अमित शाह ने खोली ब्रिटिश हथकड़ी

केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने राजद्रोह कानून खत्म कर दिया। इसके साथ ही आईपीसी (इंडियन पेनल कोड), सीआरपीसी अर्थात् दंड प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम आईसी को खत्म कर भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, भारतीय न्याय संहिता और भारतीय साक्ष्य संहिता के लिए विधेयक पेश किया जो पारित भी हो जाएगा। आईपीसी 1860 मंे, सीआरपीसी 1898 और आईईसी 1872 में अंग्रेजों ने लागू की थी।
आजादी के 76 साल बाद भी अगर हम गुलामी के समय के कानून की हथकड़ी पहने हैं तो यह निश्चित रूप से शर्मनाक है। पूर्ववर्ती सरकारों को यह काम बहुत पहले करना चाहिए था जो 11 अगस्त 2023 को केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने किया है। विपक्षी दल इसकी भी आलोचना कर रहे हैं जिसका कोई औचित्य नहीं है। केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने राजद्रोह कानून खत्म कर दिया। इसके साथ ही आईपीसी (इंडियन पेनल कोड), सीआरपीसी अर्थात् दंड प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम आईसी को खत्म कर भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, भारतीय न्याय संहिता और भारतीय साक्ष्य संहिता के लिए विधेयक पेश किया जो पारित भी हो जाएगा। आईपीसी 1860 मंे, सीआरपीसी 1898 और आईईसी 1872 में अंग्रेजों ने लागू की थी। अमित शाह ने ब्रिटिश हथकड़ियों को खोल दिया है।
आपराधिक प्रक्रिया संहिता यानी क्रिमिनल प्रोसीजर कोड की जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 लेगी। इसके जरिए सीआरपीसी के नौ प्रावधानों को निरस्त किया जाएगा। इसके अलावा विधेयक में सीआरपीसी के 107 प्रावधानों में बदलाव और नौ नए प्रावधान पेश किये गये हैं। विधेयक में कुल 533 धाराएं हैं। भारतीय दंड संहिता 1860 की जगह भारतीय न्याय संहिता, 2023 जगह लेगी। ये नया बिल आईपीसी के 22 प्रावधानों को निरस्त करेगा। साथ ही नए बिल में आईपीसी के 175 मौजूदा प्रावधानों में बदलाव का प्रस्ताव रखा गया है। नए विधेयक में नौ नई धाराएं भी जोड़ी गई हैं। भारतीय न्याय संहिता, 2023 में कुल 356 धाराएं हैं। इसकी जगह भारतीय साक्ष्य विधेयक, 2023 लेगा। नया विधेयक में साक्ष्य अधिनियम के पांच मौजूदा प्रावधानों को निरस्त किया जाएगा। बिल में 23 प्रावधानों में बदलाव का प्रस्ताव रखा गया है और एक नया प्रावधान पेश किया गया है। इसमें कुल 170 धाराएं हैं।
गृह मंत्री शाह ने लोकसभा में ये बिल पेश करते हुए कहा कि मैं आज जो तीन विधेयक पेश कर रहा हूं उनमें आपराधिक न्याय प्रणाली का सिद्धांत कानून भी शामिल है। उन्होंने कहा कि इसमें एक है भारतीय दंड संहिता जो 1860 में बनी थी। दूसरी है आपराधिक प्रक्रिया संहिता जो 1898 में बनी थी और तीसरी है भारतीय साक्ष्य अधिनियम है जो 1872 में बनी थी। उन्होंने कहा कि अब राजद्रोह कानून पूरी तरह से निरस्त कर दिया जाएगा। गृह मंत्री शाह ने कहा कि 1860 से 2023 तक देश की आपराधिक न्याय प्रणाली अंग्रेजों द्वारा बनाए गए कानूनों के अनुसार कार्य करती रही। तीन कानूनों को बदल दिया जाएगा और देश में आपराधिक न्याय प्रणाली में एक बड़ा बदलाव आएगा।
ये तीन विधेयक क्रमशः भारतीय न्याय संहिता विधेयक, भारतीय नागरिक सुरक्षा विधेयक और भारतीय साक्ष्य विधेयक हैं। नये बदलाव में पहचान छिपाकर किसी महिला से शादी करने या विवाह, पदोन्नति और रोजगार के झूठे वादे की आड़ में यौन संबंध बनाने पर 10 साल तक की कैद हो सकती है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 1860 की भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) को बदलने के लिए लोकसभा में भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) विधेयक पेश किया और कहा कि इसमें महिलाओं के खिलाफ अपराधों से संबंधित प्रावधानों पर विशेष ध्यान दिया गया है। शाह ने कहा, ‘‘इस विधेयक में महिलाओं के खिलाफ अपराध और उनके सामने आने वाली कई सामाजिक समस्याओं का समाधान किया गया है। शादी, रोजगार, पदोन्नति का वादा और झूठी पहचान की आड़ में महिलाओं के साथ संबंध बनाना पहली बार अपराध की श्रेणी में आएगा। शादी का झांसा देकर बलात्कार का दावा करने वाली महिलाओं के मामलों से अदालतें निपटती हैं, लेकिन आईपीसी में इसके लिए कोई विशेष प्रावधान नहीं है। इस विधेयक की अब एक स्थायी समिति द्वारा जांच की जाएगी। विधेयक में कहा गया है, ‘‘जो कोई भी, धोखे से या बिना विवाह के इरादे से किसी महिला से शादी करने का वादा करता है और उसके साथ यौन संबंध बनाता है, तो यह यौन संबंध बलात्कार के अपराध की श्रेणी में नहीं आता है, लेकिन अब इसके लिए 10 साल तक की कैद की सजा दी जाएगी और जुर्माना भी लगाया जा सकता है। फौजदारी मामलों की वरिष्ठ वकील शिल्पी जैन ने कहा कि यह प्रावधान लंबे समय से लंबित था और इस तरह के प्रावधान की अनुपस्थिति के कारण, मामलों को अपराध नहीं माना जाता था और दोनों पक्षों की तरफ से कई व्याख्या के विकल्प खुले थे।
जैन ने कहा कि कुछ लोगों का मानना है कि पहचान छिपाकर शादी करने के विशिष्ट प्रावधान को झूठे नामों के तहत अंतरधार्मिक विवाह के मामलों में लक्षित किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि यहां मुख्य बात यह है कि झूठ के सहारे ली गई पीड़िता की सहमति को स्वैच्छिक नहीं कहा जा सकता। जैन ने दावा किया, ‘‘हमारे देश में पुरुषों द्वारा महिलाओं का शोषण किया जा रहा है, जो उनसे शादीशादी का झांसा देकर बलात्कार का दावा करने वाली महिलाओं के मामलों से अदालतें निपटती हैं, लेकिन आईपीसी में इसके लिए कोई विशेष प्रावधान नहीं है। इस विधेयक की अब एक स्थायी समिति द्वारा जांच की जाएगी। विधेयक में कहा गया है, ‘‘जो कोई भी, धोखे से या बिना विवाह के इरादे से किसी महिला से शादी करने का वादा करता है और उसके साथ यौन संबंध बनाता है, तो यह यौन संबंध बलात्कार के अपराध की श्रेणी में नहीं आता है, लेकिन अब इसके लिए 10 साल तक की कैद की सजा दी जाएगी और जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
गृह मंत्री ने कहा कि त्वरित न्याय प्रदान करने और लोगों की समकालीन जरूरतों एवं आकांक्षाओं को ध्यान में रखते हुए एक कानूनी प्रणाली बनाने के लिए ये बदलाव पेश किए गए हैं। उन्होंने कहा, ‘‘सामूहिक बलात्कार के सभी मामलों में 20 साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा होगी। 18 साल से कम उम्र की लड़कियों से बलात्कार के मामले में मृत्युदंड की सजा निर्धारित की गई है। विधेयक में कहा गया है कि हत्या के अपराध के लिए मौत की सजा या आजीवन कारावास की सजा होगी। विधेयक के अनुसार, यदि किसी महिला की बलात्कार के बाद मृत्यु हो जाती है या इसके कारण महिला मरणासन्न स्थिति में पहुंच जाती है, तो दोषी को कठोर कारावास की सजा दी जाएगी, जिसकी अवधि 20 वर्ष से कम नहीं होगी और इसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है। (हिफी)
(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)