गठबंधन ‘इंडिया’ पर सवाल

बेंगलुरू मंे 26 विपक्षी दलों के गठबंधन पर भाजपा और उसके सहयोगी दलों का आरोप राजनीतिक ही कहा जा सकता है लेकिन विवादास्पद दिल्ली सेवा विधेयक पर मतदान में जयंत चैधरी का गैर हाजिर होना चैंकाता है। जयंत चैधरी को लेकर यह कहा जा रहा था कि वह भाजपा के साथ ज्यादा सहज महसूस करेंगे। दरअसल, उन दिनों एक ट्वीट आया था जिसमंे जयंत चैधरी कह रहे थे- चावल, बिरयानी या खीर…। इसके बाद उन्होंने लिखा जब चावल ही खाने हैं तो खीर क्यों न खाई जाए…। हालंाकि इसके बाद जयंत चैधरी ने बयान जारी किया था कि वह सपा के साथ थे और सपा के साथ ही रहेंगे। अब फिर तरह-तरह के कयास लगाये जा रहे हैं। हालंाकि यह बात भी समझ मंे नहीं आती कि जब सपा प्रमुख अखिलेश यादव इंडिया गठबंधन मंे शामिल है तो उनके सांसद और पूर्व कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल भी वोट डालने नहीं पहुंचे थे। चैंकाने वाला बयान कांग्रेस का भी है जब आम आदमी पार्टी ने कहा कि सभी चुनाव मिलकर लड़ेंगे तो कांग्रेस का स्पष्ट जवाब नहीं मिला। ध्यान रहे कि दिल्ली सेवा विधेयक पर कांग्रेस का साथ देने के लिए अरविन्द केजरीवाल ने राहुल गांधी को पत्र लिखकर आभार जताया।
सीएम अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस नेताओं राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे को पत्र लिखकर दिल्ली सेवा विधेयक पर उनके समर्थन के लिए धन्यवाद दिया, जिसे आम आदमी पार्टी (आप) और अन्य विपक्षी दलों की तीखी आपत्तियों के बीच संसद में मंजूरी दे दी गई। दोनों कांग्रेस नेताओं को लिखे पत्रों में, दिल्ली के मुख्यमंत्री और आप प्रमुख ने कहा कि वह आपकी सराहना करना चाहते हैं और यह अधिनियम दशकों तक याद रखा जाएगा। सीएम केजरीवाल ने लिखा, “मैं जीएनसीटीडी (संशोधन) विधेयक, 2023 को अस्वीकार करने और उसके खिलाफ मतदान करने में आपकी पार्टी के समर्थन के लिए दिल्ली के दो करोड़ लोगों की ओर से आभार व्यक्त करते हुए आपको लिख रहा हूं। मैं संसद के अंदर और बाहर दिल्ली के लोगों के अधिकारों की वकालत करने के लिए हार्दिक सराहना करना चाहता हूं। मुझे यकीन है कि हमारे संविधान के सिद्धांतों के प्रति आपकी अटूट निष्ठा दशकों तक याद रखी जाएगी। उन्होंने लिखा, हम संविधान को कमजोर करने वाली ताकतों के खिलाफ लड़ाई में आपके निरंतर समर्थन की आशा करते हैं।
केंद्र सरकार को दिल्ली में नौकरशाहों पर नियंत्रण देने वाला विधेयक संसद के दोनों सदनों से पारित हो गया है और राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद यह कानून बन जाएगा। सरकार विधेयक को राज्यसभा के माध्यम से प्राप्त करने में सक्षम थी, जहां उसके पास बहुमत नहीं था, क्योंकि बीजेडी और वाईएसआर कांग्रेस जैसी पार्टियों ने इसके पक्ष में मतदान किया था। केजरीवाल, जिन्होंने बिल के खिलाफ आप की लड़ाई में देश भर में विपक्षी दलों को एकजुट किया था, उन्होंने दिल्ली और पंजाब जैसे राज्यों में दोनों दलों के बीच तीव्र प्रतिद्वंद्विता के बावजूद कांग्रेस का समर्थन मांगा था। दिल्ली सेवा
विधेयक पर मतदान के दौरान राज्यसभा में विपक्ष के भारतीय राष्ट्रीय विकासात्मक समावेशी गठबंधन (इंडिया) को 105 वोट मिलने थे, जिसके लिए 90 वर्षीय पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह व्हीलचेयर पर आए। हालांकि, जब नतीजे आए तो गठबंधन को 102 वोट ही मिले थे। राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) प्रमुख चैधरी जयंत सिंह, समाजवादी पार्टी (एसपी) समर्थित स्वतंत्र उम्मीदवार कपिल सिब्बल और जनता दल-सेक्युलर (जेडीएस) सुप्रीमो और पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा ने वोट नहीं दिया। इसके बाद अब तमाम तरह के कयास लगाए जाने लगे हैं, और तमाम तरह के राजनीतिक सिद्धांत सामने आ रहे हैं। जयंत चैधरी की गैर-मौजूदगी केवल विपक्षी गुट के लिए वोट के बारे में नहीं है, बल्कि इसके बाद अगले साल लोकसभा चुनाव से पहले संभावित रालोद-भारतीय जनता पार्टी गठबंधन की चर्चा फिर से जीवित हो गई है, जिसे रालोद प्रमुख ने पहले ही शांत कर दिया था। युवा जाट नेता ने उपस्थित नहीं होने की वजह कुछ अपरिहार्य कारणों को बताया है लेकिन इसने निश्चित तौर पर विपक्षी गुट को असहज कर दिया है। उत्तर प्रदेश में दलितों में पैठ रखने वाली बहुजन समाजवादी पार्टी (बसपा) पहले ही गुट में नहीं है। देश के सबसे बड़े राज्य से किसी का नहीं होना या किसी को खोना इंडिया गठबंधन कतई नहीं चाहेगा। इसके अलावा, आग में घी डालने का काम भाजपा की हालिया ‘टीम नड्डा’ की घोषणा ने किया, जहां जाटों को छोड़कर लगभग सभी समुदायों- वैश्य, पिछड़ा, ठाकुर, ब्राह्मण, मुस्लिम- को प्रतिनिधित्व मिला। जाट राज्य की 20 करोड़ आबादी का केवल 2 फीसद हैं, लेकिन अगर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 25 निर्वाचन क्षेत्रों की बात की जाए तो यहां वह 30 फीसद से 35 फीसद आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसकी वजह से उन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। व्यापक धारणा यह है कि भाजपा को इस बात का भरोसा है कि चैधरी, जो अपने दादा चैधरी चरण सिंह की विरासत संभाल रहे हैं और अपने समुदाय पर पकड़ रखते हैं, आगामी आम चुनावों में भाजपा का साथ देंगे।
इसी तरह पिछले साल कांग्रेस से बाहर निकलने के बाद कपिल सिब्बल ने निर्दलीय सांसद होने के बावजूद सपा के समर्थन से राज्यसभा सीट जीती थी। कांग्रेस छोड़ने पर सिब्बल ने कहा था, ‘आप सोच रहे होंगे कि 31 साल बाद कोई कांग्रेस कैसे छोड़ सकता है। कुछ तो बात होगी। कभी-कभी ऐसे फैसले लेने पड़ते हैं।’ सिब्बल कांग्रेस के विद्रोही समूह जी-23 का चेहरा थे और उनका बाहर जाना एक कड़वाहट भरा अनुभव था, कई लोगों का मानना है कि दरार अभी तक ठीक से भरी नहीं है। दूसरी ओर, उच्च सदन से सिब्बल की अनुपस्थिति अखिलेश यादव पर सवाल खड़ा करती है, जिनकी पार्टी दिल्ली सेवा विधेयक के मुद्दे पर विपक्षी गुट के साथ खड़ी थी। विशेष रूप से, सिब्बल उस दिन अनुपस्थित थे जबकि यादव की पत्नी डिंपल लोकसभा में मौजूद थीं।
जनता दल सेक्युलर (जेडीएस) नेता देवेगौड़ा भी अनुपस्थित थे, उन्होंने खराब स्वास्थ्य का हवाला दिया। आनन फानन में जारी एक प्रेस नोट में कहा गया कि उनके कूल्हे में दर्द है जिस वजह से वह ज्यादा देर तक बैठने में असमर्थ हैं। हालांकि, दिलचस्प बात यह है कि इसमें यह भी कहा गया है कि अगर उनका दर्द कम हो गया तो वह वापसी करेंगे। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी होने के बावजूद देवेगौड़ा और पीएम मोदी के बीच घनिष्ठ संबंध हैं। एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में, देवेगौड़ा ने पीएम मोदी के प्रति अपना सम्मान सार्वजनिक किया था।
विपक्षी दलों के गठबंधन इंडिया पर ये ऐसे सवाल हैं जो गठबंधन को चिंतित किये हैं। (हिफी)
(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)