 19.77 फीसदी रहा। यह आंकड़ा बताता है कि दलित वोट बंट गए, खासकर गैर-जाटव समुदाय भाजपा की ओर खिसक गया। इसके बाद 2017 के विधानसभा चुनावों में थोड़ा सुधार हुआ, वोट शेयर 22.23 फीसदी हो गया और 19 सीटें हासिल हुईं। माना जाता है कि 2019 के लोकसभा में सपा के साथ गठबंधन से भी फायदा हुआ और करीब 19 फीसदी के वोट शेयर के साथ पार्टी को 10 सीटें मिलीं लेकिन इसके बाद सबसे बड़ा झटका 2022 के विधानसभा चुनावों में लगा। चुनाव आयोग के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, बसपा का वोट शेयर घटकर 12.88 फीसदी रह गया और यह 1993 के बाद का सबसे निचला स्तर था। पार्टी को इन चुनावों में सिर्फ एक सीट मिली और वह थी रसड़ा विधानसभा सीट। कुल वोटों में से बसपा को लगभग 38 लाख वोट मिले, जो 2017 के 66 लाख से आधे से भी कम थे।
2024 के लोकसभा चुनावों में हालात और बिगड़े जब बसपा का वोट शेयर 9.39 फीसदी रह गया और पार्टी इन चुनावों में एक भी सीट नहीं जीत पाई। बसपा के वोट शेयर के ये आंकड़े बताते हैं कि पार्टी का वोट अब सिर्फ कोर ग्रुप तक सिमट गया है। इसलिए कोर ग्रुप को मायावती ने मजबूत किया और बिहार में भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी है। (अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

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