भाजपा का दक्षिण मिशन

कर्नाटक में सत्ता गंवाने के बाद भाजपा को अपने दक्षिण मिशन पर ध्यान देना पड़ रहा है। हालंाकि उसका पूर्वी और पूर्वोत्तर भारत मिशन भी कमजोर नहीं पड़ेगा क्योंकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जिस तरह 2047 तक के लक्ष्य बना रहे हैं, उसमंे उत्तर भारत के साथ दक्षिण भारत को अपने साथ लाना बेहद जरूरी है। महाराष्ट्र में शिवसेना और राष्ट्रवादी पार्टी के टूटने के बाद मुख्यमंत्री की कुर्सी पर भले ही शिवसेना से आये एकनाथ शिंदे बैठे हैं लेकिन महाराष्ट्र भाजपा के कब्जे मंे आ गया है। कर्नाटक को फिर से अपने कब्जे मंे करना है, इसलिए पुराना फार्मूला ही आजमाया जा रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा की पार्टी जनता दल सेक्यूलर (जेडीएस) को भाजपा अपने साथ जोड़ रही है। इससे पहले भी यह प्रयोग किया जा चुका है। हालंाकि बीच रास्ते जेडीएस नेता कुमार स्वामी ने दगा दी लेकिन इसका फायदा भी भाजपा को मिला। विधानसभा चुनाव मंे भााजपा ने पूर्ण बहुमत से सरकार बनायी थी। अब भाजपा लोकसभा चुनाव से पहले फायदा उठाएगी। इसके लिए दोनों दलों मंे सीटों के बंटवारे पर फैसला हो चुका है। जेडीएस को भी पता है कि कांग्रेस के साथ उसे राजनीतिक घाटा ही उठाना पड़ता है। जेडीएस को पिछले लोकसभा चुनाव में 9.67 प्रतिशत वोट मिले थे जबकि विधानसभा चुनाव में 13.29 फीसद वोट मिले लेकिन सीटों की संख्या 37 से घटकर 19 पर आ गयी। इस प्रकार देवेगौड़ा को भी भाजपा के साथ लाभ मिलता दिख रहा है।
भाजपा ने 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए जद (एस) के साथ चुनाव लड़ने का निर्णय लिया है। कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा नेता बीएस येदियुरप्पा ने बताया कि केंद्रीय मंत्री अमित शाह भाजपा के साथ चुनावी समझौते के तहत जद (एस) को 4 लोकसभा सीटें देने पर सहमत हुए हैं। बीजेपी कर्नाटक हाथ से निकलने के बाद अब सभी दक्षिण भारतीय राज्यों में गठबंधन करना चाहती है। तमिलनाडु में एआईएडीएमके के साथ गठबंधन हो चुका है, सीटों के बंटवारे पर भी सहमति बन चुकी है। तेलंगाना और आंध्र्र प्रदेश में टीडीपी के साथ गठबंधन पर चर्चा चल रही है। पुड्डुचेरी में बीजेपी पहले ही गठबंधन सरकार में शामिल है। केरल में कुछ छोटे दलों से बातचीत चल रही है। कर्नाटक में जेडीएस के आने से मिशन दक्षिण को मजबूती मिलेगी।
लोकसभा चुनाव को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ने ही अपनी-अपनी तैयारियां तेज कर दी हैं। विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ भी अपनी कई बैठक कर चुका है और साथ मिलकर चुनाव लड़ने की रणनीति बना रहा है। सूत्रों के अनुसार, कर्नाटक की जेडीएस, बीजेपी के साथ गठबंधन की इच्छुक नजर आ रही है। जेडीएस ने हाल के दिनों में कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर बीजेपी का साथ दिया है। एचडी देवेगौड़ा ने बालासोर दुर्घटना पर रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव का बचाव किया था। नए संसद भवन के उद्घाटन में बाकी विपक्षी पार्टियों की अपील ठुकरा कर देवेगौडा पहुंचे थे। बीजेपी के साथ गठबंधन पर पूछे जाने पर देवगौड़ा बोले कि ऐसी कौन-सी पार्टी है, जो बीजेपी के साथ नहीं गई? कर्नाटक में जेडीएस 28 में से चार लोकसभा सीटों पर लड़ना चाहती है। ये सीटें हैं मांड्या, हासन, बैंगलुरु ग्रामीण और चिकबल्लापुर। पिछले लोक सभा चुनाव में बीजेपी ने 28 में से 25 सीटें जीती थीं। मांडया से जीतीं सुमनलता अंबरीष ने बीजेपी को समर्थन दिया था, जबकि जेडीएस केवल एक सीट हासन ही जीत सकी थी। पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवेगौडा भी चुनाव हार गए थे। विधानसभा चुनाव में खिसकती जमीन के बाद अब जेडीएस अपने अस्तित्व को बचाने की लड़ाई लड़ रहा है। बीजेपी के हाथ से भी सत्ता निकलने के बाद लोकसभा चुनाव में पिछली बार की सीटों को बचाए रखने की चुनौती है। दोनों पार्टियों के साथ आने से वे कांग्रेस को चुनौती दे सकती हैं। हालांकि, कई बीजेपी नेता गठबंधन के खिलाफ हैं, उनकी दलील कि बीजेपी अकेले ही कर्नाटक में पिछला प्रदर्शन दोहरा सकती है। उनके मुताबिक, जेडीएस अपनी खिसकती जमीन बीजेपी के बूते बचाना चाहती है।
बहरहाल, कर्नाटक की कांग्रेस सरकार मंे भी सब कुछ ठीक नहीं है। गन्ना और कृषि उत्पाद मंत्री शिवानंद पाटिल ने किसानों की आत्महत्या के बारे में बेहद शर्मनाक बयान दिया है। उनके मुताबिक मुआवजे की रकम के लिए किसान आत्महत्या करते हैं। कांग्रेस को यह बयान भारी पड़ रहा है। इस बयान को लेकर किसान संगठनों के साथ-साथ विपक्ष ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। आखिर कोई मंत्री इतना असंवेदनशील कैसे हो सकता है, वह भी तब जबकि उनकी ही सरकार ने 62 तालुकों को सूखाग्रस्त घोषित किया हो। मंत्री शिवानंद पाटिल के मुताबिक किसानों के आत्महत्या के मामलों में मुआवजे की राशि दो लाख से बढ़ाकर पांच लाख करने से किसानों की आत्महत्या के मामले बढ़े हैं।
कर्नाटक के कपड़ा, गन्ना और कृषि उत्पाद मंत्री शिवानंद पाटिल ने कहा कि, अब गरीब आदमी को लीजिए, उसे लगता है कि थोड़ा रिलीफ इसी तरह मिल जाए, यह एक नेचुरल फीलिंग है, इसीलिए ऐसा कर लेते हैं। मैं आपसे ये विनती कर रहा हूं कि आप आंकड़े देखें, 2015 से पहले जब मुआवजा राशि कम थी तब ऐसे मामले कम आते थे, लेकिन 2015 के बाद जब से मुआवजा राशि को बढ़ाकर पांच लाख किया गया, तब से किसान आत्महत्या के ज्यादा मामले रिपोर्ट हो रहे हैं। शिवानंद पाटिल के बयान से किसानों की आत्महत्याओं का सरकार का डेटा अलग है। पिछले पांच सालों में जहां 4257 किसानों ने आत्महत्याएं कीं वहीं 2022 में किसानों की आत्महत्या के 310 मामले सामने आए हैं। इस साल अब तक 96 किसानों ने आत्महत्याएं की हैं। साल 2015 से पहले मुआवजे के तौर पर दो लाख रुपये मृत किसान के परिवार को मिलते थे, लेकिन सिद्धारमैया सरकार ने 2015 में यह राशि बढ़ाकर पांच लाख कर दी और आश्रित को 800 रुपये हर महीने पेंशन देती है।
मंत्री शिवानंद पाटिल के बेतुके बयान से किसान खासे नाराज हैं। कर्नाटक किसान संघ के उपाध्यक्ष विट्ठल बी गनाचारी ने कहा है कि, इक्के-दुक्के ऐसे मामलों को सभी पर थोपना ठीक नही है। मंत्री के इस बयान से हम आहत हैं। यह बयान अपमानजनक है। किसान सूखे से परेशान हैं।
विपक्षी पार्टी बीजेपी भी मंत्री के बयान पर सवाल उठा रही है। बीजेपी विधायक डॉ अश्वतनारायण ने कहा कि, अगर हम 50 लाख मुआवजा दें तो क्या मंत्री आत्महत्या करेंगे? कांग्रेस सरकार को किसानों से सहानुभूति रखनी चाहिए। उन्हांेने कहा जिस सरकार ने खुद ही राज्य के अलग-अलग इलाकों को सूखाग्रस्त घोषित किया हो और कावेरी बेसिन के क्षेत्रों में पानी की कमी की वजह से खेती पर रोक लगाई हो, उसी सरकार का मंत्री किसानों की आत्महत्याओं को लेकर बेतुकी बयानबाजी करे तो ऐसे में सरकार के लिए खुद का बचाव करना मुश्किल हो गया है। किसानों की आत्महत्या से जुड़ा मामला संवेदनशील है, लेकिन मंत्री का बयान संवेदनहीन। इस प्रकार कांग्रेस के साथ जेडीएस कैसे खड़ी रह सकती है। (हिफी)
(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)