मणिपुर एजेंडे पर बहस का स्वार्थ

(डॉ दिलीप अग्निहोत्री-हिफी फीचर)
मणिपुर पर विपक्षी इं डि या का संसद में हंगामा जारी है। सरकार चर्चा को तैयार है। गृहमंत्री बयान देने को तैयार है। विपक्ष भी तैयार है लेकिन अलग अलग नियम के तहत सत्तापक्ष का कहना है कि मणिपुर के साथ बंगाल केरल और राजस्थान पर भी चर्चा होनी चाहिए लेकिन नियम पर गतिरोध है। विपक्षी गठबंधन ने अपना एक प्रतिनिधि मण्डल मणिपुर भेजा। इस अवधि में राजस्थान केरल और पश्चिम बंगाल के भी सुरक्षा सम्बन्धी प्रसंग उठे। विपक्ष के दोहरे मापदंड भी चर्चा में आ गए। राजस्थान के एक मंत्री राजेंद्र गुढ़ा को बर्खास्त किया गया। उन्होंने गहलोत सरकार को आईना दिखाया था। उन्होंने विधानसभा में अपनी ही सरकार को घेरते हुए कहा था कि मणिपुर नहीं हमें खुद का राज्य देखना चाहिए। उन्होंने बीते दिनों राजस्थान में हुई हिंसा, बलात्कार, हत्याकांड पर अपनी सरकार को घेरा था। इस बयान पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राजेंद्र गुढ़ा को मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया। वैसे इस मसले पर राहुल गांधी ने यह नहीं कहा कि राजेंद्र गुढ़ा की आवाज को दबाया जा रहा है,लोकतंत्र खतरे में है। गुढ़ा की लाल डायरी भी चर्चा में है।
दूसरा प्रसंग केरल का है। केरल में ‘समान नागरिक संहिता के खिलाफ मुस्लिम यूथ लीग की रैली में हिन्दू विरोध हिंसक नारेबाजी की गई है। यह इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग की यूथ विंग है। केरल में कंग्रेस का गठबंधन साझीदार है। इसने वायनाड लोकसभा क्षेत्र से राहुल गाँधी को समर्थन दिया था। राहुल गांधी ने इस पार्टी को अमेरिका में सेक्युलर बताया था। तीसरा प्रकरण बंगाल का है। ममता बनर्जी के भतीजे और तृणमूल कांग्रेस के नेता अभिषेक बनर्जी ने कलकत्ता हाईकोर्ट ने 5 अगस्त को भाजपा नेताओं के घरों का घेराव करने के तृणमूल कांग्रेस के नेता अभिषेक बनर्जी के घोषित कार्यक्रम पर रोक लगा दी है। अभिषेक बनर्जी ने पांच अगस्त को भाजपा नेताओं के घरों का घेराव करने की योजना बनाई। इसके लिए पार्टी कार्यकर्ताओं को निर्देश दिए। ये वही कार्यकर्ता हैं। जो कथित रूप से बंगाल के सभी चुनाव में हिंसक वारदात करते हैं। विरोधियों के घरों में आग लगाते है। महिलाओं से दुर्व्यवहार करते हैं। भय का माहौल बनाते हैं। ऐसे लोगों को विपक्षी नेताओं के घर घेरने का कार्यक्रम तृणमूल कांग्रेस द्वारा बनाया गया। बीजेपी नेताओं के परिजनों में दहशत फैल गई थी। ऐसा ऐलान करने वाला ममता बनर्जी का भतीजा और उत्तराधिकारी है। स्थानीय प्रशासन तो तृणमूल के स्थानीय नेताओं के सामने लाचार हो जाता है। युवराज के जलवे का क्या कहना लेकिन गनीमत रही कि बीजेपी नेता की अपील पर न्यायालय ने भाजपा नेताओं के घरों का घेराव कार्यक्रम पर रोक लगा दी। इससे ममता के भतीजे अभिषेक को हाईकोर्ट से झटका लगा।
हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश टीएस शिवगणनम की खंडपीठ ने साफ कहा कि यह कार्यक्रम सार्वजनिक हित के लिए हानिकारक है। उन्होंने राज्य सरकार से यह भी पूछा कि अभिषेक बनर्जी के बयान के मद्देनजर उसने क्या कदम उठाए हैं।
हाईकोर्ट ने सवाल किया कि ‘कल को कोई कह दे कि हाईकोर्ट का घेराव किया जाएगा तो क्या राज्य कार्रवाई नहीं करेगा। चीफ जस्टिस ने कहा कि ‘राज्य को आम आदमी की चिंता नहीं है, यह बेहद चिंताजनक स्थिति है।’ मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि ‘अगर किसी का घर बहुत सारे लोग घेर लें, तो क्या सिर्फ उसी पर असर पड़ेगा। आम लोग भी इससे प्रभावित होंगे।
इन प्रसंगों से विपक्षी दलों के गठबंधन ‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस (इं डि या) की नीयत और नीति का अनुमान लगाया जा सकता है। विपक्षी नेताओं के घर घेरने की घोषणा को किसी ने भी लोकतंत्र और संविधान हमला नहीं बताया। किसी ने नहीं कहा कि विरोधियों को डराया जा रहा है। उनकी आवाज दबाई जा रही है।
विपक्षी दल मणिपुर पर मुखर हैं। मणिपुर पर संसद में चर्चा होनी चाहिए लेकिन इसके साथ ही केरल बंगाल और राजस्थान पर भी चर्चा आवश्यक है लेकिन विपक्षी इन्डिया इसके प्रति गंभीर नहीं है। ऐसा हुआ तो इस गठबंधन के दलों को भी जबाब देना होगा। मणिपुर में अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मैतेई समुदाय की मांग के विरोध में पर्वतीय जिलों में तीन मई को आदिवासी एकजुटता मार्च’ के आयोजन के बाद राज्य में हिंसा भड़की थी।यहां मैतेई समुदाय के लोगों की संख्या लगभग त्रेपन प्रतिशत है। वे मुख्य रूप से इंफाल घाटी में रहते हैं। नगा और कुकी जैसे आदिवासियों की आबादी चालीस प्रतिशत है। वे ज्यादातर पर्वतीय जिलों में रहते है।
विपक्षी गठबंधन का प्रतिनिधि मण्डल एक एजेंडा लेकर गया था। उसकी रिपोर्ट पहले से तय थी। भाजपा अनुसूचित जनजाति मोर्चा ने इस प्रतिनिधि मण्डल पर गंभीर आरोप लगाए हैं। कहा कि इस प्रतिनिधिमंडल के आधे से अधिक सदस्य हत्या, हत्या का प्रयास, दंगा, अवैध हथियार रखने जैसे गंभीर मामलों के आरोपी हैं। विपक्षी इंडिया ने यह विचार नहीं किया कि मणिपुर की हिंसा में अफीम की अवैध खेती करने वालों की क्या भूमिका है। मणिपुर में लगभग साढ़े पंद्रह हजार एकड़ की जमीन पर अफीम की खेती होती है।अधिकांश जमीन पर कुकी-चिन नगा समुदाय के लोग अफीम की खेती करते हैं। वर्तमान सरकार ने इसके विरुद्ध अभियान चलाया था। ड्रग्स माफियाओं पर कार्रवाई की गई। कुकी समुदाय लंबे समय से अफीम की खेती करते आ रहे हैं, जिसकी वजह से मणिपुर में बड़ा ड्रग कल्चर खड़ा हुआ है। सरकार ने उसे नष्ट किया। हिंसा का एक कारण यह भी था। मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा नहीं मिला,इसलिए वो पहाड़ी इलाकों में नहीं बस सकते जबकि नागा और कुकी जैसे आदिवासी समुदाय चाहें तो घाटी वाले इलाकों में जाकर रह सकते हैं।
मैतेई को भी जनजाति का दर्जा मिल जाता है तो उन्हें पहाड़ी इलाकों में रहने और बसने की कानूनी इजाजत मिल जाएगी यह भी हिंसा का कारण बना।मैतेई समुदाय आधे से अधिक है लेकिन वह मात्र दस प्रतिशत इलाके में सीमित हैं। जबकि नब्बे प्रतिशत क्षेत्र में अन्य वर्गों का अधिकार है। मैतेई समुदाय की ओर से मणिपुर हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। इसमें अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने का मुद्दा उठाया गया था। याचिका में दलील दी गई थी कि 1949 में मणिपुर भारत का हिस्सा बना था। उससे पहले तक मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा हासिल था लेकिन बाद में उसे एसटी लिस्ट से बाहर कर दिया गया। मैतेई की जनजाति के दर्जे की मांग के विरोध में तीन मई को रैली निकाली गई। आदिवासी एकता मार्च के नाम से ये रैली ऑल ट्राइबल स्टूडेंट यूनियन मणिपुर की ओर से निकाली गई थी। इसमें कुकी और नगा समुदाय के लोग शामिल थे।
जबकि समस्या जनजाति को मिलने वाली सुविधाओं तक सीमित नहीं है। मैतेई समुदाय का मानना है कि कुकी म्यांमार की सीमा पार कर यहां आए हैं और मणिपुर के जंगलों पर कब्जा कर रहे हैं। उन्हें हटाने के लिए राज्य सरकार अभियान चला रही है। (हिफी)