धर्मक्षेत्रे-कुरुक्षेत्रे (दसवां अध्याय-11) सात पितरों में श्रेष्ठ हैं अर्यमा

रामायण अगर हमारे जीवन में मर्यादा का पाठ पढ़ाती है तो श्रीमद् भागवत गीता जीवन जीने की कला सिखाती है। द्वापर युग के महायुद्ध में जब महाधनुर्धर अर्जुन मोहग्रस्त हो गये, तब उनके सारथी बने योगेश्वर श्रीकृष्ण ने युद्ध मैदान के बीचोबीच रथ खड़ाकर उपदेश देकर अपने मित्र अर्जुन का मोह दूर किया और कर्तव्य का पथ दिखाया। इस प्रकार भगवान कृष्ण ने छोटे-छोटे राज्यों में बंटे भारत को एक सशक्त और अविभाज्य राष्ट्र बनाया था। गीता में गूढ़ शब्दों का प्रयोग किया गया है जिनकी विशद व्याख्या की जा सकती है। श्री जयदयाल गोयन्दका ने यह जनोपयोगी कार्य किया। उन्होंने श्रीमद भागवत गीता के कुछ गूढ़ शब्दों को जन सामान्य की भाषा में समझाने का प्रयास किया है ताकि गीता को जन सामान्य भी अपने जीवन में व्यावहारिक रूप से उतार सके। -प्रधान सम्पादक
आयुधानामहं वजं्र धूनूनामस्मि कामधुक्।
प्रजनश्वास्मि कन्दर्पः सर्पाणामस्मि वासुकिः।। 28।।
प्रश्न-शस्त्रों में वज्र को अपना स्वरूप बतलाने का क्या अभिप्राय है?
उत्तर-जितने भी शस्त्र हैं, उन सबमें व्रज अत्यन्त श्रेष्ठ है क्योंकि वज्र में दधीचि ऋषि के तप का तथा साक्षात् भगवान् का तेज विराजमान है और उसे अमोध माना गया है। इसलिये वज्र को भगवान् ने अपना स्वरूप बतलाया है।
प्रश्न-दूध देने वाली गायों में कामधेनु को अपना स्वरूप बतलाने का क्या अभिप्राय है?
उत्तर-कामधेनु समस्त गौओं में श्रेष्ठ दिव्य गौ है, यह देवता तथा मनुष्य सभी की समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाली है और इसकी उत्पत्ति भी समुद्र मन्थन से हुई है इसलिये भगवान् ने इसको अपना स्वरूप बतलाया है।
प्रश्न-कन्दर्प के साथ ‘प्रजनः’ विशेषण देने का क्या अभिप्राय है?
उत्तर-‘कन्दर्प’ शब्द कामदेव का वाचक है। इसके साथ ‘प्रजन’ विशेषण देकर भगवान् ने यह भाव दिखलाया है कि जो धर्मानुकूल सन्तानोत्पत्ति के लिये उपयोगी है, वही ‘काम’ मेरी विभूति है। यही भाव सातवें अध्याय के ग्यारहवें श्लोक में भी-काम के साथ ‘धर्माविरुद्धः’ विशेषण देकर दिखलाया गया है। अभिप्राय यह है कि इन्द्रियाराम मनुष्यों के द्वारा विषय सुख के लिए उपभोग में आने वाला काम निकृष्ट है, वह धर्मानुकूल नहीं है परन्तु शास्त्र विधि के अनुसार सन्तान की उत्पत्ति के लिये इन्द्रिय जयी पुरुषों के द्वारा प्रयुक्त होने वाला काम ही धर्मानुकूल होने से श्रेष्ठ है। अतः उसको भगवान् की विभूतियों में गिना गया है।
प्रश्न-सर्पों मंे वासुकि को अपना स्वरूप बतलाने का क्या अभिप्राय है?
उत्तर-वासुकि समस्त सर्पों के राजा और भगवान् के भक्त होने के कारण सर्पों में श्रेष्ठ माने गये हैं इसलिये उनको भगवान् ने अपना स्वरूप बतलाया है।
अनन्तश्वास्मि नागानां वरुणो यादसामहम्।
पितृणामर्यमा चास्मि यमः संयमतामहम्।। 29।।
प्रश्न-नागों में शेषनाग को अपना स्वरूप बतलाने का क्या अभिप्राय है?
उत्तर-शेषनाग समस्त नागों के राजा और हजार फणों से युक्त हैं, तथा भगवान् की शय्या बनकर और नित्य उनकी सेवा में लगे रहकर उन्हें सुख पहुँचाने वाले, उनके परम अनन्य भक्त और बहुत बार भगवान् के साथ-साथ अवतार लेकर उनकी लीला में सम्मिलित रहने वाले हैं तथा इनकी उत्पत्ति भी भगवान् से ही मानी गयी है। इसलिये भगवान् ने उनको अपना स्वरूप बतलाया है।
प्रश्न-जलचरों के अधिपति वरुण को अपना स्वरूप बतलाने का क्या अभिप्राय है?
उत्तर-वरुण समस्त जलचरों के और जल देवताओं के अधिपति, लोकपाल, देवता और भगवान् के भक्त होने के कारण सबमें श्रेष्ठ माने गये है। इसलिये उनको भगवान ने अपना स्वरूप बतलाया है।
प्रश्न-पितरों में अर्यमा को अपना स्वरूप बतलाने का क्या अभिप्राय है?
उत्तर-कव्यवाह, अनल, सोम, यम, अर्यमा, अग्निष्वात्त और वर्हिषद्- से सात पितृगण हैं। इनमें अर्यमा नामक पितर समस्त पितरों में प्रधान होने से उनमें श्रेष्ठ माने गये हैं। इसीलिये उनको भगवान् ने अपना स्वरूप बतलाया है।
प्रश्न-नियमन करने वालों में यम को अपना स्वरूप बतलाने का क्या अभिप्राय है?
उत्तर-मर्त्य और देव-जगत् में जितने भी नियमन करने वाले अधिकारी हैं, यमराज उन सबमें बढ़कर हैं। इनके सभी दण्ड, न्याय और धर्म से युक्त, हितपूर्ण और पापनाशक होते हैं। ये भगवान् के ज्ञानी भक्त और लोकपाल भी हैं। इसीलिये भगवान् ने इनको अपना स्वरूप बतलाया है।
प्रहलादश्वास्मि दैत्यानां कालः कलयतामहम्।
मृगाणां च मृगेन्द्रोऽहं वैनतेयश्व पक्षिणाम्।। 30।।
प्रश्न-दैत्यों में प्रहलाद को अपना स्वरूप बतलाने का क्या अभिप्राय है?
उत्तर-दिति के वंशजों को दैत्य कहते हैं। उन सबमें प्रहलाद उत्तम माने गये हैं, क्योंकि वे सर्वसद्गुण सम्पन्न परम धर्मात्मा और भगवान् के परम श्रद्धालु, निष्काम, अनन्य प्रेमी भक्त हैं तथा दैत्यों के राजा हैं। इसलिये भगवान् ने उनको अपना स्वरूप बतलाया है।
प्रश्न-यहाँ ‘काल’ शब्द किसका वाचक है? और उसे अपना स्वरूप बतलाने का क्या अभिप्राय है?
उत्तर-यहाँ ‘काल’ शब्द क्षण, घड़ी, दिन, पक्ष, मास आदि नामों से कहे जाने वाले समय का वाचक है। यह गणित विद्या के जानने वालों की गणना का आधार है। इसलिये काल को भगवान् ने अपना स्वरूप बतलाया है।
प्रश्न-सिंह तो हिंसक पशु है, इसकी गणना भगवान् ने अपनी विभूतियों से कैसे की?
उत्तर-सिंह सब पशुओं का राजा माना गया है। वह सबसे बलवान् तेजस्वी, शूरवीर और साहसी होता है। इसलिये भगवान् ने सिंह को अपनी विभूतियों में गिना है।
प्रश्न-पक्षियों में गरुण को अपना स्वरूप बतलाने का क्या अभिप्राय है?
उत्तर-विनता के पुत्र गरुड़ जी पक्षियों के राजा और उन सबसे बड़े होने के कारण पक्षियों में श्रेष्ठ माने गये हैं। साथ ही ये भगवान् के वाहन् उनके परम भक्त और अत्यन्त पराक्रमी हैं। इसलिये गरुड़ को भगवान् ने अपना स्वरूप बतलाया है।
पवनः पवतामस्मि रामः शस्त्रभृतामहम्।
झषाणां मकरश्वास्मि óोतसामस्मि जाह्नवी।। 31।।
प्रश्न-‘पवताम्’ पद का अर्थ यदि वेगवान् मान लिया जाय तो क्या आपत्ति है?
उत्तर-यद्यपि व्याकरण की दृष्टि से ‘वेगवान्’ अर्थ नहीं बनता परन्तु टीकाकारों ने यह अर्थ भी माना है। इसलिये कोई मानें तो मान भी
सकते हैं। वायु वेगवानों में (तीव्र गति से चलने वालों में) भी सर्वश्रेष्ठ माना गया है और पवित्र करने वालों में भी। अतः दोनों प्रकार से ही वायु की श्रेष्ठता है।-क्रमशः (हिफी)