गरीबों के सपनों को पलीता लगा रहे अफसर
जरूरत इस बात की है कि जिलाधिकारी और उपजिलाधिकारी समेत तमाम जनता से सीधे संपर्क में आने वाले अधिकारियों के व्यवहार पर आम जनता के साथ उनके व्यवहार को लेकर सर्वेक्षण कराया जाए तथा तमाम अधिकारियों की कार्यप्रणाली व उनके द्वारा जुटाए जा रही संपत्तियों पर पर्याप्त निगरानी की जाए ताकि दोनों हाथों से पब्लिक को लूट कर अपनी जेब भरने में लगे अधिकारी जन सरोकार के प्रति भी सचेत हो और अपनी ड्यूटी को ढंग से निर्वहन करें।
भारतीय प्रशासनिक सेवा, लोकसेवा आयोग व राज्य सिविल सेवा से चयनित होने के बाद प्रशिक्षण लेकर लोकसेवा में पदस्थ होने के बावजूद अधिकारी किस सीमा तक पद के मद और जुनून में मगरूर होकर आम आदमी के साथ अमानवीय शर्मनाक व्यवहार करते हैं, इसका ताजा नजीर उत्तर प्रदेश में बरेली के मीरगंज तहसील में तैनात एक एसडीएम को लेकर जारी एक वीडियो बताता है। यह वीडियो कितना सच है, इसकी गारेंटी तो नहीं लेकिन अभी हाल ही में एक विडियो वायरल हुआ इसमें एसडीएम साब के दफ्तर में उनकी टेबल के ठीक सामने एक फरियादी को मुर्गा बनाने का नजारा दिखाया गया। एसडीएम साहब पर आरोप है कि उन्होंने अपने कार्यालय में आये हुए एक फरियादी युवक को मुर्गा बनाया था जिसकी वीडियो वायरल हुई। अगर यह सच है तो एसडीएम दफ्तर में लगी गांधी और आंबेडकर की तस्वीरें भी इस युवा एसडीएम के कारनामे पर चीत्कार कर उठी होंगी।
यह मामला जिन पर नहीं बीता उनके लिए मामूली हो सकता है लेकिन एक लोकसेवकों द्वारा अवैध कब्जे के खिलाफ शिकायत करने पर एसडीएम का इतना आक्रोश भरा व्यवहार दाल में काला होने का संकेत देता है जहाँ एक ओर जन सरोकार से जुड़े एक संन्यासी मुख्यमंत्री की सरकार की कार्यप्रणाली सबका साथ और सबका विकास है वहीं ऐसे अधिकारी शासन की नीति के खिलाफ काम करर हे हैं। जिलाधिकारी ने एसडीएम को मुख्यालय से सम्बद्ध करने और जांच कराने की बात कही है।
मिली जानकारी के अनुसार बरेली के मीरगंज तहसील के मंडनपुर गांव निवासी एक युवक श्मशान भूमि की पैमाइश कराने के लिए एसडीएम के कार्यालय गया था लेकिन कब्जे की शिकायत से एसडीएम इतने खफा हो गए कि उसे अपने ही कार्यालय में मुर्गा बना दिया। एसडीएम उदित पवार ने इस सम्बन्ध में अपना तर्क दिया है कि उन्होंने युवक को मुर्गा नहीं बनाया बल्कि वह स्वयं ही अचानक ऑफिस में आकर मुर्गा बन गया और उनके साथ आये लोगों ने वीडियो बनाकर वायरल कर दिया।
इस में कोई संदेह नहीं कि देश भर में करोड़ों अरबों की सरकारी, एलएमसी जमीनों पट्टे की जमीनों श्मशान कब्रिस्तान तलाब सिंचाई नहरों व नदियों की जमीनों आदि पर भू-माफिया व दबंग राजनीतिकों के कब्जे हैं। गाजियाबाद में तैनात एक एडीएम स्तर के अधिकारी ने सपा शासन में धौलाना तहसील क्षेत्र में रिलायंस को भू-अधिग्रहण के पहले बड़ा खेल किया इस लोकसेवक ने कई सौ एकड़ भूमि अपने रिश्तेदारों के नाम बेनामी खरीदी और मुआवजा में कई गुना रकम हासिल कर ली। ऐसे अधिकारी रिटायर होने के बाद करोड़ों अरबों के वेयर हाउस और अन्य सम्पत्तियों के मालिक है।
इसी तरह लोक निर्माण विभाग के रिटायर्ड इंजीनियर भी अरबों के वेयर हाउस के मालिकान है। मजे की बात यह है कि ऐसे अधिकारियों के खिलाफ शिकायतों को आईएएस अधिकारी उनके सीनियर होने व समवर्ग होने के कारण तवज्जो नहीं देते हैं और एक-एक लोकसेवक अरबों की सम्पत्ति अपने कार्यकाल में जुटाने में कामयाब हो जाते हैं। आपके संज्ञान में यूपी के प्रमुख सचिव रहे वरिष्ठतम आईएएस अखंड प्रताप सिंह का मामला होगा। रिटायर्ड आईएएस विजय शंकर पाण्डेय की अगुआई में उस वक्त की आईएएस असोसिएशन ने 14 दिसंबर 1996 को यूपी के 13 मंडलों और दिल्ली में बैलेट बॉक्स रखवाकर चुनाव कराया। इसमें अखंड प्रताप सिंह, नीरा यादव और स्व. बृजेंद्र को 114 आईएएस अफसरों ने वोट डालकर महाभ्रष्ट चुना था। तत्कालीन यूपी सरकार ने लेकिन इस अनूठे प्रयोग पर कोई कार्रवाई नहीं की, जबकि विजय शंकर पाण्डेय, आईएएस प्रभात चतुर्वेदी, रेणुका कुमार और एसआर लाखा ने शपथपत्र के साथ भ्रष्टाचार के सबूत जुटाकर सरकार को भेजे थे। बाद में सीबीआई के दखल और कोर्ट के निर्देश पर मुकदमे दर्ज हुए, तो नीरा यादव को चार साल की सजा हुई और अखंड प्रताप सिंह के खिलाफ अब भी मुकदमा चल रहा है। सभी आरोपित अफसरों को जेल भी जाना पड़ा था।
हमारी जो प्रशासनिक और राजनीतिक व्यवस्था है, उसमें एक बात बड़ी साफ नजर आ रही थी कि न्याय और कानून के अनुसार काम करने के बजाय मजबूत और प्रभावशाली लोगों के हितों का ध्यान रखा जाए। इस कार्य संस्कृति में कभी सरकारों को जातीय क्षेत्रीय प्रभाव वाले राजनीतिक लोगों से जुड़ा होने पर कार्रवाई को ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है। प्रभावशाली और मजबूत लोगों के हितों का ध्यान रखा जाए। ऐसा करते हुए अगर सामान्य लोगों, गरीब लोगों के हितों की अनदेखी होती है, तो होने दी जाए।
यूपी में भी मुख्यमंत्री का जन सुनवाई पोर्टल है वहां भी प्रायः पीड़ित शिकायत करते हैं लेकिन रिपोर्ट करने वाले विभाग और कर्मचारी वही होते हैं वह अपने बचाव के रास्ते निकाल लेते हैं। पिछले दिनों मुरादाबाद जनपद के बिलारी तहसील में तैनात एसडीएम भी जमीनी घोटाले में लिप्त मिले। उन्हें भी अपदस्थ किया गया। प्रदेश में लोकसेवकों का व्यवहार सामंती है बरेली के मामले में डीएम ने पूरे मामले की जांच के आदेश दिये और उसमें एसडीए को प्रथम दृष्टया दोषी माना गया है लेकिन यदि यह वीडियो वायरल न हुआ होता तो स्थितियां क्या होती इसका अन्दाजा आप लगा सकते हैं।
सवाल उठता है कि लोक सेवकों को चयन प्रक्रिया से गुजरना होता है उन्हें प्रशिक्षण के दौरान भी जनता के साथ तारतम्य स्थापित कर शासन की कल्याणकारी योजनाओं का अधिकतम लाभ जरूरतमंदों को पहुंचाना होता है उसमें माना जाता है कि उच्चस्तर की शिक्षा ग्रहण करके और कड़ी मेहनत करके सेवा में आते हैं और प्रत्येक साक्षात्कार में ईमानदारी से काम करने शपथ के बावजूद वह जेब भरते हैं और जनता से दुर्व्यवहार करते हैं। जरूरत इस बात की है कि जिलाधिकारी और उपजिलाधिकारी समेत तमाम जनता से सीधे संपर्क में आने वाले अधिकारियों के व्यवहार पर आम जनता के साथ उनके व्यवहार को लेकर सर्वेक्षण कराया जाए तथा तमाम अधिकारियों की कार्यप्रणाली व उनके द्वारा जुटाए जा रही संपत्तियों पर पर्याप्त निगरानी की जाए ताकि दोनों हाथों से पब्लिक को लूट कर अपनी जेब भरने में लगे अधिकारी जन सरोकार के प्रति भी सचेत हो और अपनी ड्यूटी को ढंग से निर्वहन करें। (हिफी)
(मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)