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व्यापार कराधान की पूरी प्रणाली को सरल बनाएं  : अरविंद विरमानी

नयी दिल्ली। नीति आयोग के सदस्य अरविंद विरमानी ने व्यक्तिगत कर की तरह ही व्यवसाय कर की पूरी प्रणाली को सरल बनाने की वकालत की और कहा कि ‘फेसलेस’ मूल्यांकन सभी मामलों में काम नहीं कर सकता है। ‘फेसलेस’ मूल्यांकन में अधिकारी और करदाता को आमने-सामने आने की जरूरत नहीं होती। विरमानी ने कहा कि वह बड़े निगमों से सुन रहे हैं कि ‘फेसलेस’ मूल्यांकन का मतलब कभी-कभी एक प्रकार की अज्ञानता हो सकता है, क्योंकि व्यवसाय को अपने हर खर्च के संबंध में निर्णय करने की आवश्यकता होती है।
उन्होंने कहा, व्यावसायिक कराधान स्वाभाविक रूप से समस्याग्रस्त है। कभी-कभी आपको इसे समझाने की जरूरत होती है।’’ विरमानी ने कहा कि व्यवसाय के लिए व्यावसायिक कराधान का मतलब केवल कॉर्पोरेट कर नहीं है, इसका मतलब व्यक्तिगत कराधान के व्यावसायिक पहलू भी हैं। उन्होंने कहा, ‘‘आप एक ‘फेसलेस’ मूल्यांकन कर सकते हैं, यह 80 प्रतिशत मामलों के लिए काम कर सकता है लेकिन यह 10 प्रतिशत के लिए अधिक समस्याएं उत्पन्न कर सकता है।’’ प्रख्यात अर्थशास्त्री ने कहा, ‘‘ मेरा मानना है कि आपको व्यापार कराधान के लिए पूरी कर प्रणाली को सरल बनाना होगा।’’
विरमानी ने साथ ही दोहराया कि यूरोपीय संघ, अमेरिका और ब्रिटेन के साथ मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) पर हस्ताक्षर करना भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। युवाओं में बेरोजगारी के आंकड़े अधिक होने के सवाल पर उन्होंने कहा कि श्रमिकों की भागीदारी, जिससे नौकरियों का मापा जाता है.. वह 2017-18 (कृषि वर्ष) से 2021-22 (कृषि वर्ष) में बढ़ी है। उन्होंने कहा, ‘‘ आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) के आंकड़ों को देखें। 2021-22 (कृषि वर्ष) और 2017-18 (कृषि वर्ष) की अवधि के बीच आकस्मिक श्रमिकों की मजदूरी में प्रति वर्ष करीब पांच प्रतिशत की वृद्धि हुई है।’’ यह पूछे जाने पर कि संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के 10 वर्षों (2004-14) और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार के नौ वर्षों के प्रदर्शन की तुलना कैसे करेंगे? विरमानी ने कहा कि मुद्रास्फीति सहित अधिकतर व्यापक आर्थिक संकेतकों पर, मोदी सरकार ने पिछली संप्रग सरकार की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया है।

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