लेखक की कलमसम-सामयिक

पांच सदियों की तपस्या का फल है राम मंदिर

 

आज का दिन बहुत भावनाओं से भरा हुआ है। अभी श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के पदाधिकारी मुझसे मेरे निवास स्थान पर मिलने आए थे। उन्होंने मुझे श्रीराम मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठा के अवसर पर अयोध्या आने के लिए निमंत्रित किया है। मैं खुद को बहुत धन्य महसूस कर रहा हूं। ये मेरा सौभाग्य है कि अपने जीवनकाल में, मैं इस ऐतिहासिक अवसर का साक्षी बनूंगा।

पांच सौ वर्ष का एक सपना साकार होने जा रहा है। अयोध्या में श्रीराम मंदिर का निर्माण पूर्णता की ओर अग्रसर है। 22 जनवरी को इस भव्य मंदिर का लोकार्पण होना है। यह एक ऐतिहासिक अवसर होगा। ऐसा सपना था, लोगों ने जिसकी कल्पना तक छोड़ दी थी। वर्तमान पीढ़ी को यह सौभाग्य मिलने जा रहा है। श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ ट्रस्ट के सदस्यों ने प्रधानमंत्री को 22 जनवरी के लिए आमंत्रण दिया है। निश्चित रूप से इस काम की सराहना होनी चाहिए। वह देश के प्रधानमंत्री हैं, केवल इस नाते ही नहीं, बल्कि इस समस्या के समाधान में उनके योगदान को देखते हुए यह उचित कदम है। विपक्ष के लोगों ने इसका विरोध भी किया है। यह वैसा ही है, जैसे संसद भवन के निर्माण का कार्य यूपीए सरकार में होना चाहिए था, लेकिन वह नहीं कर सके, हालांकि लोकार्पण के समय सारे विपक्षी दल संसद के नए भवन के निर्माण का विरोध कर रहे थे। आज फिर वही स्थिति दोहराई जा रही है। विपक्ष के नेता कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आमंत्रण देने की क्या जरूरत थी। यह कहने वाले वही दल और नेता हैं, जिन्होंने श्रीराम मंदिर निर्माण में अंतिम समय तक बाधाएं उत्पन्न कीं। सुनवाई को टालते रहने का प्रयास किया। अनेक विपक्ष के वकील यही काम कर रहे थे। यह वह लोग हैं, जो एक बार भी मंदिर निर्माण का कार्य देखने नहीं गए। इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को श्रेय मिलना चाहिए। सरकार जितने तथ्य और प्रमाण दे सकती थी, वह कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किए गए।

सरकार की दृढ़ इच्छाशक्ति से ही न्यायालय का निर्णय आसान हुआ। परिणाम सबके सामने है। कल्पना कीजिए कि नरेंद्र मोदी की जगह आज का जो गठबंधन है, जो सनातन का विरोध कर रहा है, यदि इनकी सरकार होती तो क्या मंदिर निर्माण हो पाता। जो बिल्कुल असंभव कार्य था, आज संभव हो रहा है। कहा जा रहा है कि भाजपा इसे इवेंट बना रही है। मेरा मानना है कि श्रीराम भारत के जनमानस में हैं। इसलिए यह तो इवेंट बनना ही था। बड़ी संख्या में लोग अयोध्या पहुंचना चाहेंगे। सरकार को कहीं न कहीं भीड़ को नियंत्रित करना पड़ेगा। इसलिए सरकार इसे इवेंट नहीं बना रही है, बल्कि यह भारत के जनमानस का इवेंट है।

यदि भाजपा इस कार्यक्रम को जन-जन तक ले जाना चाहती है, तो इसमें न तो कोई नई बात है और न ही इससे किसी को हैरान होना चाहिए। यह मुद्दा कई दशकों से भाजपा के एजेंडे में रहा है। अब जबकि मंदिर का लोकार्पण होने जा रहा है, तब यह उम्मीद करना कि पार्टी या सरकार खुद को इससे अलग रखे, तर्कहीन है। हर दल की अपनी नीतियां और उनके नफा-नुकसान होते हैं। मंदिर निर्माण को लेकर भाजपा की स्थापित नीति रही है। ऐसे में भाजपा और उसके सहयोगी संगठन इसका भरपूर लाभ उठाने का प्रयास करेंगे, क्योंकि राजनीति में कोई भी कार्य यूं ही नहीं होता। यदि अल्पसंख्यकों की राजनीति करने वाले दल भाजपा और सरकार का विरोध करते हैं, तो इसका उन्हें नुकसान ही होगा। विरोध का कोई लाभ मिल पाना असंभव है।विपक्षी नेताओं को अपनी तुलना प्रधानमंत्री से नहीं करनी चाहिए। उन्हें ट्रस्ट द्वारा प्रधानमंत्री को आमन्त्रण देना पच नहीं रहा है। लेकिन विपक्षी नेताओं समझना चाहिए कि यह ऐतिहासिक अवसर नरेंद्र मोदी के प्रयासों से ही सम्भव हुआ है। आज जो उनको मिले आमन्त्रण का विरोध कर रहे हैं, वह मन्दिर निर्माण के भी विरोधी रहे हैं। नरेंद्र मोदी तरह अस्था की अभिव्यक्ति करने का उनमें साहस ही नहीं है। विपक्ष के प्रत्येक कार्य वोटबैंक राजनीति से प्रेरित होते है। जबकि नरेंद्र मोदी आमन्त्रण मिलने पर लिखते हैं-जय सियाराम!

आज का दिन बहुत भावनाओं से भरा हुआ है। अभी श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के पदाधिकारी मुझसे मेरे निवास स्थान पर मिलने आए थे। उन्होंने मुझे श्रीराम मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठा के अवसर पर अयोध्या आने के लिए निमंत्रित किया है। मैं खुद को बहुत धन्य महसूस कर रहा हूं। ये मेरा सौभाग्य है कि अपने जीवनकाल में, मैं इस ऐतिहासिक अवसर का साक्षी बनूंगा। दूसरी ओर सत्ता में रहते हुए श्री राम को काल्पनिक बताने वाले परेशान हैं। सलमान खुर्शीद ने कहा कि क्या निमंत्रण सिर्फ एक पार्टी को जा रहा है। कार्यक्रम में कौन पहुंचेगा और कौन नहीं, इस पर टिप्पणी नहीं की जा सकती, लेकिन अब क्या भगवान एक ही पार्टी तक सीमित हैं। निमंत्रण सभी के लिए होना चाहिए, लेकिन इसे सिर्फ एक पार्टी का कार्यक्रम बनाया जा रहा है। क्या यह एक पार्टी का कार्यक्रम है या सिर्फ किसी एक व्यक्ति से संबंधित है। श्री राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा का निमंत्रण सभी को भेजा जाना चाहिए था। शिवसेना उद्धव गुट के नेता संजय राउत भी परेशान हैं।

इस पार्टी ने मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए अपने सिद्धांत विचार को तिलांजलि दे दी थी। अब इन्हें भी राजनीति करनी है। इतना ही नहीं विपक्षी इंडिया गठबंधन का डीएमके घटक भी बेचैन है। इसके नेता टीकेएस एलंगोवन का विवादित बयान सामने आया है। वह कहता है कि इतिहास को ध्वस्त किया जा रहा है। उसकी जगह पौराणिक कथाओं को ले लिया है। किसी भी देश को अपने इतिहास पर गर्व होना चाहिए, उन्हें अपने इतिहास को जानना चाहिए। राम का जन्म पौराणिक कथा है। यह रामायण की कहानी है। वह इतिहास को पौराणिक कथाओं से बदलना चाहते हैं। भाजपा यही करने की कोशिश कर रही है। यह विपक्षी गठबंधन की राजनीति है। यह अच्छा है कि लोकसभा चुनाव के पहले इनका असली चेहरा लोगों के सामने आ रहा है। (हिफी)

(डॉ दिलीप अग्निहोत्री-हिफी फीचर)

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