समलैंगिक शादी पर सुप्रीम फैसला

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि अगर कोई ट्रांसजेंडर व्यक्ति किसी विषमलैंगिक व्यक्ति से शादी करना चाहता है, तो ऐसी शादी को मान्यता दी जाएगी, क्योंकि एक पुरुष होगा और दूसरा महिला होगी। ट्रांसजेंडर पुरुष को एक महिला से शादी करने का अधिकार है। ट्रांसजेंडर महिला को एक पुरुष से शादी करने का अधिकार है और ट्रांसजेंडर महिला और ट्रांसजेंडर पुरुष भी शादी कर सकते हैं।
हम यह नहीं कहते कि हमारे सनातन धर्म अर्थात् हिन्दू धर्म की मान्यताएं ही सर्वश्रेष्ठ हैं लेकिन इतना दावे के साथ कह सकते हैं कि इन्हीं मान्यताओं ने दुनिया भर के लोगों का ध्यान भारत की तरफ आकर्षित किया है। अगर ऐसा नहीं होता तो वनारस के गंगा तट पर विदेशी महिलाएं और युवतियां साड़ी पहन कर बिन्दी लगाकर अपार खुशी न महसूस करतीं। हमारे भारत में ही शादी को जन्म-जन्मांतर का बंधन माना गया है और इन दिनों शारदीय नवरात्र मंे हिन्दुओं मंे सप्तशती का पाठ करते हुए भी देखा जा सकता है। इस सप्तशती मंे तीन रहस्य के पाठ हैं जिनमें पहले पाठ मंे महालक्ष्मी जी बताती हैं कि किस तरह उन्हांेने अपने ही अंश से तीन स्त्रियों और तीन पुरुषों को उत्पन्न कर सृष्टि के सृजन का निर्देश दिया। इस प्रकार स्त्री-पुरुष का संयोग जीवन-साथी के रूप मंे आज भी विद्यमान है। प्रकृति के विपरीत आचरण ने समलैंगिक संबंधों का अध्याय शुरू किया जो दुनिया भर मंे समस्या का कारण भी बना है। कई
देशों मंे समलैंगिक शादी को मान्यता भी मिली लेकिन हमारे देश मंे विवाह एक पवित्र बंधन ही नहीं सृजन का
आधार भी माना गया है। समलैंगिक विवाह से यह संभव नहीं है। इसीलिए देश की सबसे बड़ी अदालत ने 17 अक्टूबर को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए व्यवस्था दी कि समलैंगिक शादी को मान्यता नहीं दी जा सकती। इससे पहले भी अदालत ने विवाह नामक संस्था को महत्वपूर्ण दर्शाते हुए कहा था कि अग्नि के सात फेरे लिये बिना विवाह मान्य
नहीं है।
समलैंगिक जोड़ों को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने सममलैंगिक शादी को मान्यता देने से इनकार कर दिया है। सीजेआई डीवी चंद्रचूड़ ने कहा कि यह संसद के अधिकार क्षेत्र का मामला है। उन्होंने केंद्र सरकार को समलैंगिकों के अधिकारों के लिए उचित कदम उठाने के दिशा-निर्देश जारी किए हैं। देशभर की निगाहें समलैंगिक विवाह को मान्यता देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर टिकी हुई थीं। दरअसल 11 मई 2023 को 10 दिन की लंबी सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने इस पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। समलैंगिक शादी को मान्यता देने वाली याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि अगर कोई ट्रांसजेंडर व्यक्ति किसी विषमलैंगिक व्यक्ति से शादी करना चाहता है, तो ऐसी शादी को मान्यता दी जाएगी, क्योंकि एक पुरुष होगा और दूसरा महिला होगी। ट्रांसजेंडर पुरुष को एक महिला से शादी करने का अधिकार है। ट्रांसजेंडर महिला को एक पुरुष से शादी करने का अधिकार है और ट्रांसजेंडर महिला और ट्रांसजेंडर पुरुष भी शादी कर सकते हैं। अगर अनुमति नहीं दी गई, तो यह ट्रांसजेंडर अधिनियम का उल्लंघन होगा। सीजेआई ने कहा कि यह समलैंगिक लोग कोई अंग्रेजी बोलने वाले सफेदपोश आदमी नहीं है, जो समलैंगिक होने का दावा कर सकते हैं, बल्कि गांव में कृषि कार्य में काम करने वाली एक महिला भी समलैंगिक होने का दावा कर सकती है। यह छवि बनाना कि लोग केवल शहरी और संभ्रांत स्थानों में मौजूद हैं, उन्हें मिटाना है। शहरों में रहने वाले सभी लोगों को कुलीन नहीं कहा जा सकता। सीजेआई ने फैसला सुनाते हुए कहा कि यह साबित करने के लिए रिकॉर्ड पर कोई सामग्री नहीं है कि केवल एक विवाहित विषमलैंगिक जोड़ा ही एक बच्चे को स्थिरता प्रदान कर सकता है।
विनियमन 5(3) अप्रत्यक्ष रूप से असामान्य यूनियनों के खिलाफ भेदभाव करता है। एक समलैंगिक व्यक्ति केवल व्यक्तिगत क्षमता में ही गोद ले सकता है। इसका प्रभाव समलैंगिक समुदाय के खिलाफ भेदभाव को मजबूत करने पर पड़ता है। सीजेआई ने कहा कि अविवाहित जोड़ों को गोद लेने से बाहर नहीं रखा गया है, लेकिन नियम 5 यह कहकर उन्हें रोकता है कि जोड़े को 2 साल तक स्थिर वैवाहिक रिश्ते में रहना होगा। जेजे अधिनियम अविवाहित जोड़ों को गोद लेने से नहीं रोकता है, लेकिन केवल तभी जब सीएआरए इसे नियंत्रित करता है लेकिन यह जेजे अधिनियम के उद्देश्य को विफल नहीं कर सकता है। सीएआरए ने विनियम 5(3) द्वारा प्राधिकार को पार कर लिया है। सीएआरए विनियमन 5(3) असामान्य यूनियनों में भागीदारों के बीच भेदभाव करता है। यह गैर-विषमलैंगिक जोड़ों पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा और इस प्रकार एक अविवाहित विषमलैंगिक जोड़ा गोद ले सकता है, लेकिन समलैंगिक समुदाय के लिए ऐसा नहीं है। कानून अच्छे और बुरे पालन-पोषण के बारे में कोई धारणा नहीं बना सकता है और यह एक रूढ़ि को कायम रखता है कि केवल विषमलैंगिक ही अच्छे माता-पिता हो सकते हैं।
डी वाई चंद्रचूड़ ने समलैंगिक विवाह को कानूनी रूप से वैध ठहराए जाने का अनुरोध करने वाली 21 याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए कहा कि विशेष विवाह अधिनियम में बदलाव करना संसद का काम है और न्यायालय कानून की केवल व्याख्या कर सकता है, उसे बना नहीं सकता। केंद्र सरकार हमेशा से समलैंगिक विवाह की मांग के विरोध में रही है। भारत सरकार ने कहा कि ये न केवल देश की सांस्कृतिक और नैतिक परंपरा के खिलाफ है बल्कि इसे मान्यता देने से पहले 28 कानूनों के 158 प्रावधानों में बदलाव करते हुए पर्सनल लॉ से भी छेड़छाड़ करनी होगी। इसकी लड़ाई काफी पहले से चल रही है। ध्यान रहे 24 मार्च 2023 को समलैंगिक विवाह से जुड़ी याचिकाओं का विरोध किया गया। हाइकोर्ट के 21 रिटायर्ड जजों ने खुला खत लिखा। उन्होंने कहा कि इसकी मान्यता भारतीय वैवाहिक परंपराओं के लिए खतरा है। कई धार्मिक संगठनों ने भी इसका विरोध किया।
नवंबर-दिसंबर 2022 में समलैंगिक विवाह को मान्यता के लिए 20 और याचिकाएं दायर की गईं।
नवंबर, 2022 को समलैंगिक जोड़े ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका में समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग की गई थी।
ध्यान दुनिया के 194 देशों में से कुछ ही देशों ने सेम सेक्स मैरिज या समलैंगिक विवाह को मान्यता दी है। दुनिया भर में केवल 34 देशों ने समान-लिंग विवाहों को वैध बनाया है, जिनमें से 24 देशों ने इसे विधायी प्रक्रिया के माध्यम से, जबकि 9 ने विधायिका और न्यायपालिका की मिश्रित प्रक्रिया के माध्यम से यह किया है। जबकि दक्षिण अफ्रीका अकेला देश है, जहां इस प्रकार के विवाहों को न्यायपालिका द्वारा वैध किया गया है। केंद्र के मुताबिक, अमेरिका और ब्राजील प्रमुख देश हैं, जहां मिश्रित प्रक्रिया को अपनाया गया था। विधायी प्रक्रिया के माध्यम से समान-लिंग विवाह को वैध बनाने वाले महत्वपूर्ण देश यूके, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, फ्रांस, कनाडा, स्विट्जरलैंड, आयरलैंड, स्वीडन, स्पेन, नॉर्वे, नीदरलैंड, फिनलैंड, डेनमार्क, क्यूबा, स्लोवेनिया और बेल्जियम हैं। बता दें कि एंडोरा, क्यूबा और स्लोवेनिया, तीन ऐसे देश हैं जहां पिछले साल सेम सेक्स मैरिज को कानूनी रूप से वैध करार दिया गया है। समलैंगिक विवाह की लड़ाई भारत में साल 2009 से लड़ी जा रही है। (हिफी)
(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)