Uncategorizedविविध

स्वतंत्रता दिवस के सबक-5

 

इतिहास हमंे पल-पल यही बताता है कि हमसे सीखो लेकिन हमने आज तक इतिहास से नहीं सीखा। भारत के इस 77वें स्वतंत्रता दिवस पर हम कम से कम एक बात तो समझ ही लें कि जब तक हम बिखर कर रहेंगे तब तक कोई भी मोहम्मद गोरी या महमूद गजनवी आकर न सिर्फ लूटेगा बल्कि अपने पांव भी जमा लेगा। मीरजाफर और जयचंद्र जैसे गद्दारों से सावधान रहना होगा और आजादी के लिए बलिदान देने वाले सभी लोगों को याद रखना होगा। संघर्ष जब जटिल हो जाए तब महात्मा गांधी जैसे धैर्य की जरूरत होती है। इसीलिए 1857 मंे मंगल पांडेय ने जो स्वाधीनता की अलख जगाई थी उसकी उपलब्धि 15 अगस्त 1947 को हो सकी जब पंडित जवाहर लाल नेहरू ने लालकिले से ब्रिटिश के यूनियन जैक को उतारकर भारत के तिरंगे को फहराया था।
15 अगस्त 1947 वह भाग्यशाली दिन था जब भारत को ब्रिटिश उपनिवेशवाद से स्वतंत्र घोषित किया गया और नियंत्रण की बागडोर देश के नेताओं को सौंप दी गई। भारत द्वारा आजादी पाना उसका भाग्य था, क्योंकि स्वतंत्रता संघर्ष काफी लम्बे समय चला और यह एक थका देने वाला अनुभव था, जिसमें अनेक स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने जीवन कुर्बान कर दिए।यह प्रत्येक भारतीय को एक नई शुरूआत की याद दिलाता है। इस दिन 200 वर्ष से अधिक समय तक ब्रिटिश उपनिवेशवाद के चंगुल से छूट कर एक नए युग की शुरूआत हुई थी।भारत विश्व की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक है जिसमें बहुरंगी विविधता और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत है। इसके साथ ही यह अपने-आप को बदलते समय के साथ ढ़ालती भी आई है। आजादी पाने के बाद भारत ने बहुआयामी सामाजिक और आर्थिक प्रगति की है। भारत कृषि और सुरक्षा में आत्मनिर्भर बन चुका है और अब दुनिया के सबसे औद्योगीकृत देशों की श्रेणी में भी इसकी गिनती की जाती है। विश्व का सातवां बड़ा देश होने के नाते भारत शेष एशिया से अलग दिखता है जिसकी विशेषता पर्वत और समुद्र ने तय की है और ये इसे विशिष्ट भौगोलिक पहचान देते हैं।
करीब 250 वर्षों तक भारत ब्रिटिश शासन के अधीन था। गोपाल कृष्ण गोखले के अनुरोध पर 1915 में महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे, जिसके बाद इन्होंने देशवासियों को संगठित कर अंग्रेजों के खिलाफ अहिंसक आंदोलन छेड़ दिया। साउथ अफ्रीका में आजमाए सत्याग्रह का गांधीजी ने यहां भी बखूबी प्रयोग किया। 1857 की महान क्रांति पर काबू पा लेने वाली अंग्रेजी सरकार गांधीजी के अहिंसक आंदोलन के सामने पस्त नजर आने लगी। इसका कारण था कि कांग्रेस जो पहले सिर्फ एलीट क्लास का संगठन थी, उससे बड़े पैमाने पर आम भारतीय नागरिक जुड़ने लगे। चंपारण आंदोलन भारत का पहला नागरिक अवज्ञा आंदोलन था जो बिहार के चंपारण जिले में महात्मा गांधी की अगुवाई में 1917 को शुरू हुआ था। इस आंदोलन के माध्यम से गांधी ने लोगों में जन्में विरोध को सत्याग्रह के माध्यम से लागू करने का पहला प्रयास किया जो ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आम जनता के अहिंसक प्रतिरोध पर आधारित था।जब गुजरात का एक गाँव खेड़ा बुरी तरह बाढ़ की चपेट में आ गया, तो स्थानीय किसानों ने शासकों से कर माफ करने की अपील की। यहां गांधी ने एक हस्ताक्षर अभियान शुरू किया जहां किसानों ने करों का भुगतान न करने का संकल्प लिया। उन्होंने ममलतदारों और तलतदारों के सामाजिक बहिष्कार की भी व्यवस्था की। जिसके कारण 1918 में सरकार ने अकाल समाप्त होने तक राजस्व कर के भुगतान की शर्तों में ढील दी।
उधर, देश में उठ रही आजादी की आवाज को दबाने के लिए अंग्रेजों द्वारा 1919 में रॉलेट ऐक्ट लाया गया। रॉलेट ऐक्ट को काले कानून के नाम से भी जाना जाता है। इस कानून में वायसरॉय को प्रेस को नियंत्रित करने, किसी भी समय किसी भी राजनीतिक को अरेस्ट करने के साथ ही बिना वांरट किसी को भी गिरफ्तार करने का अधिकार देने का प्रावधान था। महात्मा गांधी के नेतृत्व में पूरे देश में इसका विरोध किया गया। इतना ही नहीं महात्मा गांधी तथा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व में 1920 में असहयोग आंदोलन चलाया गया था। इस आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को एक नई जागृति प्रदान की। गांधी जी का मानना था कि ब्रिटिश हाथों में एक उचित न्याय मिलना असंभव है इसलिए उन्होंने ब्रिटिश सरकार से राष्ट्र के सहयोग को वापस लेने की योजना बनाई और इस प्रकार असहयोग आंदोलन की शुरुआत की गई।ब्रिटिश राज के एकाधिकार के खिलाफ महात्मा गांधी ने नमक सत्याग्राह शुरू किया था, महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए सभी आंदोलनों में से नमक सत्याग्रह सबसे महत्वपूर्ण था। बता दें कि महात्मा गांधी ने 12 मार्च, 1930 में साबरमती आश्रम जो कि अहमदाबाद स्थित है। दांडी गांव तक 24 दिनों का पैदल मार्च निकाला था।अमृत संकल्प में राष्ट्रीय ध्वज
गांधी जी समाज को भी सुधार रहे थे, देश में फैले छुआछूत के विरोध में महात्मा गांधी ने 8 मई 1933 से छुआछूत विरोधी आंदोलन की शुरुआत की थी। यह आंदोलन पूरे देश में इस तरह फैला कि देश में काफी हद तक छुआछूत खत्म हो गई। इसके बाद गांधी जी ने अखिल भारतीय छुआछूत विरोधी लीग की स्थापना 1932 में की थी। इसके बाद भी देश को आजाद कराने का जज्बा फीका नहीं पड़ा।
महत्मा गांधी ने अगस्त 1942 में अंग्रेजों के खिलाफ भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की, इस आंदोलन के कारण भारत छोड़ कर जाने के लिए अंग्रेजों को मजबूर किया गया। इसके साथ ही एक सामूहिक नागरिक अवज्ञा आंदोलन करो या मरो भी आरंभ किया गया, इस आंदोलन के कारण ही देश के आजादी की नींव पड़ी। अंततः 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हो गया।
आजादी के तीन साल बाद, नागा नेशनल काउंसिल ने उत्तर पूर्व भारत में स्वतंत्रता दिवस के बहिष्कार का आह्वान किया। इस क्षेत्र मेंख्26, अलगाववादी विरोध प्रदर्शन 1980 के दशक में तेज हो गए और उल्फा व बोडोलैंड के नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड की ओर से आतंकवादी हमलों व बहिष्कारों की खघ्बरें आती रहीं। 1980 के दशक से जम्मू-कश्मीर में उग्रवाद में वृद्धि के साथ, अलगाववादी प्रदर्शनकारियों ने बंद करके, काले झंडे दिखाकर और ध्वज जलाकर वहां स्वतंत्रता दिवस का बहिष्कार किया। अब मणिपुर, मिजोरम में अशांति है। भारत के स्वतंत्रता दिवस से हमने क्या सीखा, इस पर मनन करने की जरूरत है। (हिफी)

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button