परवल की खेती से किसान मालामाल

(अरुण कुमार-हिफी फीचर)
पारंपरिक खेती के साथ ही सब्जियों की खेती से भरपूर कमाई की जा सकती है। सब्जियों मंे परवल विटामिन व प्रोटीन से भरपूर होता है। परवल की खेती से बिहार के सीतामढ़ी में किसान नंदू पटेल ने भरपूर कमाई की है। नंदू पटेल ने परवल उगाने मंे रसायनिक खादों का उपयोग नहीं किया, इससे उनकी फसल को विदेश मंे भी निर्यात किया गया है। नंदू पटेल महीने मंे सब्जियां बेचकर ही 25 हजार रुपये कमा लेते हैं। उनसे प्रेरणा और प्रशिक्षण लेकर अन्य किसान भी पारंपरिक खेती के साथ सब्जी उगा रहे हैं।
कई किसान परवल के पौधों की जड़ों के जरिये भी इसकी रोपाई का काम करते हैं। इसकी खेती के लिये जैविक विधि से मिट्टी तैयार की जाती है, जिसके बाद जल निकासी करके मेड़ों पर या बेड़ बनाकर पौधों या जड़ों की रोपाई करनी चाहिये। इसकी रोपाई के लिये जून से अगस्त और अक्टूबर से नवंबर का समय सबस अच्छा रहता है। परवल का बेहतरीन उत्पादन पूरी तरह खेती की तकनीक पर निर्भर करती है। यदि समय-समय पर निराई-गुड़ाई और पोषण प्रबंधन किया जाये तो 150 से 190 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन भी ले सकते हैं। भारत में हरी सब्जियों का उत्पादन और खपत बड़े पैमाने पर होती है। खासकर बात करें परवल की तो ये आज के दौर की सबसे प्रचलित सब्जी बनती जा रही है। गांव और कस्बों में तो क्या शहरों में इसकी बिक्री हाथों हाथ हो जाती है। किसान चाहें तो इसकी खेती के जरिये कम समय में अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। सबसे अच्छी बात यह है कि परवल एक सदाबहार बेलदार सब्जी है, जिसकी खेती हर सीजन में कर सकते हैं। विटामिन के गुणों से भरपूर परवल की सब्जी को खाली खेतों में, मचान पर या फिर इसकी सह-फसल खेती करके भी अच्छा उत्पादन ले सकते हैं।
भारत के ज्यादातर इलाकों में परवल की खेती की जाती है। इसके बड़े उत्पादक राज्यों में बिहार, पश्चिम बंगाल, पूर्वी उत्तर प्रदेश के अलावा राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, असम और महाराष्ट्र में भी किसान साल में एक बार परवल की फसल जरूर लगाते हैं।
वैसे तो हर प्रकार की जलवायु में परवल का बेहतर उत्पादन ले सकते हैं, लेकिन इसकी रोपाई का काम सामान्य तापमान, गर्म तापमान या बारिश के दौरान ही करना चाहिये। सर्दियों में परवल के पौधे ठीक प्रकार नहीं पनपते। वहीं इसकी खेती के लिये जल निकासी वाली दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त रहती है। ज्यादा बारिश या जल भराव वाले इलाकों में इसकी खेती ना करें, क्योंकि फसल में पानी भरने पर परवल के पौधे गलने लगते हैं और पूरी पैदावार सड़ने लगती है। परवल की खेती के लिये नर्सरी में पौधे तैयार किये जाते हैं। इसकी खेती के लिये जैविक विधि से मिट्टी तैयार की जाती है, जिसके बाद जल निकासी करके मेड़ों पर या बेड़ बनाकर से पौधों या जड़ों की रोपाई करनी चाहिये। फसल की अच्छी बढ़वार के बाद परवल के पौधों की बेलों को स्टेकिंग विधि से साधा जाता है, ताकि जमीन में बेल और परवल के फलों पर बुरा असर ना पड़े। बेलदार सब्जियों की खेती के लिये स्टेकिंग विधि का इस्तेमाल करने पर कीट-रोगों की संभावना काफी हद तक कम हो जाती है।
परवल की खेती से बेहतर उत्पादन के लिये प्रति हेक्टेयर खेत में 250 से 300 क्विंटल अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद या वर्मीकंपोस्ट, 90 से 100 किग्रा। नत्रजन, 60 से 70 किग्रा। फास्फोरस, 40 से 50 किग्रा। पोटाश उर्वरकों का इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है। परवल के पौधे या जड़ों की रोपाई के बाद तुरंत एक सिंचाई का काम किया जाता है, ताकि पौधों का ठीक तरह से विकास हो सके। इसके अलावा हर 8 से 10 दिनों के बीच हल्की सिंचाई करनी होती है।
परवल के पौधों की बढ़वार के बाद उन्हें बांस की बल्लियां या नाइलॉन की जाली के ऊपर फैलाया जाता है। पौध प्रबंधन की इस तकनीक के कारण खरपतवारों की संभावना नहीं रहती। यदि छोड़े बहुत खरपतवार निकल भी आयें, तो उन्हें निराई-गुड़ाई करके निकाल सकते हैं। इसी प्रकार परवल की फसल में कीट-रोगों की रोकथाम भी आसानी से हो जाती है। इसके लिये नीम और गौ मूत्र आधारित कीटनाशक का इस्तेमाल करना फायदेमंद और किफायती साबित होता है।
परवल की फसल से सालभर में 80 से 100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक का उत्पादन ले सकते हैं। परवल का बेहतरीन उत्पादन पूरी तरह खेती की तकनीक पर निर्भर करती है। यदि एक बार फलत के बाद खेत में फावड़े से निराई-गुड़ाई और पोषण प्रबंधन किया जाये तो आराम से 150 से 190 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन मिलता है।
बिहार के सीतामढ़ी जिला मुख्यालय से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर डुमरा प्रखंड अंतर्गत कुम्हरा बिशनपुर गांव के किसान महज दो कट्ठे में परवल की खेती कर अच्छी कमाई कर रहे है। साथ हीं परिवार का भी बेहतर तरीके से भरण-पोषण कर रहे हैं। किसान नंदू पटेल इलाके के किसानों के लिए किसी प्रेरणा से कम नहीं है। नंदू पटेल पढ़े-लिखे नहीं हैं, इसके बाद भी इनकी सोच प्रशिक्षित किसानों से कहीं से कमतर नहीं है। कम भूमि रहने के बाद भी परंपरागत और आधुनिक तकनीक का समावेशन कर परवल की खेती कर रहे हैं। खास बात यह है कि फसल की सिंचाई हैंडपंप से हीं कर लेते हैं। जिससे सिंचाई पर खर्च होने वाले पैसे की बचत हो जाती है। नंदू पटेल ने बताया कि किसी भी कृत्रिम खाद का उपयोग नहीं करते हैं, बल्कि गोबर और पत्ते को गलाकर प्राकृतकि खाद का इस्तेमाल करते हैं। उन्होंने बताया कि खेतों में उपजाई सब्जियों को आस-पास के लोग ही खाते हैं। इसलिए नहीं चाहते कि खाद और केमिकल मिलाकर किसी के सेहत के साथ खिलवाड़ करें और उन्हें डॉक्टर का चक्कर लगाने पड़े। इसलिए प्राकृतिक खाद ही फसल में प्रयोग करते हैं। नंदू पटेल ने बताया कि सब्जी से होने वाली आमदनी से परिवार के 10 सदस्यों का भरण-पोषण करते हैं। तीन लड़कों में दो की शादी हो चुकी है। तीनों लड़के बाहर काम करते हैं। वह अपनी खेती में इतने संलिप्त रहते हैं कि फसल को अपने बच्चों की तरह प्रेम करते हैं और उसको सहेज कर रखते हैं। (हिफी)