भाजपा की रणनीति में मायावती

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
उत्तर प्रदेश मंे 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों के चक्रव्यूह समझना आसान नहीं है। विपक्षी दलों ने इंडिया के नाम से गठबंधन बनाया है लेकिन राज्यों में उसकी भूमिका निर्धारित करना आसान नहीं है। मसलन देश के सबसे ज्यादा सांसद देने वाले उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी चाहेगी कि उसको नेता माना जाए। कांग्रेस इसके लिए कितना तैयार होगी? दूसरी प्रमुख विपक्षी पार्टी बसपा ने तो साफ-साफ कह दिया कि वो विपक्षी दलों के गठबंधन के साथ नहीं है। इन हालात मंे भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भूपेन्द्र चैधरी पश्चिमी उत्तर प्रदेश मंे मायावती को अपने साथ जोड़ना चाहते हैं क्योंकि जयंत चैधरी के राष्ट्रीय लोकदल से भाजपा को सियासी लाभ मिलता नहीं दिखता। इसके अलावा मायावती पर भाजपा के कुछ एहसान भी हैं। याद करें इसी वर्ष मार्च में जब मायावती ने अपनी प्रतिमा की तुलना अयोध्या के राम मंदिर से की थी तब उनके खिलाफ दिल्ली मंे नांगलोई के एसएचओ ने सीआरपीसी की धारा 200 और 156 के तहत शिकायत दर्ज करायी थी लेकिन उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने मुकदमें की अनुमति नहीं दी थी। उधर, सपा प्रमुख अखिलेश यादव मायावती की बसपा को भाजपा की बी टीम बताते रहते हैं।
भारतीय जनता पार्टी के पास पश्चिम यूपी से बड़ा चेहरा भूपेन्द्र चैधरी हैं। भूपेंद्र चैधरी की पश्चिम में जमीनी नेताओं में गिनती होती है और जाट बिरादरी में भूपेंद्र चैधरी सर्वमान्य नेता हैं। यही नहीं चैधरी ने लंबे समय तक पश्चिम में संगठनात्मक काम देखे हैं। यही वजह है कि पश्चिम यूपी में हर बिरादरी में भूपेंद्र चैधरी का दखल है और भारतीय जनता पार्टी ऐसे में उनके चेहरे पर ज्यादा भरोसा कर रही है। भूपेंद्र चैधरी ने इस बात को साबित भी किया है कि जब से वह भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश के अध्यक्ष बने हैं उसके बाद बीजेपी ने गोला उपचुनाव के अलावा लोकसभा और विधानसभा के उपचुनाव में जीत हासिल की है। वहीं, भूपेंद्र चैधरी के नेतृत्व में बीजेपी ने निकाय चुनाव में नगर निगमों में क्लीन स्वीप कर एक रिकॉर्ड भी बनाया है।
माना जा रहा है कि मिशन 2024 की तैयारियों में जुटी बीजेपी ने पश्चिम यूपी को लेकर अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए आरएलडी के साथ गठबंधन पर विराम लगा दिया है। इसकी वजह साफ है कि बीजेपी को आरएलडी के साथ गठबंधन में कोई बड़ा फायदा पश्चिम यूपी में नहीं होने वाला है क्योंकि जाट लैंड में बीजेपी की अपनी जीती हुई सीटें आरएलडी को गठबंधन में देनी पड़ेंगी। वहीं, बीजेपी जाट बाहुल्य इन सीटों पर वर्ष 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में जीत चुकी है। यहां विधानसभा चुनावों में 136 में से 93 सीटें बीजेपी ने जीती थीं। उस समय सपा के साथ गठबंधन में आरएलडी को महज 8 सीटें मिलीं थीं।
भाजपा के रणनीतिकारों का मानना है कि पश्चिम में बीजेपी की हारी हुई सीटों पर आरएलडी से ज्यादा बीएसपी मुफीद है, क्योंकि जाटव वोटों की संख्या निर्णायक है और बीएसपी का एकजुट जाटव वोट बैंक बीजेपी के साथ आने से बड़ा फायदा बीजेपी और बीएसपी दोनों को होगा। पश्चिम में बीजेपी ओबीसी और जाटव वोटबैंक के एकजुट होने से लोकसभा चुनावों में फायदे में रहेगी। ऐसे में बीजेपी के लिए आरएलडी के मुकाबले बीएसपी ज्यादा मुफीद है। वर्ष 2014 में यूपी प्रभारी अमित शाह ने बिना आरएलडी के चुनाव लड़ने का फैसला लिया था। परिणाम आया कि उस चुनाव में छह बार बागपत की सीट से सांसद रहे स्वर्गीय चैधरी अजीत सिंह अपनी सीट नहीं बचा पाए थे। इतना ही नहीं उनके बेटे जयंत चैधरी को भी मथुरा में पहली बार चुनाव लड़ रही बीजेपी उम्मीदवार हेमा मालिनी ने मात दे दी थी। यानी बीजेपी की जाटलैंड में जाट वोट बैंक को लेकर जो टेंशन थी वह चुनाव परिणाम आने के बाद दूर हो गई थी। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा ने गठबंधन कर लिया था आरएलडी भी उनके साथ थी। चर्चा यही थी की ये गठबंधन बीजेपी के लिए काफी नुकसानदायक साबित होगा, लेकिन, जब परिणाम आए तो सारे कयास धरे के धरे रह गए। आरएलडी को इस गठबंधन में कुल 3 सीटें मिली थीं और उसे तीनों सीटों पर मात मिली थी। स्वर्गीय चैधरी अजीत सिंह को मुजफ्फरनगर सीट पर संजीव बालियान ने चुनाव में पराजित किया था, तो वहीं बागपत सीट पर जो आरएलडी का गढ़ माना जाता है, जयंत चैधरी को बीजेपी के सांसद सत्यपाल सिंह ने मात दे दी थी। इतना ही नहीं मथुरा की लोकसभा सीट पर आरएलडी के कुंवर नरेंद्र सिंह को हेमा मालिनी ने हरा दिया था और मार्जिन भी लगभग तीन लाख के आसपास थी।
अब 2022 के विधानसभा चुनाव की बात करते हैं जिसमें सपा के गठबंधन में आरएलडी ने पश्चिम में कई सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे। अगर पश्चिम की बात करें तो तकरीबन 136 सीटें पश्चिम में आती हैं। यह चुनाव इसलिए भी महत्वपूर्ण था क्योंकि किसान आंदोलन के बाद खासतौर से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट वोट बैंक को लेकर एक तरीके से बीजेपी के भीतर भी चिंता थी, लेकिन जब चुनाव परिणाम आए तो जीत बीजेपी के खाते में भाई जबकि सपा के साथ गठबंधन के बावजूद भी आरएलडी को 8 सीटों पर जीत मिली और उनके गठबंधन को कुल 43 सीटों पर जीत हासिल हुई। जबकि, बीजेपी ने वहां 93 सीटों पर जीत हासिल की। सूत्रों की मानें तो जयंत चैधरी पश्चिम की बागपत मुजफ्फरनगर अलीगढ़ कैराना और मथुरा सीट अपने लिए गठबंधन में चाहते हैं, लेकिन बीजेपी इन सीटों पर 2014 में भी जीत हासिल करने में कामयाब रही और 2019 में भी उसे ही जीत हासिल हुई। बीजेपी का ये भी मानना है कि नगीना बिजनौर सहारनपुर रामपुर संभल अमरोहा ऐसी सीटें हैं, जहां पर वोटों का जो गणित है वह बीजेपी के लिहाज से उतना मुफीद नहीं। अगर इन सीटों पर जयंत चैधरी अपनी दावेदारी करें तो शायद बीजेपी को यह सीटें उन्हें देने में कोई ज्यादा दिक्कत नहीं आने वाली थी।
उत्तर प्रदेश में हाल ही में नगर निकायों के भी चुनाव हुए अगर बागपत की खेकड़ा नगर पालिका की बात करें तो यह सबसे पुरानी निकायों में शामिल है। इसे अंग्रेजी हुकूमत में आजादी से बहुत पहले ही 1884 में टाउन एरिया कमेटी बना दिया गया था। इस नगर पालिका में आधे से अधिक जाट समुदाय के वोटर हैं, लेकिन नगरपालिका के चुनाव में इस सीट पर बीजेपी ने जीत हासिल की। यानी इस सीट पर जाट समाज का वोट बीजेपी के पक्ष में गया। वर्तमान में बहुजन समाज पार्टी के 10 सांसद हैं। बिजनौर नगीना अमरोहा सहारनपुर अंबेडकरनगर श्रावस्ती लालगंज घोसी और गाजीपुर के साथ-साथ जौनपुर की लोकसभा सीट बसपा के खाते में है। इसमें
अगर पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सीटों को देखें तो यहां बसपा अपने कोर वोट बैंक जाटव और मुस्लिम
समाज के सहारे दूसरे दलों के
लिए सबसे बड़ी मुश्किल खड़ी कर सकती है। (हिफी)