
राजनीति और मीडिया के बीच शीतयुद्ध अर्से से चल रहा है लेकिन विपक्षी दलों के गठबंधन इंडिया ने इसे आमने-सामने की लड़ाई मंे बदल दिया। मीडिया राजनीतिक खेमे में तब भी बंटा हुआ था जब एनडीटीवी के कार्यक्रम मंे रवीश कुमार कई बार गोदी मीडिया का उल्लेख करते थे। यह गोदी मीडिया क्या थी और अब भी है, इसे सभी जानते हैं लेकिन नाम नहीं लेते। न्यूज चैनलों पर डिबेट के नाम पर जो लोग आमंत्रित किये जाते थे, उनमंे ज्यादातर सत्तापक्ष से जुड़े रहते थे। मैंने योगेन्द्र यादव और प्रशांत किशोर को इस तरह की डिबेट मंे झुंझलाते हुए भी देखा है। आज न्यूज ब्राड कास्टर्स एंड डिजिटल एसोसिएशन (एनडीबीडीए) और नेशनल जर्नलिस्ट एसोसिएशन (एनजेए) जैसे मीडिया के संगठन इस बात पर आपत्ति जता रहे हैं कि 28 विपक्षी दलों के संगठन इंडिया ने 14 टेलिविजन एंकर के कार्यक्रमों में अपने प्रतिनिधि नहीं भेजने का फैसला क्यों किया? मेरी समझ मंे जिस तरह मीडिया के मौलिक अधिकार है, उसी तरह राजनीतिक दलों के भी मौलिक अधिकार हैं। राजनीतिक दल कोई अदालत के गवाह नहीं जिनको वकील साहेब के प्रश्ंनों का जवाब देना ही होगा। इस बीच कर्नाटक सरकार ने एक जाने-माने पत्रकार के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा दी है।
विपक्षी गठबंधन ‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस’ (इंडिया) के घटक दलों ने 14 सितम्बर, 2023 को फैसला किया कि वे देश के 14 टेलीविजन एंकर के कार्यक्रमों में अपने प्रतिनिधि नहीं भेजेंगे। न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एंड डिजिटल एसोसिएशन ने कहा कि बहिष्कार का यह फैसला एक खतरनाक मिसाल साबित होगा। यह लोकतंत्र के मूल्यों के खिलाफ है। वहीं, बीजेपी ने विपक्षी गठबंधन के इस फैसले की तुलना इंदिरा गांधी सरकार के दौरान लगाए गए आपातकाल से की है। विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ की मीडिया से संबंधित समिति की बैठक में यह फैसला किया गया। विपक्षी गठबंधन की मीडिया समिति ने एक बयान में कहा, 13 सितंबर, 2023 को अपनी बैठक में इंडिया समन्वय समिति द्वारा लिये गए निर्णय के अनुसार, विपक्षी गठबंधन के दल इन 14 एंकर के शो और कार्यक्रमों में अपने प्रतिनिधि नहीं भेजेंगे। एनबीडीए ने कहा, विपक्षी गठबंधन की मीडिया समिति के निर्णय ने एक खतरनाक मिसाल कायम की है। भारत की कुछ शीर्ष टीवी समाचार हस्तियों द्वारा संचालित टीवी समाचार शो में भाग लेने से विपक्षी गठबंधन के प्रतिनिधियों पर प्रतिबंध लोकतंत्र के लोकाचार के खिलाफ है। कांग्रेस के मीडिया विभाग के प्रमुख और विपक्षी गठबंधन की मीडिया समिति के सदस्य पवन खेड़ा ने कहा, रोज शाम पांच बजे से कुछ चैनल पर नफरत की दुकानें सजाई जाती हैं। हम नफरत के बाजार के ग्राहक नहीं बनेंगे। हमारा उद्देश्य है नफरत मुक्त भारत। खेड़ा ने यह भी कहा, बड़े भारी मन से यह निर्णय लिया गया कि कुछ एंकर के शो और कार्यक्रमों में हम भागीदार नहीं बनें। हमारे नेताओं के खिलाफ अनर्गल टिप्पणियां, फेक न्यूज से हम लड़ते आए हैं और लड़ते रहेंगे लेकिन समाज में नफरत नहीं फैलने देंगे।
उधर भाजपा ने भी इस कदम की निंदा की। पार्टी के प्रमुख प्रवक्ता और सांसद अनिल बलूनी ने कहा कि विपक्षी दलों ने अपनी दमनकारी, तानाशाही और नकारात्मक मानसिकता का प्रदर्शन किया है। बलूनी ने कहा कि भाजपा ऐसी विकृत मानसिकता का कड़ा विरोध करती है जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाती है। उन्होंने कहा, ‘‘आपातकाल के दौरान मीडिया का गला घोंट दिया गया था। इस ‘घमंडिया’ गठबंधन में शामिल दल उसी अराजक और आपातकालीन मानसिकता के साथ काम कर रहे हैं। बलूनी ने आरोप लगाया कि मीडिया को इस तरह की ‘खुली धमकी’ लोगों की आवाज दबाने के समान है।
बीजेपी नेता और केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी ने भी विपक्षी दलों के गठबंधन के इस कदम की तुलना आपातकाल से की। उन्होंने ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, ‘‘भारत में नागरिक स्वतंत्रता में कटौती का एकमात्र उदाहरण हमने 1975 में आपातकाल के दौरान देखा है। सनातन धर्म को खत्म करने के लिए खुला आह्वान, पत्रकारों के खिलाफ प्राथमिकी और मीडिया का बहिष्कार आपातकाल के उन अंधकारमय दिनों की राजनीति को दर्शाता है।
इस बीच, ‘नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स’ (एनयूजे) ने बहिष्कार को लोकतंत्र पर हमला करार दिया। एनयूजे ने आरोप लगाया कि विपक्षी दलों ने मीडिया का राजनीतिकरण किया है।
लेकिन क्या मीडिया का भी राजनीतिकरण नहीं हो गया है? कर्नाटक सरकार ने हिंदी न्यूज चैनल आज तक के न्यूज एंकर और पत्रकार सुधीर चैधरी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की धमकी दी है। उन पर अल्पसंख्यकों के लिए वाणिज्यिक वाहन सब्सिडी योजना के बारे में “जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण” गलत सूचना देने का आरोप लगाया है। विचाराधीन योजना में 4.5 लाख रुपये से कम घरेलू आय वाले धार्मिक अल्पसंख्यकों के लोगों को वाणिज्यिक वाहन खरीदने के लिए 50 प्रतिशत सब्सिडी देने का वादा किया गया है। कर्नाटक में पांच समुदाय हैं जिन्हें धार्मिक अल्पसंख्यकों के रूप में वर्गीकृत किया गया है- मुस्लिम, ईसाई, जैन, बौद्ध, सिख और पारसी। कर्नाटक के सूचना प्रौद्योगिकी और जैव प्रौद्योगिकी (आईटी/बीटी) मंत्री प्रियांक खरगे ने सोशल मीडिया पोर्टल एक्स पर कहा, “आजतक के एंकर जानबूझकर सरकारी योजनाओं पर गलत सूचना फैला रहे हैं, जिसे सबसे पहले भाजपा सांसदों ने शुरू किया था और मीडिया के एक वर्ग द्वारा इसे बढ़ाया जा रहा है। यह जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण है। पोस्ट में आज तक के एक शो प्रमोशन का स्क्रीनशॉट था जिसमें चैधरी दिख रहे थे, जिसका हिंदी कैप्शन था “कर्नाटक में अल्पसंख्यकों के लिए सब्सिडी लेकिन हिंदुओं के लिए नहीं?” उन्हें सरकार का पक्ष भी देना चाहिए था।
कर्नाटक अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के सचिव मनोज जैन ने मंगलवार को दिप्रिंट को बताया, “पहले यह 2.5 लाख रुपये (सब्सिडी) थी, अब यह तीनों विभागों (एससी/एसटी, पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक) के लिए इस बजट में पेश की गई एक नई योजना है। अब हम 3 लाख रुपये तक सब्सिडी दे रहे हैं। 3 लाख रुपये के साथ, इस योजना को स्वालंबी सारथी कहा जाता है।” ‘स्वावलंबी सारथी योजना’ के अनुसार, जिन लाभार्थियों को ऑटोरिक्शा/माल वाहन/टैक्सी की खरीद के लिए बैंक ऋण स्वीकृत किया गया है, उन्हें वाहन के मूल्य का 50 प्रतिशत या 3 लाख रुपये तक की सब्सिडी दी जाएगी।
राज्य सरकार पर भाजपा के हमले के हिस्से के रूप में केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर द्वारा पोस्ट किए गए एक विज्ञापन के अनुसार, पात्रता 18 से 55 वर्ष की आयु के धार्मिक अल्पसंख्यकों और 4.5 लाख रुपये से कम वार्षिक आय वाले सदस्यों के लिए है।
यह योजना एक शर्त के साथ आती है। अल्पसंख्यक विभाग के अनुसार, “आवेदकों या उनके परिवार के सदस्यों ने पिछले 5 वर्षों में कर्नाटक अल्पसंख्यक विकास निगम लिमिटेड की किसी अन्य योजना के तहत लाभ नहीं उठाया होना चाहिए।” कर्नाटक सरकार के दस्तावेजों से पता चलता है कि जब भाजपा सत्ता में थी, तब कर्नाटक अल्पसंख्यक विभाग ने 2022-23 में धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए छोटे वाणिज्यिक वाहनों की सुविधा के लिए सब्सिडी के वित्तपोषण के लिए 15 करोड़ रुपये का लक्ष्य रखा था। (हिफी)
(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)