अध्यात्मधर्म-अध्यात्म

शिव समान प्रिय मोहि न दूजा

देवों के देव महादेव

 

देवों के देव महादेव को अवढरदानी कहा जाता है। वे प्रसन्न होकर सारे पापों से मुक्त कर देते हैं। शिवपुराण के तीसरे अध्याय में पाप कर्म में डूबी चक्षुला की कहानी बतायी गयी है जिसने शिव पुराण सुनने के बाद अपना जीवन बदला और अंत में शिवलोक में निवास किया। शिव पुराण के चैथे
अध्याय में केदारनाथ धाम और त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग की रोचक कथा का वर्णन किया गया है। इसमें ऋषि गौतम और अहिल्या का प्रसंग भी आया है।
शौनक जी ने कहा हे सूतजी! आप महाज्ञानी है। आपकी बताई हुई कथा को सुनकर मैं अत्यंत आनंदित हो गया। कृपा करके आप हमे ऐसी अन्य कथाएं भी सुनाइए। सूत जी ने कहा हे शौनक! तुम शिव भक्तों में अत्यंत श्रेष्ठ हो। अतः में तुम्हे गोपनीय कथा वस्तु का भी ज्ञान देता हंू।

पांच सदियों की तपस्या का फल है राम मंदिर
इसके बाद सूत जी ने चक्षुला के पाप मुक्ति की कथा सुनाई। सूत जी ने कहा- एक समय में समुद्र के निकट के प्रदेश में एक वाष्कल नाम का ग्राम्य था। वहां पर महा पापी द्विज रहते थे, जिनको वैदिक धर्म का ज्ञान नहीं था। वहां पर रहने वाले सारे लोग अत्यंत दुष्ट थे। उनको कोई भी धर्म की वस्तुओं पर विश्वास नहीं था। वो लोग न तो देवताओं पर भरोसा करते, न तो भाग्य पर, ऐसी कुटिल वृत्ति वाले लोगों का मन हमेशा दूषित विषयों में ही लगा रहता था। वे लोग अपने पास अत्यंत भयानक अस्त्र शस्त्र रखते थे। इन लोगांे को ज्ञान वैराग्य और स्वधर्म का कोई भी ज्ञान नहीं था। वहां पर द्विज के साथ अन्य जाति के लोग भी उनकी तरह ही थे। उस प्रदेश की स्त्रियांे का भी अत्यंत कुटिल स्वभाव था। वे लोग स्वेच्छा चारिणी, पापी, कुत्सित विचारांे वाली और व्यभिचारिणी थीं। उनको सदव्यवहार एवम सदाचार के विषय में कोई भी ज्ञान नहीं था। पूरा ग्राम्य दुष्टों से ही भरा था।

एक समय पर इस वाष्कल नाम के गांव में बिन्दुग नाम का ब्राह्मण निवास करता था। वह अधर्मी, दुरात्म, महापापी था। उसकी पत्नी का नाम चक्षुला था। वह अत्यंत सुंदरी थी। वह हमेशा उत्तम धर्म का पालन करती थी फिर भी पत्नी को छोड़ वह ब्राह्मण वैश्यागामी हो गया था।

ऐसे ही उसके बहुत वर्ष निकल गए। उसकी स्त्री चक्षुला काम से पीड़ित थी किंतु उसने अपना धर्म कभी नहीं छोड़ा। वह दीर्घकालीन समय तक धर्म का पालन करती रही परंतु अंत में ऐसे दुष्ट पति के साथ रहकर वह भी उसके प्रभाव से दुष्ट बन गई। ऐसे ही उन पति पत्नी का अधिकतर समय दुराचार में ही निकल गया। उसके बाद एक दिन दूषित बुद्धि वाले ब्राह्मण की मृत्यु हुई और वह नरक में जा पहुंचा। उसने बहुत समय तक नरक में दुख भोगे। तदनंतर वह दुष्ट ब्राह्मण विंध्य पर्वत पर भयंकर पिशाच हुआ और उसकी पत्नी चक्षुला उसके बाद बहुत समय तक अपने पुत्रों के साथ जीवित रही।

मयूरेश्वर मंदिर
एक दिन वह अपने भाई बंधुओं के साथ गोकर्ण क्षेत्र गई और तीर्थ पर जाकर वहा के जल में स्नान किया। घूमते-घूमते वह एक देवमंदिर में आ पहुंची। वहां पर एक ब्राह्मण भगवान शिव की पवित्र पौराणिक कथा सुना रहे थे। चक्षुला ने भी वह कथा सुनी। ब्राह्मण कथा सुनाते समय कह रहे थे, जो स्त्रियां व्यभिचार करती है, वह जब मृत्यु को प्राप्त होती है, तो यमलोक में उनको भयंकर दण्ड मिलता है।
ऐसा सुनकर चक्षुला भयभीत हो गई और कांपने लगी। कथा समाप्त होने के बाद सब लोग वहां से चले गए, तब चक्षुला ने उस कथा सुनाने वाले ब्राह्मण से पूछा हे ब्राह्मण! मुझे धर्म का ज्ञान नहीं है। अतः मेरे से दुराचार हो गया। आज इस कथा को सुनने के बाद मुझे बहुत डर लग रहा है। मैं यह सुनकर भय से कांप रही हूं। इस संसार से मुझे वैराग्य हो गया है। मेरे जैसी पापी को धिक्कार है। में कुत्सित विषयों में फंसकर अपने धर्म से भ्रष्ट हो चुकी हूं। में निंदनीय हो चुकी हूं। मुझे किस प्रकार की घोर यातनाएं सहनी पड़ेंगी और कैसी दुर्गति मिलेगी? मेरे जैसी पापी की सहायता कौन करेगा? मृत्यु के बाद वह भयंकर यमदूत जो मुझे गले में फंदे डालकर ले जायेंगे, उनका सामना में किस प्रकार करूंगी? नरक में मुझ जैसी पापिनी के टुकड़े किए जायेंगे तो वह में कैसे सहन कर पाऊंगी? में अत्यंत पापी हूं और हर तरह से पाप में डूब चुकी हूं, मैं नष्ट हो गई हूं। हे ब्राह्मण! मेरे माता, पिता और गुरु आप ही है। मैं आपकी शरण में आई हूं। अबला का उद्धार कीजिए।

सूतजी ने कहा चक्षुला इस प्रकार से खेद और वैराग्य युक्त वचन कहकर ब्राह्मण देवता के चरणों में गिर पड़ी। तब उस बुद्धिमान ज्ञानी ब्राह्मण ने उसे उठाया और कहा बड़ी भाग्यशाली हो कि शिव पुराण के वैराग्य प्रदान करने वाली कथा को सुनकर तुम्हे समय पर भान हो गया। हे नारी! तुम चिंता मत करो, भगवान् शिव की शरण में जाओ, भगवान शिव तुम्हारे समस्त पाप तुरंत समाप्त कर देंगे। यह कहकर ब्राह्मण चक्षुला को समस्त पापों को हरने वाली तथा सुख एवं सद्गति देने वाली शिव पुराण कथा की महिमा का वर्णन करते हैं।
सूतजी कहने लगे हे ऋषियों! भगवान विष्णु के नर-नारायण नाम के दो अवतार बदरिकाश्रम में तपस्या करते हैं। उन दोनों ने शिवजी का पार्थिवलिंग बनाया और शिवजी से प्रार्थना की, हे प्रभु! जब आप इस पार्थिवलिंग में स्थित होते हैं, तो भगवान प्रतिदिन उनके बनाये हुए पार्थिवलिंग में आते और पूजनीय होते। उनके इस तप से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने कहा तुम्हारी पूजा भक्ति से मैं प्रसन्न हूं, इसलिए वरदान माग लो। तब नर नारायण ने लोकहितार्थ भगवान से कहा, अगर आप हमसे प्रसन्न हैं, तो इसी स्वरूप में यहाँ ही रहें। नर और नारायण के अनुरोध और इच्छा पर, भगवान हिमालय के केदार तीर्थ में ज्योतिर्लिंग के रूप में बस गए और दोनों की पूजा के साथ, भगवान शिव लोगों पर कृपा करने लगे और दर्शन देने के लिए केदारेश्वर के रूप में प्रसिद्ध हो गए।

सूतजी कहने लगे। हे ब्राह्मण! अब मैं आप सभी को त्र्यंबकेश्वर ज्योतिलिंग की महिमा सुनाता हूं। आप सभी भक्ति भाव से सुने।
एक समय महासती अहिल्या के पति, ऋषि गौतम ब्रह्म पर्वत पर तपस्या कर रहे थे। उस समय वहां सो वर्षों तक बारिश नई हुई और अकाल होने लगा। जानवर अन्न और जल के लिए तडपने लगे और उनकी मृत्यु होने लगी। इससे गौतम ऋषि बहुत दुखी हुए और वे परेशान हो गए। इसलिए उन्होंने वरुण देव की छह महीने तक तपस्या की। वरुणदेव प्रसन्न हुए और उनसे वरदान मांगने को कहा। ऋषि ने कहा, जानवर अन्न और जल के बिना मरने लगे है, इसलिए आप उन्हें तृप्त करे। वरुणदेव कहने लगे, हे ऋषि, मैं देवताओं की आज्ञा के बिना वर्षा नहीं कर सकता, लेकिन तुम पृथ्वी में गड्ढा बना लो, गौतम ने पृथ्वी पर एक गहरा गड्ढा खोदा। वरुणदेव ने गड्ढे में पानी भर दिया और कहने लगे, हे ऋषि! तेरी महिमा इस जल से भरे गड्ढे को कभी खाली नहीं करेगी। इस प्रकार, भगवान वरुण की कृपा से, गौतम
ऋषि को पानी मिला और जानवरों और पक्षियों के लिए अनाज बोया, जो सभी का पोषण करने लगा। (हिफी)

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