लेखक की कलमसम-सामयिक

प्रजातंत्र को जातितंत्र न बनाएं

 

बिहार मंे काफी विरोध के बाद जातीय जनगणना संपन्न हुई है। नीतीश कुमार की सरकार ने उसके नतीजे भी सार्वजनिक कर दिये। पिछड़े वर्ग को दो भागों मंे दर्शाया गया है। एक पिछड़ा वर्ग, दूसरा अति पिछड़ा वर्ग। सबसे ज्यादा प्रतिशत इसी का है। इसके बाद अब हिस्सेदारी मांगी जाने लगी है। बसपा प्रमुख मायावती ने मांग की है कि केन्द्र और उत्तर प्रदेश की सरकार भी जाति के आधार पर जनगणना कराये। बिहार मंे सत्तारूढ़ गठबंधन के घटक राजद और जद(यू) तो बहुत खुश हैं और कहते हैं कि अब सभी जातियों का उत्थान करने मंे मदद मिलेगी। सीधी सी बात है कि अब आरक्षण का प्रतिशत बढाने की मांग होगी। इसके साथ ही जातीय जनगणना के बाद सभी समाज अपनी ताकत जुटाने मंे लगे हैं। कुर्मी समाज राजनीति में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने का दबाव बना रहा है तो क्ष़्ात्रिय समाज के 16 संगठन भी एकजुट हो गये। आशंका है कि लोकसभा और विधानसभा ़क्षेत्रों मंे कहीं यह मांग न उठने लगे कि इस क्षेत्र मंे फलां जाति का बहुमत है तो एमपी या एमएलए भी उसी जाति का आरक्षित होना चाहिए। इस प्रकार प्रजातंत्र जाति तंत्र में बदल जाएगा। इस बीच एक अच्छी बात यह देखने में आयी कि बिहार मंे जातिगणना रिपोर्ट पर सर्वदलीय बैठक भी बुलाई गयी। इस बैठक मंे भाजपा के प्रतिनिधियों ने आर्थिक और सामाजिक सर्वेक्षणों से संबंधित डाटा भी घोषित करने का सुझाव दिया है। यह बहुत जरूरी है। कुछ जातियां सामाजिक आर्थिक विकास नहीं कर पायीं, इसी आधार पर तो अनुसूचित जाति और पिछड़े वर्ग की जातियों ने आरक्षण मांगा लेकिन यह बात भी सामने आनी चाहिए कि अनुसूचित जाति, पिछड़े वर्ग मंे कितने लखपति, करोड़पति और बड़े-बड़े अधिकारी हैं। क्या इनके परिजनों को भी आरक्षण मिलना चाहिए?

बिहार में जातिगत जनगणना के संदर्भ में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सर्वदलीय बैठक बुलाई थी। इस बैठक मंे भाजपा ने आर्थिक और सामाजिक सर्वेक्षणों से संबंधित डाटा शािमल न करने पर आपत्ति जताई। हालांकि जातिगत जनगणना राजनीति का विषय बन गयी है और भाजपा भी इसको 2024 के लोकसभा चुनाव की दृष्टि से देख रही है लेकिन सर्वदलीय बैठक मंे भाजपा नेता विजय कुमार सिन्हा ने महत्वपूर्ण सवाल उठाया है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आश्वासन भी दिया है कि विधानसभा सत्र के दौरान सामाजिक व आर्थिक सर्वेक्षण से जुड़े आंकड़ों पर चर्चा की जाएगी। सर्वदलीय बैठक में जद(यू), राजद, कांग्रेस सहित प्रमुख राजनीतिक दलोें के नेता शामिल हुए थे। भाजपा की तरफ से विजय कुमार सिन्हा और हरि साहनी ने रिपोर्ट में खामियों पर चर्चा की। खामियों का जिक्र करते हुए रिपोर्ट का समर्थन भी किया। भाजपा के गठबंधन राजग का हिस्सा बन चुके दलित नेता जीतनराम मांझी ने तो जातिगत गणना की विसंगतियों और रिपोर्ट की सटीकता पर असंतोष व्यक्त किया। ये नेता अपनी बात स्पष्ट नहीं कर पाए और भाजपा के प्रतिनिधि भी जातिगत राजनीति में उलझे दिखाई पड़े लेकिन उन्हांेने जो सामाजिक-आर्थिक स्थ्ािित का सवाल उठाया है, उस पर गंभीरता से बहस होनी चाहिए।

उदाहरण के लिए यह माना गया कि अनुसूचित जाति के लोग आगे नहीं बढ़ पाये। उनके लिए आरक्षण की व्यवस्था स्वाधीनता पाने के बाद से ही कर दी गयी। अब इस बात के भी आंकड़े तलाशने पड़ेंगे कि अनुसूचित जाति के कितने लोग करोड़पति और अरबपति बन चुके हैं। कितने लोगों के परिवार मंे कोई बड़ा अफसर बन चुका है। इसके आंकड़े मिलने पर ही तय हो सकेगा कि क्या अमुक जाति के पांच लाख मंे से चार लाख तो सामाजिक-आर्थिक दृष्टि से काफी ऊंचे उठ चुके हैं। उनके बच्चों को अगर आरक्षण का लाभ दिया जा रहा है तो यह उन लोगों के अधिकार पर डाका डालना है जो उसी जाति के हैं लेकिन आगे नहीं बढ़ पाए। आंकड़ा भी तब सिर्फ एक लाख लोगों को सामाजिक-आर्थिक दृष्टि से आगे बढ़ाने का बचेगा जो कठिन कार्य नहीं है। इसी प्रकार मंडल आयोग की रिपोर्ट को प्रभावी करने के बाद पिछड़े वर्ग का भी सामाजिक-आर्थिक स्तर जांचने की जरूरत है।

बिहार मंे जाति आधारित गणना की रिपोर्ट जारी होने के बाद उत्तर प्रदेश मंे सियासत तेज हो गयी है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के बाद बसपा प्रमुख मायावती ने जातीय गणना को लेकर राज्य और केन्द्र सरकार पर दबाव बनाना शुरू किया है। मायावती ने कहा है कि यूपी सरकार को अपनी नीति और नीयत मंे जनभावना का ध्यान रखते हुए जातीय आधारित गणना पर सर्वे शुरू कर देना चाहिए। यह भी कहा कि असल मंे केन्द्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर जनगणना कराकर ही वाजिब अधिकार सुनिश्चित किया जा सकता है। मायावती ने सत्ताधारी दल भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा कि जातीय जनगणना से कुछ दल असहज महसूस कर रहे हैं। बसपा अध्यक्ष मायावती ने इंटरनेट मीडिया पर अपने पोस्ट में कहा कि जाति आधारित गणना के आंकड़े जारी करने की खबर काफी सुर्खियों में है और उस पर गहन चर्चाएं जारी हैं। कुछ पार्टियां इससे असहज जरूर हैं, किन्तु बसपा के लिए ओबीसी के संवैधानिक हक के लंबे संघर्ष की यह पहली सीढ़ी है। बसपा प्रमुख ने कहा कि वैसे तो यूपी सरकार को अपनी नीयत व नीति में जनभावना व जन अपेक्षा के अनुसार सुधार करके जातीय जनगणना पर सर्वे अविलंब शुरू कर देना चाहिए, किन्तु इसका सही समाधान तभी होगा जब केन्द्र सरकार राष्ट्रीय स्तर पर जाति आधारित गणना कराकर उन्हंे उनका वाजिब हक देना सुनिश्चित करेगी। बसपा प्रमुख मायावती कहती हैं कि बसपा को प्रसन्नता है कि देश की राजनीति उपेक्षित ‘बहुजन समाज’ के पक्ष मंे करवट ले रही है, जिसका नतीजा है कि एससी-एसटी आरक्षण को निष्क्रिय व निष्प्रभावी बनाने तथा घोर ओबीसी व मंडल विरोधी जातिवादी एवं साम्प्रदायिक दल भी अपने भविष्य के प्रति चिंतित नजर आने लगे हैं।

बिहार मंे जातीय जनगणना के आंकड़े प्रकाशित होने के बाद समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव की ‘पीडीए’ (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) राजनीति को भी पंख लग गये हैं। इसीलिए अखिलेश यादव ने कहा कि अब ‘पीडीए’ ही भविष्य की राजनीति की दिशा तय करेगा। यह तो लोकतंत्र की जगह जातितंत्र वाली बात हो गयी। जातिगत सम्मेलनों की बाढ़ आ जाएगी। जातिगत नेता अपनी जाति के वोट नीलाम कर सकते हैं।

सच है कि राजनीतिक दलों के नेता अपने भविष्य के प्रति ही चिंतित हैं। उनको पिछड़ों और गरीबों की चिंता है ही नहीं क्योंकि वाजिब हक तो तभी मिलेगा जब पात्र व्यक्ति को आरक्षण की सुविधा मिले। दलितों और पिछड़े वर्ग के नेता वोट की राजनीति के चलते क्या इतना साहस दिखा सकेंगे। बसपा प्रमुख ने योगी आदित्यनाथ की सरकार से अपनी नीयत व नीति में जनभावना व जन अपेक्षा के अनुसार सुधार करके जातीय जनगणना पर सर्वे अविलंब शुरू कर देने की अपील की है लेकिन यह नहीं कहा कि आर्थिक और सामाजिक सर्वे भी उसके साथ ही कराया जाए। इस समस्या का सही समाधान तभी हो सकता है। (हिफी)

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

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