एमपी में एकता कम, बंटवारा ज्यादा

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर
भाजपा शासित राज्य मध्य प्रदेश में भी इसी साल विधान सभा के चुनाव होने हैं । इस राज्य में जनता ने 2018 में कांग्रेस को सत्ता सौंपी थी। मुख्य मंत्री की कुर्सी हथियाने को लेकर ही ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ के समर्थक भिड गये थे। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने इस आग में घी डाला। कांग्रेस हाईकमान ने भी दूरदर्शिता नहीं दिखाई । नतीजा यह हुआ कि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने समर्थकों के साथ कांग्रेस छोड़ कर भाजपा का दामन थाम लिया। शिवराज सिंह चौहान फिर से मुख्यमंत्री बन गये । अब उसी भाजपा सरकार के विरोध में कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी एकता की खिचड़ी पकायी जाएगी। ममता बनर्जी के फार्मूले के अनुसार मध्यप्रदेश में कांग्रेस के पीछे ही विपक्षी दलों को खडा होना चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा है कि क्षेत्रीय दलों की मजबूरी को भी समझना होगा । सभी राज्यों में एक दो विधायक और कुछ प्रतिशत वोट नहीं मिलेंगे तो राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा कैसे मिलेगा । अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (आप) को इसी साल राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल हुआ है । केजरीवाल अपनी पार्टी के इस दर्जे को बरकरार रखना चाहेंगे जबकि मायावती की बहुजन समाज पार्टी बसपा ने राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा खो दिया है । इसलिए मायावती की चुनाव रणनीति भी अपनी पार्टी को ज्यादा फायदा पहुंचाने की रहेगी । इसलिए लोक लुभावन वादे भी किये जाएंगे। कांग्रेस को यहां सभी भाजपा विरोधी दल नेता मानने को तैयार भी नहीं होंगे। केजरीवाल की पार्टी ने तो पहले से ही सभी सीटों पर प्रत्याशी उतारने की घोषणा कर रखी है। हालांकि सत्ताधारी भाजपा में बेचैनी तो है । इसीलिए चौहान को बदलने की योजना थी लेकिन कर्नाटक में बीएस येदियुरप्पा को हटाने का नतीजा देखकर भाजपा ने शिवराज सिंह चौहान को ही दूल्हा बनाने का इरादा जताया है। चौहान ने भी अपने वफादार अधिकारियों को महत्वपूर्ण स्थानों पर तैनाती दे दी है।
मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव 2023 से पहले एक सर्वे में जो परिणाम निकले उनसे विपक्षी एकता बनाने वाले नेताओं को भी सबक लेने की जरूरत है । सर्वे में शामिल लोगों में से 83 फीसदी का मानना था कि फ्री के चुनावी वादे सही नहीं हैं। इस सर्वे में प्रदेश की सभी 230 विधानसभा सीटों के लोगों को शामिल किया गया। इनमें से 56 फीसदी लोग अपने विधायक से संतुष्ट नहीं हैं। इनमें सभी दलों के और निर्दलीय विधायक भी शामिल हैं। इस सर्वे में 24 हजार 458 लोगों की राय शामिल की गई बतायी गयी। सर्वे के मुताबिक इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव में मतदाताओं के लिए सबसे बड़ा मुद्दा शिक्षा और स्वास्थ्य हैं। वहीं, उनकी सबसे बड़ी जरूरत बेहतर कानून-व्यवस्था है। लोग चाहते हैं कि उनके यहां चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार ईमानदार हों। विपक्षी दल क्या एकता के दौरान इस तरह से संकल्प लेंगे । केजरीवाल तो निश्चित रूप से शिक्षा के मुद्दे का लाभ उठाना चाहेंगे। केंद्र सरकार के हाल ही में जारी किये गये अध्यादेश का विरोध करने से कांग्रेस ने मना कर दिया है। इसप्रकार केजरीवाल को एकला चलो का नैतिक अधिकार भी मिल गया है। आम आदमी पार्टी (आप) पहले ही घोषणा कर चुकी है कि मध्य प्रदेश में इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव में सभी 230 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। पार्टी के संगठन महासचिव संदीप पाठक ने राज्य में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और विपक्षी कांग्रेस पर विनाशकारी राजनीति करने का आरोप लगाया और कहा कि मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में ‘आप’ लोगों के सामने अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में दिल्ली सरकार के मॉडल को रखेगी।उन्होंने मध्यप्रदेश में स्थानीय निकाय चुनावों में पार्टी के प्रदर्शन का हवाला दिया और कहा कि ‘आप’ यहां अगली सरकार बनाएगी। पाठक ने कहा, ‘हम सभी विधानसभा क्षेत्रों में उम्मीदवार उतारेंगे और अपनी पूरी ताकत से चुनाव लड़ेंगे।’ मध्य प्रदेश में 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में कुल 230 सीटों में से कांग्रेस 114 सीटों पर जीत के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी और भाजपा को 109 सीटें मिली थीं। कांग्रेस ने बाद में कमलनाथ के नेतृत्व में गठबंधन सरकार बनाई हालांकि, मार्च 2020 में कांग्रेस के कई विधायकों के भाजपा में जाने के बाद भगवा पार्टी की सत्ता में वापसी का मार्ग प्रशस्त हुआ। आप’ नेता ने मध्यप्रदेश में पार्टी सदस्यता अभियान शुरू करने की घोषणा करते हुए कहा, ‘चूंकि हमारे नेताओं और कार्यकर्ताओं की संख्या मध्य प्रदेश में कई गुना बढ़ गई है, इसलिए हमने अपनी राज्य कार्यकारी समिति को भंग कर दिया ताकि इसका विस्तार किया जा सके और नए चेहरों को जोड़ा जा सके।’ उन्होंने कहा कि ‘आप’ तेजी से देश में एक वैकल्पिक राजनीतिक ताकत के रूप में उभरी है और केवल 10 वर्षों में दिल्ली और पंजाब में सरकार बनाकर और गुजरात में प्रभावशाली प्रदर्शन करके एक राष्ट्रीय पार्टी बन गई है। पिछले दिसंबर में हुए गुजरात विधानसभा चुनाव में ‘आप’ ने 180 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिनमें से उसने पांच सीटों पर जीत हासिल की। इसलिए केजरीवाल हर हालत में मध्यप्रदेश में अपनी पार्टी का जनाधार बढाएंगे। विपक्षी एकता से उनको यहां कुछ भी लेना देना नहीं है ।
मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव इसी साल नवंबर में होने हैं। इससे पहले मंत्रालय में अफसरों की नई जमावट शुरू हो गई है। जिन अफसरों की अपने मंत्रियों से बन नहीं रही थी, उन्हें लूप लाइन में भेजा गया है। इसके साथ ही, प्रमुख सचिव स्तर पर भी बदलाव के संकेत है। मध्यप्रदेश शासन ने 31 मई को ही को छह आईएएस अफसरों के ट्रांसफर किए हैं। चिकित्सा विभाग के कमिश्नर जॉन किंग्सली ए को नर्मदा घाटी विकास विभाग, जल संसाधन विभाग, नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के संचालक बनाया गया है। बताया जा रहा है कि चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग उनसे नाराज थे। किंग्सली के स्थान पर गोपाल चंद्र डाड चिकित्सा शिक्षा आयुक्त बनाया गया है. वे अभी पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के आयुक्त थे। घुमंतू और अर्ध घुमंतू जनजाति विभाग के संचालक के अतिरिक्त प्रभार दिया गया है। स्वाति मीणा नायक को महिला बाल विकास विभाग में सचिव बनाया है और 2009 बैच के आईएएस अभिषेक सिंह को राज्य निर्वाचन आयोग का सचिव बनाया गया है। सूत्र बताते हैं कि मुख्य सचिव उनसे नाराज थे। रत्नाकर झा श्रम विभाग के उप सचिव होंगे। उन्हें मध्य प्रदेश भवन एवं अन्य संनिर्माण कर्मकार मंडल एवं कल्याण आयुक्त मध्य प्रदेश असंगठित शहरी व ग्रामीण कर्मकार कल्याण मंडल का अतिरिक्त प्रभार भी दिया गया है। संजय कुमार जैन को लोक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग में उप सचिव बनाया गया है। मध्यप्रदेश राज्य लोक परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनी का प्रबंध संचालक बनाया गया है। मध्य प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम भोपाल के एमडी और इंटर स्टेट ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी का अतिरिक्त प्रभार दिया गया है। (हिफी)