बिहार फिर जंगलराज की ओर!

क्या यह सब अपराध रोजमर्रा के सामान्य अपराध बतौर माने जा सकते हैं अथवा यह बिहार में एक बार फिर जंगल राज की ओर कदम बढ़ाने के संकेत हैं। रंजिश के चलते भी जब किसी की हत्या कर देने में अपराधियों के हाथ नहीं कांपते, तो इसे कानून-व्यवस्था की बड़ी नाकामी ही माना जाना चाहिए। बिहार में वैसे तो नीतीश कुमार सुशासन का दम भरते नहीं थकते, मगर हकीकत यह है कि वहां हिंसा का सिलसिला अब भी थमा नहीं है। जैसे अपराधियों की लगाम सरकार के हाथ से ढीली हो चुकी है।
बिहार में नीतीश सरकार के राज में भी बेखौफ अपराधी सरेआम खूंरेजी कर अपने खतरनाक मनसूबों को अंजाम दे रहे है। पहले यह आरोप लालू यादव की सरकार था। अररिया जिले में पत्रकार विमल कुमार की दिनदहाड़े गोली मारकर हत्या का मामला पूरे देश में चर्चा का विषय बना हुआ है और देश का ध्यान बिहार में बिगड़ रही कानून व्यवस्था की ओर खींच रहा है यह मामला अभी शांत नहीं हुआ और रविवार को हत्या के दो मामले सामने आए हैं। डबल मर्डर से एक बार फिर सनसनी फैल गई है। बेगूसराय में मॉर्निंग वॉक पर निकले एक टीचर की गोली मारकर हत्या कर दी गई। वहीं दूसरा मामला मोतिहारी में सामने आया है, जिसमें एक ठेकेदार को गोलियों से भून डाला।
बिहार में रविवार (20 अगस्त) को डबल मर्डर का मामला सामने आया है। बेगूसराय के बछवारा क्षेत्र के फतेहा पंचायत में एक टीचर की हत्या कर दी गई। यह घटना फतेहा रेवले स्टेशन के पास हुई है। बताया जा रहा है कि आपसी रंजिश के चलते अपराधियों ने 70 साल के रिटायर्ड टीचर को गोली मार दी गई। मृतक जवाहर राय फतेहा गांव के रहने वाले थे। अपराधियों ने फरवरी 2021 उनके बेटे की भी हत्या कर दी गई थी। इस मामले में मृतक चश्मदीद गवाह थे। दूसरी घटना प्रदेश के मोतिहारी जिले से सामने आ आई है। यहां सब्जी खरीदने गए ठेकेदार की भी गोली मारकर हत्या कर दी। अपराधियों ने चकिया थाना चैक पर अंजाम दिया है। स्थानीय लोगों के अनुसार ठेकेदार राजीव कुमार सब्जी खरीद रहे थे, तब बदमाशों ने उनके सीने में दो गोली मार दी। घटना के बाद मौके पर पहुंची पुलिस को 3 खाली खोले मिले है।
क्या यह सब अपराध रोजमर्रा के सामान्य अपराध बतौर माने जा सकते हैं अथवा यह बिहार में एक बार फिर जंगल राज की ओर कदम बढ़ाने के संकेत हैं। रंजिश के चलते भी जब किसी की हत्या कर देने में अपराधियों के हाथ नहीं कांपते, तो इसे कानून-व्यवस्था की बड़ी नाकामी ही माना जाना चाहिए। बिहार में वैसे तो नीतीश कुमार सुशासन का दम भरते नहीं थकते, मगर हकीकत यह है कि वहां हिंसा का सिलसिला अब भी थमा नहीं है। जैसे अपराधियों की लगाम सरकार के हाथ से ढीली हो चुकी है। इसका ताजा उदाहरण अररिया में एक पत्रकार की हत्या है। चार लोगों ने अलसुबह एक पत्रकार का दरवाजे पर दस्तक दी पत्रकार आंखों को मलते बाहर आया तो हमलावर दरिंदों ने दरवाजा खोलते ही गोली मार कर उसकी हत्या कर दी। अगर अपराधियों में कानून-व्यवस्था का तनिक भी भय रहा होता, तो वह एक राष्ट्रीय अखबार के संवाददाता बतौर कार्यरत पत्रकार की सरेआम हत्या कर देने का दुस्साहस नहीं कर पाते हालांकि ताजा अपडेट के मुताबिक पुलिस ने उन सभी आरोपियों को पकड़ लिया है।
बताया जा रहा है कि इस हत्या के पीछे दो और लोगों का भी हाथ था, जो पहले से जेल में बंद हैं। गिरफ्तार एक आरोपी भवेश नशीले पदार्थों के अवैध कारोबार के लिए पुलिस और अवैध धंधेबाजों के बीच दलाली करने वाला बताया जा रहा है पुलिस के कई थाना प्रभारी उसके दोस्त बताए गए हैं वह उनके तबादले पर स्वागत और बिदाई कार्यक्रम आयोजित कराता रहा है जिस पत्रकार की हत्या की गई वह नशे के कारोबार के खिलाफ खबर लिखता था इसलिए भी बदमाशों की आंखों का कांटा बना था मृतक के पिता ने प्राथमिकी में लिखवाया है कि चार साल पहले उनके बड़े बेटे को भी इन्हीं लोगों ने गोली मार कर हत्या कर दी थी। रंजिश पुरानी है। उस हत्या का एकमात्र चश्मदीद उसका छोटा भाई यानी पत्रकार ही था और उस पर अपना बयान बदलने का लगातार दबाव बन रहा था। वह अपने बयान से नहीं मुकरा, तो उसे रास्ते से ही हटा दिया गया। इस घटना से आपराधिक वृत्ति के लोगों की दबंगई का अंदाजा लगाया जा सकता है। ऐसा नहीं माना जा सकता कि जब चश्मदीद पर बयान से मुकरने का दबाव बनाया जा रहा था, तो उसकी जानकारी पुलिस को नहीं रही होगी। मगर पुलिस ने उसकी सुरक्षा का कोई इंतजाम क्यों नहीं किया, यह हैरानी की बात है। कानून के मुताबिक अगर किसी गवाह को डरा-धमका कर बयान बदलने पर मजबूर किया जाता है, तो उसकी सुरक्षा के इंतजाम करना पुलिस का काम है। मगर वहां पुलिस तो शायद इस इंतजार में थी कि कोई बड़ी घटना हो जाए! ऐसी खबरें आती रही हैं कि बिहार में किस तरह अपराधी जेलों में रहते हुए भी संगठित अपराधों को अंजाम देते हैं! फिर जो बाहर घूम रहे हैं, उनसे भला किस प्रकार के भय या फिर कानून के पालन की उम्मीद की जा सकती है।
यह ठीक है कि कुछ साल पहले जिस तरह बदमाश दिन-दहाड़े रंगदारी वसूलते, अपहरण कर फिरौती मांगते और मामूली बातों पर गोली दाग दिया करते थे, उसमें कुछ कमी आई है, मगर कानून-व्यवस्था का जैसा भय होना चाहिए, वह बिहार में कहीं नहीं है। जिस पत्रकार की हत्या कर दी गई, वह निश्चित रूप से जागरूक रहा होगा और पुलिस से भी उसके संपर्क रहे होंगे। जरूर उसे अपने ऊपर हमले की आशंका रही होगी। उसने इस संबंध में पुलिस को बताया भी होगा, मगर आखिरकार उसकी सुरक्षा नहीं हो सकी। देश में पुलिस और अपराधियों का गठजोड़ किसी से छिपा नहीं है। बिहार में यह कुछ अधिक ही है। इसलिए इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि बदमाशों ने इस भरोसे के साथ पत्रकार की हत्या कर दी कि बाद में मामले को अपने पक्ष में किया जा सकता है। इस घटना के बाद स्वाभाविक ही बिहार में रोष है। विपक्षी दलों को सरकार को घेरने का मौका मिल गया है।
कुछ लोग इसे नितीश कुमार के भाजपा से पाला बदल कर विपक्षी दलों के साथ सुर मिलाने और सरकार चलाने की वजह से तूल देने की बात कह रहे हैं लेकिन ऐसा मानना प्रत्यक्ष व परोक्ष दोनों तरह से कानून व्यवस्था की बिगड़ती हालत से आंख बंद करना होगा। ऐसे हालात में राज्य सरकार से यही उम्मीद की जा सकती है कि वह इन घटनाओं को गंभीरता से लेकर अराजकता फैला रहे अपराधियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई कर अपनी कार्यशीलता को साबित करे ताकि बिहार को जंगलराज के कलंक से बचाया जा सके। (हिफी)
(मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)