राजनीतिलेखक की कलम

पिछड़े वर्ग में पैठ बढ़ाएंगे रघुबर दास

 

राजनीति में जनकल्याण और सामाजिक दायित्व के नाम पर भी दलगत स्वार्थ देखा जाता है। इसीलिए मध्य प्रदेश समेत पांच राज्यों मंे विधानसभा चुनाव से पहले ओडिशा और त्रिपुरा मंे राज्यपालों की तैनाती को भी सियासत के चश्मे से देखा जा रहा है। ओडिशा मंे झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रघुबर दास को राज्यपाल बनाया गया है। इसी तरह तेलंगाना के नेता इन्द्रसेना रेड्डी को त्रिपुरा के राज्यपाल का दायित्व सौंपा गया है। इन्द्रसेना रेड्डी भी उस राज्य (तेलंगाना) के हैं जहां इसी साल 30 नवम्बर को विधानसभा चुनाव होने हैं। रघुवर दास अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। भाजपा ओबीसी वोट बैंक पर अपना प्रभाव बढ़ाना चाहती है। रघुवर दास ने अपना बचपन बहुत अभावों मंे गुजारा। उन्होंने जमशेदपुर की टाटा स्टाल रोलिंग मिल मंे मजदूरी भी की थी। आर्थिक संकट को झेलते हुए भी उन्हांेने उच्च शिक्षा प्राप्त की। साहित्य मंे रुचि रखने वाले रघुबर दास राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर को बहुत पसंद करते हैं। ओबीसी नेता को राज्यपाल बनाने का संदेश देकर भाजपा ने इस सबसे बड़े वोट बैंक को खुश करने का प्रयास किया है। मध्य प्रदेश में भाजपा ने इसी वर्ग पर सबसे बड़ा दांव लगाया है। अब तक जारी चार सूचियांे में 29 फीसद टिकट अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को ही दिये गये हैं। भाजपा ने मध्य प्रदेश में अपनी सरकार की वापसी और राजस्थान व छत्तीसगढ़ मंे कांग्रेस से सत्ता छीनने की रणनीति बना रखी है।

झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रघुबर दास को ओडिशा और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता इंद्र सेना रेड्डी नल्लू को त्रिपुरा का राज्यपाल नियुक्त किया गया है। राष्ट्रपति भवन से 19 अक्टूबर को जारी एक विज्ञप्ति के अनुसार, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को ये नियुक्तियां करते हुए खुशी हो रही है। इसमें कहा गया है कि दोनों पदों पर नियुक्ति उस तारीख से प्रभावी होंगी जब दास और नल्लू अपने-अपने कार्यभार संभालेंगे। भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष दास 2014 से 2019 तक झारखंड के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। इंद्र सेना रेड्डी नल्लू तेलंगाना से भाजपा के नेता हैं। रघुबर दास प्रदेश के पहले गैर आदिवासी मुख्यमंत्री बने थे। जमशेदपुर पूर्व सीट से उन्होंने लगातार पांचवी बार जीत हासिल की थी। रघुबर दास ने जमशेदपुर कोऑपरेटिव कॉलेज से बीएससी की पढ़ाई की। पढ़ाई खत्म कर उन्होंने जमशेदपुर स्थित भारत की महत्वपूर्ण टाटा स्टील कंपनी में साधारण कर्मचारी के रूप में कई साल काम किया। इसके बाद जेपी आंदोलन से जुड़े और फिर जनसंघ में शामिल हुए। सन् 1986 में टाटा स्टील कंपनी के एक मामले ने उनके जीवन को नया मोड़ दिया। टाटा कंपनी में 86 बस्तियों को मालिकाना हक दिलाने के मामले में ली गई पहल से वे चर्चा में आए। उनकी उपलब्धि ये रही कि जिन 86 बस्तियां पर पहले टाटा का नियंत्रण था वे सरकार के अधीन आ गईं। झारखंड विधानसभा की कई कमिटियों के सभापति रह चुके रघुबर दास विधायी कार्यों के अनुभव के मामले में भी धनी हैं। पार्टी के भीतर मुखर नेता की छवि होने के कारण उन्हें काफी पसंद किया जाता है। इसके अलावा झारखंड वैश्य समुदाय में भी रघुबर दास खासे लोकप्रिय हैं।

59-वर्षीय रघुवर दास वर्ष 1977 में जनता पार्टी के सदस्य बने। वर्ष 1980 में बीजेपी की स्थापना के साथ ही वह सक्रिय राजनीति में आए। उन्होंने वर्ष 1995 में पहली बार जमशेदपुर पूर्व से विधानसभा का चुनाव लड़ा और विधायक बने। तब से लगातार पांचवीं बार उन्होंने इसी क्षेत्र से विधानसभा चुनाव जीता। तत्कालीन बिहार के जमशेदपुर पूर्व से वर्ष 1995 में उनका टिकट बीजेपी के प्रसिद्ध विचारक गोविंदाचार्य ने तय किया था। दास पंद्रह नवंबर, 2000 से 17 मार्च, 2003 तक राज्य के श्रम मंत्री रहे, फिर मार्च 2003 से 14 जुलाई, 2004 तक वह भवन निर्माण और 12 मार्च 2005 से 14 सितंबर, 2006 तक झारखंड के वित्त, वाणिज्य और नगर विकास मंत्री रहे। इसके अलावा दास 2009 से 30 मई, 2010 तक झारखंड मुक्ति मोर्चा के साथ बनी बीजेपी की गठबंधन सरकार में उपमुख्यमंत्री, वित्त, वाणिज्य, कर, ऊर्जा, नगर विकास, आवास और संसदीय कार्य मंत्री भी रहे हैं।

ओबीसी आरक्षण के मुद्दे को कांग्रेस देशव्यापी मुद्दा बनाने का प्रयास कर रही है, लेकिन मध्य प्रदेश में भाजपा ने उसकी हवा निकाल दी है। पार्टी ने अब तक जारी प्रत्याशियों की चार सूचियों में 29 प्रतिशत टिकट अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को दिए हैं। घोषित 136 प्रत्याशियों में से 40 प्रत्याशी ओबीसी वर्ग से बनाए हैं। दरअसल, कांग्रेस पिछले कुछ दिनों से ओबीसी राजनीति को हवा देने की कोशिश कर रही थी। यही कारण है कि भाजपा ने न केवल ओबीसी प्रत्याशियों की संख्या बढ़ाई है बल्कि इनमें महिलाओं को भी स्थान दिया है। इन्हें टिकट देकर भाजपा ने यह संदेश दिया है कि वह प्रदेश के सभी वर्गों की हितैषी है और प्रत्येक वर्ग भाजपा के लिए महत्वपूर्ण है।टिकट पाने वालों में 16 प्रत्याशी महिलाएं हैं, जबकि 28 युवा चेहरे चुनाव में उतारे गए हैं। अनुसूचित जाति के 18 व अनुसूचित जनजाति के 30 प्रत्याशी भी घोषित कर दिए हैं। भाजपा ने 24 मंत्रियों और केंद्रीय मंत्रियों सहित सात सांसदों को टिकट देकर भाजपा ने अनुभव को भी प्राथमिकता दी है। इनमें वर्तमान के 57 विधायकों पर पार्टी ने पुनः भरोसा जताया है। शेष 94 सीटों पर भी भाजपा का यह चुनावी समीकरण देखने को मिलेगा।

एक सर्वे के मुताबिक देश में आज भी 55 फीसद मतदाता कैंडिडेट्स की जाति देखकर मतदान करते हैं। मध्य प्रदेश में यह प्रतिशत 65 प्रतिशत है। यही वजह है कि राजनीतिक दल भी जाति देखकर उम्मीदवार उतारते हैं। मध्य प्रदेश में अनुसूचित जनजाति (एसटी) वर्ग की आबादी 23 प्रतिशत है। मालवा-निमाड़ और महाकौशल रीजन में 37 सीटों पर यह निर्णायक भूमिका निभाते हैं। विंध्य की बात करें तो यहां 14 पर्सेंट ब्राह्मण वोटर्स हैं। सबसे ज्यादा 29 प्रतिशत सवर्ण मतदाता इसी इलाके में आते हैं। बात मुस्लिम वोटर की करें तो मध्य प्रदेश के 4.94 करोड़ वोटर्स में 10.12 प्रतिशत (50 लाख) मुस्लिम वोटर हैं, जो पश्चिमी मध्य प्रदेश के मालवा-निमाड़ और भोपाल रीज की 40 सीटों के नतीजों को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं।

राजस्थान में जाट, राजपूत, गुर्जर, मीणा समाज की संख्या अच्छी खासी है और ये नतीजों को प्रभावित करते हैं। अगर जनसंख्या के लिहाज से देखें तो राजस्थान में एससी वोटर 18 प्रतिशत, एसटी वोटर 14 प्रतिशत (मीणा 7 फीसद), मुस्लिम वोटर 9 फीसदी, ओबीसी 40 प्रतिशत, गुर्जर 5 फीसदी, जाट वोटर 10 पर्सेंट, माली 4 प्रतिशत, सवर्ण वोटर 19 प्रतिशत (ब्राह्मण 7 फीसद, राजपूत 6 फीसद, वैश्य 4 फीसद, अन्य 2 फीसद) हैं। इसी प्रकार छत्तीसगढ़ की राजनीति शुरू से ही जाति पर आधारित रही है। जिस पार्टी ने इस कार्ड को सही चला, वो जीतने में कामयाब रही है। छत्तीसगढ़ में लगभग 32 फीसदी आबादी अनुसूचित जनजाति की है, करीब 13 प्रतिशत आबादी अनुसूचित जाति वर्ग की और करीब 47 प्रतिशत जनसंख्या अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों की है। अन्य पिछड़ा वर्ग में करीब 95 से अधिक जातियां शामिल हैं। छत्तीसगढ़ विधानसभा की 51 सामान्य सीटों में से करीब एक दर्जन विधानसभा सीटों पर अनुसूचित जाति वर्ग का दबदबा है। मैदानी इलाकों की ज्यादातर सीटों पर अन्य पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं की भी भारी संख्या है। (हिफी)

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

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