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कांग्रेस विधायक सुखपाल खैहरा गिरफ्तार

चण्डीगढ़। पंजाब पुलिस द्वारा 2015 के ड्रग्स मामले में कांग्रेस विधायक सुखपाल खैरा को हिरासत में लेने के बाद कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (आप) के बीच टकराव शुरू हो गया है। राज्य कांग्रेस प्रमुख अमरिन्दर सिंह राजा वारिंग ने इस कार्रवाई की निंदा की और इसे राजनीतिक प्रतिशोध बताया और कहा कि यह श्श्विपक्ष को डराने-धमकानेश्श् का एक प्रयास है। यह दोनों पार्टियों की पंजाब इकाई के बीच चल रही खींचतान के बाद आया है, जो विपक्ष के प्.छ.क्.प्.। ब्लॉक के लिए हाथ मिलाने के लिए सहमत नहीं हैं। वारिंग ने कहा कि पंजाब कांग्रेस विधायक सुखपाल खैरा की हालिया गिरफ्तारी से राजनीतिक प्रतिशोध की बू आती है, यह विपक्ष को डराने की कोशिश है और मुख्य मुद्दों से ध्यान भटकाने की आप पंजाब सरकार की चाल है।
राज्य कांग्रेस प्रमुख ने आगे कहा कि मैं इस गिरफ्तारी की निंदा करता हूं। यह जंगल राज है। कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे ने सुबह मुझे फोन किया और हमें खैरा के लिए लड़ने के लिए कहा। उनके परिवार ने कहा है कि उनके साथ कुछ भी हो सकता है। कांग्रेस नेता को पंजाब पुलिस ने नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस (एनडीपीएस) अधिनियम के मामले में हिरासत में लिया था। खैरा के बेटे मेहताब सिंह खैरा ने दावा किया कि उनके पिता ने पंजाब के सीएम भगवंत मान को बेनकाब किया है और इसके लिए उन्हें श्पदकश् मिल रहा है। उन्होंने कहा कि जहां तक घ्घ्हम जानते हैं, यह वही एफआईआर नंबर 35 है जो 2015 में दर्ज की गई थी, जिसका इस्तेमाल उन्होंने 8 साल बाद उन्हें गिरफ्तार करने के लिए किया था। यह राजनीतिक प्रतिशोध है।
पंजाब के स्वास्थ्य मंत्री बलबीर सिंह ने कहा कि एसआईटी की जांच रिपोर्ट के मुताबिक कार्रवाई की गई है। उन्होंने कहा कि कानून अपना काम कर रहा है। पुलिस ने जो किया वह कानून के मुताबिक है। उन्होंने कहा कि भगवंत मान सरकार की प्राथमिकता नशा मुक्त पंजाब है…इसलिए कोई भी हो और किसी भी पार्टी का सदस्य हो, कानून सबके लिए समान होगा, किसी को बख्शा नहीं जाएगा। आप सांसद सुशील गुप्ता ने कहा है कि कानून अपनी अदालत में जाएगा, ष्यह सर्वविदित है कि सुखपाल खैरा जी ड्रग्स के कारोबार में शामिल थे।ष् उन्होंने कहा कि सुखपाल सिंह खैरा के खिलाफ मामला अकाली दल शासन में दर्ज किया गया था और उन्हें कांग्रेस शासनकाल के दौरान गिरफ्तार किया गया था। इसके बाद वे कांग्रेस में शामिल हो गये और उन्हें राजनीतिक संरक्षण मिला। पहले सरकार के दबाव में अधिकारी कोई ठोस कार्रवाई नहीं कर पाते थे, अब वे स्वतंत्र हैं और कानून अपना काम कर रहा है।

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