लेखक की कलमसम-सामयिक

अमर्यादित बयानों पर दोहरे मापदंड

 

लोकसभा में रमेश विधूड़ी और दानिश का संवाद अनुचित था। शब्दों की मर्यादा होनी चाहिए। इसका पालन संसद से लेकर सड़क तक तक होना चाहिए लेकिन इस प्रकरण ने इंडिया गठबंधन और भाजपा नेतृत्व के बीच अन्तर को भी उजागर किया है। रमेश विधूड़ी के शब्द व्यक्ति विशेष के लिए थे। उन्होंने दानिश की तरफ उंगली दिखाते हुए अपनी बात कही थी। उस समय दानिश भी बोल रहे थे किन्तु उनकी बात पर चर्चा नहीं हुई। विधूड़ी ने जो कहा उसके लिए लोकसभा में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने खेद व्यक्त करते कहा कि इस प्रकार के शब्दों का प्रयोग नहीं होना चाहिए। इसके बाद भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने भी विधूड़ी को जवाब देने के लिए अपने कार्यालय में बुलाया था। यह भाजपा का नेतृत्व है जिसने अपने सांसद के बयान पर खेद व्यक्त किया। अपने सभी नेताओं को मर्यादा के साथ अपनी बात रखने का निर्देश दिया। दूसरी तरफ विपक्षी दलों का इंडिया गठबंधन है। कुछ दिन तो मीडिया में केवल रमेश विधूड़ी का बयान ही चलता रहा लेकिन भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने इस मामले में कुछ नई जानकारी दी है। उन्होंने लोकसभा अध्यक्ष को पत्र लिखा। बताया कि उस समय वह लोकसभा में उपस्थित थे। दानिश ने प्रधानमन्त्री के लिए अमर्यादित असंसदीय शब्द का प्रयोग किया था जिसको सुनकर रमेश विधूड़ी अपने को रोक नहीं सके।

जांच में दानिश के आचरण पर भी विचार करना आवश्यक है। इतना ही नहीं पिछले कुछ समय से प्रधानमंत्री के लिए जिस प्रकार के शब्दों का प्रयोग किया गया, उनको भी जांच में शामिल करना चाहिए। इस बीच दानिश के पिछले बयान भी चर्चा में आ गए। सांसद रवि किशन ने भी दानिश पर आरोप लगाया। उन्हांेने कहा कि कुछ समय पहले दानिश ने उन पर और उनके परिवार पर अमर्यादित टिप्पणी की थी। भारत माता की जय बोलने से भी दानिश आग बाबूला हो जाते हैं। इसके बाद भी विपक्ष के किसी नेता ने दानिश के अमर्यादित शब्द को निंदनीय नहीं बताया। सभी नेता रमेश विधूड़ी के पीछे पड़ गए जबकि उनका कथन केवल दानिश के लिए था। इंडिया गठबंधन और ओवैसी ने इसे अपनी वोटबैंक सियासत का मुद्दा बना दिया। ये वही नेता हैं जो हिन्दू सनातन धर्म पर हमले के बाद भी विचलित नहीं हुए। बिहार के मंत्री, सपा के राष्ट्रीय महासचिव, डीएमके के अनेक नेता, मंत्री, कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष और उनके कर्नाटक में मंत्री पुत्र के बयान तो पूरे सनातन धर्म के लिए थे।

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि संसद में चुनकर पहुँचने वाले प्रतिनिधि मंदिर की मूर्तियों की तरह हैं। सिर्फ दिखावे के लिए। उनके पास कोई शक्ति नहीं है। हिन्दुओं के मन्दिरों और वहां हमारे आराध्य की प्रतिमाओं के सम्बन्ध में यह राहुल का विचार है। मन्दिरों की मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा होती है। उनके दर्शनों के लिए जनसैलाब उमड़ता है। चुनाव के समय राहुल भी मन्दिरों में जाते हैं लेकिन सांसदों के सम्बन्ध में अपनी बात रखने को उन्हें यही उपमा सूझी। वस्तुतः यह कथन भी हिन्दुओं की आस्था पर प्रहार करने वाला है। बिहार के मंत्री ने श्रीरामचरित मानस पर अमर्यादित टिप्पणी की है। वह राजद के नेता हैं लेकिन राजद के अध्यक्ष या बिहार के मुख्यमंत्री ने उनके बयान की निंदा नहीं की, खेद व्यक्त नहीं किया।

इसी प्रकार बसपा फिर भाजपा से होते हुए सपा में पहुँचने वाले एक नेता भी श्री राम चरित मानस पर हमला बोलते हैं। उस नेता की निंदा की कौन कहे, उसे तो राष्ट्रीय महासचिव बना कर पुरस्कृत किया गया था। इसके बाद उनका मनोबल बढ़ गया। उसने हिन्दू शब्द का अर्थ बताते हुए सड़क छाप शब्दों का प्रयोग किया। सपा के कुछ हिन्दू नेताओं को यह शब्द खराब लगे लेकिन पार्टी हाईकमान का रुख देखते हुए वह मायूस और मौन हो गए। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के बेटे ने भी संसदीय मर्यादा की हदें पार कर दीं। उसने डेंगू मलेरिया की तरह सनातन के सम्पूर्ण उन्मूलन का प्रलाप किया। यूपीए सरकार के घोटालेबाज मंत्री सहित मल्लिकार्जुन खडगे के पुत्र ने उनका समर्थन किया लेकिन आज दानिश के लिए इंडिया गठबंधन बेहाल है। इनमे से सभी हिन्दू सनातन और श्री राम चरित मानस पर अपशब्दों के प्रयोग पर मौन थे। (हिफी)

(डॉ दिलीप अग्निहोत्री-हिफी फीचर)

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