बहुत नाजुक होती हैं लिव-इन रिलेशन की डोर!

आधुनिक युग में एक ओर जहां समाज में जागरूकता पैदा हुई है और संकुचित दायरे व पुरानी मान्यताएं दरक रहीं हैं तथा नई पीढ़ी के युवा अपनी पसन्द के जीवन साथी का चयन करना चाहते हैं लेकिन इस क्रम में इन दिनों युवा पीढ़ी के बच्चों में बिना संस्कार किए लिव इन रिलेशनशिप में रहने की प्रवृत्ति बढती जा रही है। कुछ वर्षों से एक नया चलन देखने में आ रहा है लिव इन रिलेशनशिप यानी बिना विवाह किए लड़का-लड़की या पुरुष महिला का साथ रहना। पश्चिमी देशों में यह चलन पहले से था, किन्तु भारत में हाल फिलहाल इसके मामले बढ़ने लगे हैं। न केवल मामले बढ़ रहे हैं, बल्कि समाज में स्वीकार्यता भी पहले की तुलना में बढ़ी है। लिव-इन रिलेशनशिप की जड़ कानूनी तौर पर संविधान के अनुच्छेद 21 में मौजूद है। अपनी मर्जी से शादी करने या किसी के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहने की आजादी और अधिकार को अनुच्छेद 21 से अलग नहीं माना जा सकता किन्तु इनके साथ-साथ एक नई तरह की समस्या भी आने लगी हैं। दुष्कर्म के झूठे मुकदमे दर्ज कराने की समस्या को लेकर अभी हाल ही में इलाहाबाद उच्च न्यायालय और दिल्ली उच्च न्यायालय ने इसी तरह के दो मामलों में अपना निर्णय सुनाया। यह फैसले लिव इन रिलेशनशिप से पनप रहे दूषित सम्बन्धों और उनके दुष्परिणामों पर रोशनी डालते हैं। दरअसल लिव इन रिलेशन की शुरुआत प्यार मोहब्बत ओर आकर्षण व यौन संबंधों की स्वच्छंदता से होती है जो बहुत जल्द परस्पर आकर्षण खत्म होने के कारण ब्रेकअप तक पहुंच जाती है और फिर इन संबंधों का पटाक्षेप यौन शोषण, दुष्कर्म, अत्याचार उत्पीड़न की अपराध गाथा उजागर करता है।
लाइव लॉ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, चार दशक पहले 1978 में बद्री प्रसाद बनाम डायरेक्टर ऑफ कंसोलिडेशन के केस में सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार लिव-इन रिलेशनशिप को मान्यता दी थी। यह माना गया था कि शादी करने की उम्र वाले लोगों के बीच लिव-इन रिलेशनशिप किसी भारतीय कानून का उल्लंघन नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर कोई कपल लंबे समय से साथ रह रहा है, तो उस रिश्ते को शादी ही माना जाएगा। इस तरह कोर्ट ने 50 साल के लिव-इन रिलेशनशिप को वैध ठहराया था। वहीं इन रिश्तों में रह रही महिला को कानूनी प्रावधानों का संरक्षण देने की कोशिश की गई है। इंदिरा शर्मा बनाम वी.के. शर्मा केस में सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि घरेलू हिंसा महिला संरक्षण, अधिनियम 2005 की धारा 2एफ में डोमेस्टिक रिलेशनशिप की जो परिभाषा है, उसमें लिव-इन रिलेशनशिप भी शामिल है। यानी जिस तरह इस एक्ट की मदद से शादीशुदा कपल खुद को घरेलू हिंसा से बचा सकता है, उसी तरह लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे कपल पर भी यह एक्ट लागू होता है। इतना ही नहीं जिस तरह पति की मृत्यु के बाद पत्नी का दिवंगत पति की संपत्ति पर अधिकार होता है। ठीक उसी तरह एक महिला के लिव-इन पार्टनर की मृत्यु के बाद उसके पार्टनर की विरासत में मिली संपत्ति पर उस महिला का अधिकार होता। धनूलाल बनाम गणेश राम के केस में अदालत ने माना था कि अगर एक लिव-इन रिलेशनशिप लंबे समय तक चलता है, तो उसे एक शादी की तरह ही माना जाएगा।
इस तरह के रिलेशन में कुछ गड़बड़ियों के मामले भी सामने आर रहे हैं। लंबे समय तक साथ रहने के बाद विवाद होने पर महिला अपने प्रेमी या पार्टनर पर दुष्कर्म का इल्जाम लगा देतीं है। हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने विवाहित पुरुष पर उसकी ‘लिव-इन पार्टनर’ द्वारा लगाए गए बलात्कार के आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि पहले ही किसी से विवाह बंधन में बंध चुकी महिला यह दावा नहीं कर सकती कि किसी अन्य व्यक्ति ने शादी का झूठा वादा कर उसके साथ यौन संबंध बनाए। न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा कि इस मामले में दो ऐसे व्यक्ति शामिल हैं जो एक-दूसरे से कानूनी रूप से विवाह करने के अयोग्य हैं, लेकिन वे ‘लिव-इन संबंध समझौते’ के तहत एक साथ रह रहे थे। उन्होंने कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (बलात्कार के लिए सजा) के तहत उपलब्ध सुरक्षा और अन्य उपायों का लाभ इस प्रकार की पीड़िताश् को नहीं मिल सकता। किसी अन्य के साथ विवाह बंधन में बंधे दो वयस्कों का सहमति से ‘लिव-इन’ संबंध में रहना अपराध नहीं है और पक्षकारों को अपनी पसंद चुनने का अधिकार है, लेकिन (ऐस मामलों में) पुरुषों और महिलाओं दोनों को इस प्रकार के संबंधों के परिणाम के प्रति सचेत होना चाहिए। ऐसा ही निर्णय इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सुनाया, जिसमें पुरुष की लिव-इन सहयोगी महिला ने उस पर दुष्कर्म का आरोप लगाया था। न्यायालय ने कहा कि इतने लंबे समय तक साथ रहने और बाद में किसी कारणवश अलग होने पर साथी पर दुष्कर्म का आरोप लगाना दुर्भावना भरा प्रतीत होता है।
साल 2001 में पायल शर्मा बनाम नारी निकेतन केस में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि एक आदमी और औरत को अधिकार है अपनी मर्जी से एक-दूसरे के साथ बिना शादी किए लिव-इन रिलेशनशिप में रहने का। कोर्ट ने यह भी जोड़ा कि हालांकि हमारा समाज लिव-इन रिलेशनशिप को अनैतिक मानता है, मगर कानून के हिसाब से न तो ये गैर-कानूनी है और न ही अपराध है।
अब ध्यान देने की बात यह है कि देश में दुष्कर्म की स्थिति पहले से ही गंभीर है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो गत वर्ष की रिपोर्ट के अनुसार देश में हर 2 मिनट में दुष्कर्म की 3 वारदात होती हैं। रिपोर्ट के अनुसार भारत में 2021 में दुष्कर्म के कुल 31,677 मामले, यानी रोजाना औसतन 86 मामले दर्ज किए गए। वहीं उस साल महिलाओं के खिलाफ अपराध के करीब 49 मामले प्रति घंटे दर्ज किए गए। रिपोर्ट के अनुसार, 2020 में बलात्कार के 28,046 मामले, जबकि 2019 में 32,033 मामले दर्ज किए गए थे। 2021 में राजस्थान में दुष्कर्म के सबसे अधिक 6,337 मामले दर्ज किए, जिसके बाद मध्य प्रदेश में 2,947, महाराष्ट्र में 2,496, उत्तर प्रदेश में 2,845, दिल्ली में 1,250 बलात्कार के मामले दर्ज किए गए। इन आंकड़ों का दूसरा पहलू यह भी है कि इनमें से अनेक मामले अदालतों में झूठे प्रमाणित होते हैं। पिछले दिनों उत्तर प्रदेश का ऐसा मामला बहुत चर्चा में रहा था, जिसमें एक सवर्ण जाति के युवक को फंसाने के लिए दलित जाति की महिला ने दुष्कर्म का आरोप लगा दिया। उस युवक को 20 वर्ष कारावास काटना पड़ा, उसके माता-पिता चल बसे और अब अदालत ने माना कि उसे झूठा फंसाया गया था। लिव इन में दुष्कर्म के अधिकांश मामले झूठे ही होते हैं। लेकिन धोखा देने के मामले बढ़ते जा रहे हैं। यहां तक तक लोग धर्म छिपाकर लिव इन रिलेशन में रहते हैं। इसलिए लिव इन रिलेशन की डोर मजबूत होनी चाहिए। (हिफी)
(मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)