लेखक की कलमसम-सामयिक

डाकिया डाक लाया… संवाद की मधुर याद है पोस्ट कार्ड

 

अपना पोस्ट कार्ड अब 154 साल का हो गया है। सोशल मीडिया में खोई युवा पीढ़ी का पोस्ट कार्ड से शायद ही कोई वास्ता रह गया है जबकि सिर्फ बीस साल पहले के दौर में पोस्ट कार्ड ही मोबाइल का काम करता था बस फर्क इतना है कि कि पोस्टकार्ड तीन से सात दिन के भीतर एक तरफ का संदेश देता था तथा बाद में रिप्लाई में भी इतना ही समय लग जाता था लेकिन मोबाइल ने संचार की गति को नया जन्म देकर तमाम परिवर्तन ला दिया। बीस साल की आयु वाले नवयुवकों का पोस्टकार्ड से शायद ही वास्ता पड़ा होगा लेकिन बता दें कि किसी समय एक दौर में पोस्टकार्ड खत भेजने का प्रमुख जरिया था। शादी-ब्याह, शुभकामनाओं से लेकर मौत की खबरों तक तो इन पोस्टकार्डों ने सहेजा है। तमाम राजनेताओं से लेकर साहित्यकारों व आंदोलनकारियों ने पोस्टकार्डका बखूबी प्रयोग किया है। अपना वही पोस्टकार्ड 1 अक्टूबर, 2023 को वैश्विक स्तर पर 154 साल का हो गया।

रिकार्ड के मुताबिक दुनिया में पहला पोस्टकार्ड एक अक्तूबर 1869 को ऑस्ट्रिया में जारी किया गया था। इंटरनेट के दौर में भी पोस्टकार्ड का क्रेज बरकरार, वाराणसी परिक्षेत्र में गत वर्ष कघरों से बिके 2.12 लाख पोस्टकार्ड। शादी-ब्याह शुभकामनाओं से लेकर विभिन्न आंदोलनों का गवाह रहा है पोस्टकार्ड।जन्म से लेकर अवसान तक की सूचना को पोस्टकार्ड के जरिए ही परस्पर एक दूसरे को भेजा जाता था।

आपको पोस्टकार्ड के प्रचलन में आने की कहानी बताते है दरअसल पोस्टकार्ड का विचार सबसे पहले ऑस्ट्रियाई प्रतिनिधि कोल्चेंस्टीनर के दिमाग में आया था, जिन्होंने इसके बारे में वीनर न्योस्टों में सैन्य अकादमी में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर डॉ. एमैनुएल हमैन को बताया। उन्हें यह विचार काफी आकर्षक लगा और उन्होंने 26 जनवरी 1869 को एक अखबार में इसके बारे में लेख लिखा। ऑस्ट्रिया के डाक मंत्रालय ने इस विचार पर बहुत तेजी से काम किया और पोस्टकार्ड की पहली प्रति एक अक्तूबर 1869 में जारी की गई। यहीं से पोस्टकार्ड के सफर की शुरुआत हुई। दुनिया का यह प्रथम पोस्टकार्ड पीले रंग का था। इसका आकार 122 मिलीमीटर लंबा और 85 मिलीमीटर चैड़ा था। इसके एक तरफ पता लिखने के लिए जगह छोड़ी गई थी, जबकि दूसरी तरफ संदेश लिखने के लिए खाली जगह छोड़ी गई।

भारत में पहला पोस्टकार्ड 1879 में जारी किया गया। हल्के भूरे रंग में छपे इस पहले पोस्टकार्ड की कीमत 3 पैसे थी और इस कार्ड पर श्ईस्ट इण्डिया पोस्टकार्ड छपा था। बीच में ग्रेट ब्रिटेन का राजविह मुद्रित था और ऊपर की तरफदाएं कोने मे लाल-भूरे रंग में छपी ताज पहने साम्राजी विक्टोरिया की मुखाकृति थी। अंदाज-ए-बय का यह माध्यम लोगों को इतना पसंद आया कि साल की पहली तीन तिमाही में ही लगभग 7.5 लाख रुपए के पोस्टकार्ड बेचे गए थे।
गौरतलब है कि डाकघरों में चार तरह के पोस्टकार्ड मिलते रहे हैं। मेघदूत पोस्टकार्ड सामान्य पोस्टकार्ड, प्रिंटेड पोस्टकार्ड और कम्पटीशन पोस्टकार्डी ये क्रमश रू 25 पैसे, 50 पैसे, 6 रूपये और 10 रूपये में उपलब्ध हैं। कम्पटीशन पोस्टकार्ड फिल्हाल बंद हो गया है। इन चारों पोस्टकार्ड की लंबाई 14 सेंटीमीटर और चैड़ाई 9 सेंटीमीटर होती है।

कम लिखे को ज्यादा समझना की तर्ज पर पोस्टकार्ड न सिर्फ व्यक्तिगत बल्कि तमाम सामाजिक-साहित्यिक- धार्मिक राजनैतिक आंदोलनों का गवाह रहा है। पोस्टकार्ड का खुलापन पारदर्शिता का परिचायक है तो इसकी सर्वसुलभता लोकतंत्र को मजबूती देती रही है। आज भी तमाम आंदोलनों का आरम्भ पोस्टकार्ड अभियान से ही होता है। ईमेल, एसएमएस, फेसबुक, ट्विटर और व्हाट्सएप ने संचार की परिभाषा भले ही बदल दी हो, पर पोस्टकार्ड अभी भी आम आदमी की पहचान है।
पोस्टकार्ड के प्रति अभी भी लोगों का क्रेज बरकरार है। वाराणसी परिक्षेत्र के डाकघरों द्वारा पिछले वित्तीय वर्ष में 2.12 लाख पोस्टकार्डों की बिक्री हुई थी, वहीं इस साल 1.29 लाख पोस्टकार्डों की बिक्री की जा सकी है।

हमारे पास करीब 120 साल पुरानी सैकड़ो पोस्टकार्ड का विपुल भंडार मौजूद है यह पोस्टकार्ड अंग्रेजों के जमाने के टाइम आजादी से पहले पिलखवा स्थित हीरा फार्मेसी के संचालक वेद हीरालाल तथा वेद हकीम चुन्नीलाल के संग्रह में मौजूद मिले हैं इन पोस्ट कार्ड को 100 से अधिक साल पहले हिंदुस्तान के अनेक प्रांतो से हीरा फार्मेसी पिलखवा के पत्ते पर भेजा गया था इन पोस्टकार्ड होकर 1904 1907 1913 1920 की डाक की मोहर मौजूद है यह पोस्टकार्ड हकीम चुन्नीलाल के परिजनों ने आज तक संग्रह करके रखे हुए हैं संभव है कि देश में संग्रह किए गए पोस्ट कार्ड में यह पोस्टकार्ड सबसे पुरानी हो ये पोस्टकार्ड ब्रिटिश गवर्नमेंट के जमाने के हैं। यह पोस्ट कार्ड अब इस परिवार की नई पीढी के कई बच्चों को मेडिकल सेवा में आने के लिए डाॅक्टर बनने की प्रेरणा बने हैं।

इस तरह एक सौ से अधिक साल पुरानी पोस्ट कार्ड नई पीढ़ी के लिए मेडिकल कैरियर बनाने की प्रेरणा दे रहीं हैं यह स्वयं में अद्भुत है। राजधानी नई दिल्ली के राजा सत्यवादी हरिश्चंद्र मेडिकल गवर्नमेंट हास्पिटल में तैनात जेआर डॉ प्रज्ञा अग्रवाल इसी हकीम चुन्नी लाल परिवार की चैथी पीढ़ी से है। डॉ प्रज्ञा स्वीकार करती है कि उन के परदादा के लिए देश के दूरदराज के स्थानों से इलाज के सिलसिले में लिखे गए ये पोस्ट कार्ड उनकी प्रेरणा के स्रोत बने मेडिकल प्रवेश परीक्षा के लिए तैयारी के दौरान उनका इन पोस्ट कार्ड से मनोबल बढ़ा और सेवा के लिए मेडिकल क्षेत्र में आने का सपना संजोया और यह सपना सच हुआ। (हिफी)

(मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)

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