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मामा ने रूठों को मनाया

 

मामा अर्थात् मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान राजनीति की फसल मौसम देखकर उगाते हैं। राज्य में विधानसभा चुनाव सिर पर आ गये हैं। हालांकि भाजपा हाईकमान ने राज्य मंे सीएम पद का कोई चेहरा घोषित नहीं किया है लेकिन जिस तरह चैहान के दोनों हाथ खुले छोड़े गये हैं, उससे यही लग रहा है कि वही मुख्यमंत्री बनेंगे। इसलिए अपना रास्ता पूरी तरह साफ करने के लिए ही चैहान ने मंत्रिमंडल का विस्तार किया है। इस विस्तार के माध्यम से कुछ रूठे हुए नेताओं को मनाने का प्रयास किया गया है। बताया जाता है कि पार्टी की वरिष्ठ नेता और मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती नाराज थीं। शिवराज सिंह चैहान ने मंत्रिमंडल का विस्तार कर राहुल सिंह लोधी को मंत्री बनाया है। खरगापुर के विधायक राहुल लोधी को राज्यमंत्री बनाया गया है। राहुल सिंह उमा भारती के भतीजे हैं। इस प्रकार उनकी बुआ का गुस्सा शांत कर दिया गया है। इसी प्रकार विंध्य का बड़ा ब्राह्मण चेहरा माने जाने वाले राजेन्द्र शुक्ला को कैबिनेट मंत्री बनाकर ब्राह्मण वर्ग को अच्छा संदेश दिया गया है। राज्य में इसी साल के अंत में विधानसभा के चुनाव होने हैं। शिवराज सिंह चैहान ने कमलनाथ से सत्ता छीनी थी लेकिन इस बार अपने दम पर सरकार बनाना चाहते हैं।
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान ने 26 अगस्त को अपने मंत्रिमंडल का विस्तार किया। इस दौरान 3 नए मंत्रियों ने राजभवन में सुबह करीब 9 बजे शपथ ली। रीवा के विधायक राजेंद्र शुक्ला और बालाघाट के विधायक गौरीशंकर बिसेन ने कैबिनेट मंत्री, जबकि खरगापुर के विधायक राहुल लोधी ने राज्य मंत्री पद की शपथ ली। पूर्व मंत्री रहे राजेंद्र शुक्ला और गौरीशंकर बिसेन का नाम पहले से तय माना जा रहा था। विंध्य से आने वाले राजेंद्र शुक्ला रीवा से विधायक हैं। वे विंध्य का बड़ा ब्राह्मण चेहरा हैं। शुक्ला रीवा सीट से चार बार से लगातार विधायक हैं। इसके अलावा वे शिवराज सरकार में उद्योग मंत्री भी रह चुके हैं। सवर्णों की नाराजगी के बाद भी 2018 के चुनाव में बीजेपी को विंध्य में बड़ी कामयाबी मिली थी। रीवा जिले की सभी आठों सीट पर पार्टी के उम्मीदवार चुनाव जीते थे। वहीं, गौरीशंकर बिसेन को महाकौशल क्षेत्र का सबसे मजबूत चेहरा माना जाता है। वे बालघाट से 7वीं बार चुनाव जीत कर विधायक बने हैं। इसके अलावा वे 2008 में लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी और सहकारिता मंत्री रहे हैं। 2013 में वे फिर चुनाव जीत कर किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग के मंत्री बने। वहीं टीकमगढ़ के खरगापुर से विधायक राहुल सिंह लोधी की लोधी समाज में अच्छी पकड़ मानी जाती है। राहुल सिंह लोधी पूर्व केंद्रीय मंत्री और मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के भतीजे हैं।
शिवराज सिंह चैहान और पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के बीच शीत युद्ध की खबरें कोई नई नहीं हैं। उनकी अदावत पिछले 17 सालों से मध्य प्रदेश की सियासत में हमेशा बयानबाजी के रूप में देखने को मिलती रही। आखिर इसकी शुरुआत कब से हुई? यह प्रश्न हमेशा से राजनीति के दिग्गजों के बीच सुर्खियां बटोरता है। राजनीति के दो दिग्गजों के बीच विवाद का कारण एक दो नहीं बल्कि अनगिनत है। हालांकि दोनों ही खुले मंच से हमेशा एक दूसरे को भाई-बहन के रिश्ते से पुकारते हुए दिखते हैं। बात उन दिनों की है जब साल 2003 तक
मध्य प्रदेश की राजनीति में सियासत के बड़े खिलाड़ी पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का राज था। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की कांग्रेस सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए तत्कालीन कोयला मंत्री उमा भारती को मध्य प्रदेश बीजेपी का अध्यक्ष बनाकर भेजा गया। पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती की खासियत रही है कि उन्होंने सियासत में कभी पद नहीं बल्कि संघर्ष को चुना है, इसलिए उन्होंने केंद्रीय मंत्री पद के पद से पल भर में इस्तीफा भी दे दिया। इसके बाद पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का मध्य प्रदेश से पत्ता साफ हो गया।
एमपी में बीजेपी की सरकार बनी तो उमा भारती ने मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली। मुख्यमंत्री बनते ही उमा भारती ने अपने पसंदीदा नेताओं को पार्टी की मंशा के अनुरूप मंत्री पद से नवाजा। सरकार ठीक चल रही थी। इसी बीच साल 1994 के एक मामले में हुबली के कोर्ट से वारंट जारी हुआ। इस वारंट की तामील को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती को अगस्त 2004 में इस्तीफा देना पड़ा। पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती इस्तीफा देते ही बीजेपी के वरिष्ठ नेता दिवंगत बाबूलाल गौर एमपी का जिम्मेदारी दी गई। हालांकि गौर भी लंबे समय तक सीएम के पद पर काबिज नहीं रह पाए। इस दौरान शिवराज सिंह चैहान की जमीन तैयार की जा रही थी। उन्हें सांसद रहते हुए मध्य प्रदेश बीजेपी का अध्यक्ष बना दिया गया। इसके बाद फिर शिवराज सिंह चैहान को सीएम की जिम्मेदारी मिली। उन्होंने अपनी काबिलियत और जनता के बीच लोकप्रियता के चलते मंझे में हुए राजनीतिक खिलाड़ी के तौर पर लगातार चार बार सीएम की कुर्सी पर अपना सिक्का जमा लिया। वर्तमान में भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान अगले सीएम के रूप में भी देखे जा रहे हैं। इस दौरान कई बार पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती से उनकी सीधी टक्कर देखने को मिली।
मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव की तैयारियां राजनीतिक दलों के साथ ही चुनाव आयोग ने भी शुरू कर दी है। मतदाता सूची में नाम जुड़वाने और हटाने का क्रम जारी है। भाजपा के पास जहां अपनी सरकार बचाए रखने की चुनौती है, तो डेढ़ साल में ही सत्ता से बाहर हुई कांग्रेस दोबारा सरकार बनाने के प्रयास में जुटी है, वहीं उम्मीद की जा रही है कि मध्य प्रदेश में नवंबर माह में चुनाव करवाए जा सकते हैं। दरअसल, इन दिनों मध्य प्रदेश में मतदाता सूची का पुनरीक्षण जारी है, जिसमें नए मतदाताओं के नाम भी जोड़े जा रहे हैं। इसमें 1 अक्टूबर 2023 को 18 साल की उम्र पूरी कर रहे लोग भी अपना नाम जुड़वा सकते हैं और वे इस विधानसभा चुनाव में वोट भी डाल सकेंगे। जाहिर सी बात है कि ऐसे में अक्टूबर माह तक ता चुनाव नहीं हो सकते। लिहाजा पूरी स्थिति को देखें तो नवंबर माह में ही चुनाव होने की उम्मीद जताई जा रही है। मध्य प्रदेश में अंतिम विधानसभा चुनाव 2018 में हुआ था। चुनाव आयोग ने 28 नवंबर को एक ही चरण में प्रदेश में चुनाव करवा दिए थे।
ध्यान देने की बात है कि 2018 के चुनाव में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी और सपा, बसपा और अन्य के साथ मिलकर कांग्रेस ने सरकार बनाई थी। चुनाव परिणाम में कांग्रेस ने 114 सीटों पर जीत दर्ज की थी। जबकि 15 सालों तक सत्ता में रही भाजपा को 109 सीटों पर जीत मिली। इधर, बसपा ने 2, सपा ने 1 और अन्य ने 4 सीटों पर जीत दर्ज की थी। बाद में ज्योतिरादित्य सिंधिया के पाला बदलने से शिवराज सिंह चैहान ने सरकार बना ली। (हिफी)

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

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