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केजरीवाल को कांग्रेस का समर्थन

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

कांग्रेस ने दूरदर्शिता का परिचय देते हुए बेंगलुरु में विपक्षी दलों की बैठक से पहले ही केन्द्र के अध्यादेश का विरोध करने पर हामी भर दी। इसका नतीजा यह रहा कि आम आदमी पार्टी (आप) को विपक्षी दलों के मंच पर बैठना पड़ा है। दिल्ली के अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग के नियंत्रण पर केन्द्र सरकार के अध्यादेश पर 17 जुलाई को सुनवाई जरूर हुई लेकिन इसे संविधान पीठ के पास भेजने की बात कही जा रही है। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली की सरकार और उपराज्यपाल के विवाद को लेकर एक और बड़ा फैसला सुनाया। यह भी अधिकारों की लड़ाई से जुड़ा है। सुप्रीम कोर्ट में डीईआरसी चेयरमैन की नियुक्ति को लेकर भी मामला लंबित है। यह एक न्यायाधीश से जुड़ा है। उप राज्यपाल ने चेयरमैन पद पर जस्टिस उमेश कुमार की नियुक्ति कर दी। दिल्ली सरकार ने इस नियुक्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। इस पर सीजेआई जस्टिस चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली तीन सदस्यीय बेंच ने सुनवाई की। कोर्ट ने सलाह दी है कि दिल्ली के सीएम और एलजी को बैठकर एक सूटेबल नाम पर विचार करना चाहिए। यह कार्य राजनीति से ऊपर उठकर करना होगा। इस प्रकार केजरीवाल की दिक्कतें कम नहीं हो रही हैं।
अध्यादेश को लेकर भी केजरीवाल का पक्ष बहुत मजबूत नहीं है। इसलिए कांग्रेस ने केजरीवाल का समर्थन करके अपने को दोषारोपण से बचा लिया है।
कांग्रेस ने 16 जुलाई को स्पष्ट किया कि वह दिल्ली में अधिकारियों के ट्रांसफर पोस्टिंग के नियंत्रण पर केंद्र के अध्यादेश का ‘समर्थन नहीं’ करेगी। यह सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी (आप) के पक्ष में एक बड़ा कदम है। अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस, टीएमसी, डीएमके, शिवसेना (उद्धव), जेडीयू, आरजेडी, जेएमएम, सीपीआई, सीपीआई (एम), एनसीपी, एसपी, टीआरएस और बीआरएस सहित पार्टियों का समर्थन हासिल किया है। कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने कहा, जहां तक अध्यादेश का सवाल है, हमारा रुख बिल्कुल स्पष्ट है। हम इसका समर्थन नहीं करने जा रहे हैं।’ कांग्रेस ने ‘देश की संघीय व्यवस्था को नुकसान पहुंचाने या राज्यपालों के माध्यम से राज्य के मामलों में हस्तक्षेप’ करने के किसी भी प्रयास का समर्थन करने से इनकार कर दिया। ध्यान रहे 23 जून को पटना में अपनी शुरुआती सभा के दौरान, विपक्षी दलों ने सामूहिक रूप से 2024 के लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के खिलाफ एकजुट होने का संकल्प लिया था। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में विपक्ष की महत्वपूर्ण बैठक में भाग लिया। हालांकि, बैठक के समापन पर आयोजित संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में आप नेता अनुपस्थित रहे, जो विपक्ष की एकता मोर्चे के भीतर दरार का संकेत माना जा रहा था। आप के बयान में पार्टी ने कहा था कि जब तक कांग्रेस सार्वजनिक रूप से ‘काले अध्यादेश’ की निंदा नहीं करती और अपने सभी 31 राज्यसभा सांसदों से अध्यादेश का विरोध कराने की प्रतिबद्धता नहीं जताती, तब तक आम आदमी पार्टी के लिए भविष्य में समान विचारधारा वाले अन्य दलों के साथ बैठकों में शामिल होने की चुनौती होगी, जहां कांग्रेस शामिल है। पटना में विपक्ष की बैठक के बाद एक बयान में आप ने कहा कि कुल 15 दलों में से 12 का राज्यसभा में प्रतिनिधित्व है। राज्यसभा में प्रतिनिधित्व करने वाले सभी दलों ने स्पष्ट रूप से ‘काले
अध्यादेश’ के खिलाफ अपना विरोध व्यक्त किया है और राज्यसभा में इसका विरोध करने के अपने इरादे की घोषणा की है।
आम आदमी पार्टी के दिल्ली के नौकरशाहों पर कंट्रोल से जुड़े अध्यादेश के मुद्दे कांग्रेस का समर्थन हासिल करने के बावजूद केंद्र सरकार इसे राज्यसभा से भी आसानी से मंजूर करवा सकती है। भले ही केंद्र की बीजेपी सरकार के पास राज्यसभा में बहुमत नहीं है, मगर उसे किसी खास परेशानी का सामना नहीं करना है। अगर नवीन पटनायक की बीजू जनता दल (बीजेडी) या जगन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस पार्टी अपने मौजूदा रुख के खिलाफ कोई नया फैसला लेते हैं तो फिर केंद्र के सामने सांसदों के जरूरी नंबरों को लेकर संकट पैदा हो सकता है। बिना किसी विरोधी उम्मीदवार के 11 राज्यसभा सीटों के लिए भाजपा के पांच सदस्यों और तृणमूल के छह सांसदों का निर्विरोध चुना जाना तय है। कांग्रेस को एक सीट का नुकसान होने और राज्यसभा में सांसदों की संख्या 30 सीटों पर सिमटने की संभावना है, जबकि भाजपा को एक सीट का फायदा होगा और उसकी संख्या 93 तक पहुंच जाएगी। वहीं 24 जुलाई के बाद 245 सदस्यीय राज्यसभा में 7 सीटें खाली हो जाएंगी। इनमें जम्मू-कश्मीर में 4 सीटें, दो मनोनीत और उत्तर प्रदेश में एक सीट खाली होगी। तो अगले हफ्ते जब मानसून सत्र चल रहा होगा, तो राज्यसभा में कुल सीटें घटकर 238 हो जाएंगी और बहुमत का आंकड़ा 120 होगा। उस वक्त भाजपा और सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में सहयोगी दलों के पास 105 राज्यसभा सदस्य होंगे। भाजपा को पांच नामांकित और दो निर्दलीय सांसदों के समर्थन का भी भरोसा है। इस तरह सरकार के पक्ष में सदस्यों की संख्या 112 होगी, जो नए बहुमत के आंकड़े से महज 8 कम होगी।
सरकार को मायावती की बहुजन समाज पार्टी (बसपा), जनता दल सेक्युलर और तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) से भी समर्थन की उम्मीद है, जिनके सदन में एक-एक सांसद हैं। जहां तक विपक्ष की बात है, तो 105 सदस्य दिल्ली अध्यादेश के खिलाफ हैं। राज्यसभा में इसे पास करने के लिए सरकार को बीजेडी और वाईएसआरसीपी की मदद की जरूरत होगी, जिनके नौ-नौ सदस्य हैं। बीजद ने कहा है कि वह अपना रुख तब तय करेगी जब दिल्ली अध्यादेश के बदले पेश होने वाला विधेयक चर्चा और मतदान के लिए आएगा। वाईएसआरसीपी के जगन रेड्डी ने भी अभी तक अपने फैसले का खुलासा नहीं किया है। पिछले साल एक विवादास्पद बिल पर राज्यसभा में वोटिंग के दौरान दोनों पार्टियां वॉकआउट कर गई थीं। इससे सरकार को बहुमत का आंकड़ा नीचे लाने में मदद मिली। अगर वे इस बार भी ऐसा ही करते हैं, तो भाजपा और उसके सहयोगी बहुमत के आंकड़े को पार कर जाएंगे, जो गिरकर 111 पर आ जाएगा। सरकार तभी संकट में होगी जब दोनों पार्टियां बिल के विरोध में वोट करेंगी, जिसकी संभावना नहीं दिखती। सरकार के पास दिल्ली अध्यादेश पर मतदान से पहले राज्यसभा में दो सदस्यों को नामांकित करने का विकल्प भी है, जिससे उसकी संख्या बढ़कर 114 हो जाएगी। इस तरह कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी को समर्थन देकर बेहतर कूटनीति का परिचय दिया है। (हिफी)

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