राघव चड्ढा बन सकते बेहतर नजीर

हाल ही में फिल्म अभिनेत्री परिणीति चोपड़ा से शादी करने वाले आम आदमी पार्टी (आप) के सांसद राघव चड्ढा राज्य सभा से निलंबित कर दिये गये थे। लोकसभा, राज्यसभा अथवा राज्य की विधान परिषदों और विधानसभाओं मंे इस तरह के मामले अब ज्यादा देखने को मिलते हैं। विपक्षी दलों के सदस्य किसी न किसी कारण निलंबित कर दिये जाते हैं। इसके बाद उनके समर्थन मंे विपक्षी दल हंगामा करके सदन की कार्यवाही बाधित करने का प्रयास करते हैं। संसद अथवा विधानसभाओं में ज्यादातर समय इसी तरह से बर्बाद होता है जबकि सदन मंे एक-एक मिनट लाखों की कीमत का होता है। देश की सबसे बड़ी अदालत ने राघव चड्ढा के मामले में सलाह देकर एक बेहतर नजीर पेश करने का ही प्रयास किया है। सरकार और अदालत मंे शीतयुद्ध भी चलता रहता है, इसलिए भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की इस सलाह को विशेषाधिकार का उल्लंघन न मानकर सदन की कार्यवाही मंे गतिरोध को खत्म करने का सहज तरीका माना जाए। इससे सदन में हंगामे की स्थिति रोकने में भी मदद मिलेगी। साथ ही सांसद अथवा विधायक के निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व भी बाधित नहीं होगा। सीजेआई ने राज्यसभा से निलंबित सांसद राघव चड्ढा की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए राघव चड्ढा को सलाह दी कि वह राज्यसभा मंे सभापति जगदीप धनखड़ से मिलकर बिना शर्त माफी मांग लें। कोर्ट ने कहा कि सभापति सहानुभूतिपूर्वक विचार करेंगे और मामले को आगे नहीं बढ़ाएंगे। सीजेआई ने कहा कि हमंे यह ध्यान रखना चाहिए कि राघव चड्ढा कम उम्र के और पहली बार के सांसद हैं। वह जब माफी मांग लेंगे तो ऐसे मंे इस मुद्दे को खत्म कर देना चाहिए। सीजेआई ने यह भी कहा कि राघव चड्ढा सभापति से अपाइंटमेंट लेकर उनसे उनकी सुविधा के मुताबिक घर, दफ्तर या सदन में मिलकर माफी मांगे। राघव चड्ढा पर दिल्ली राजधानी क्षेत्र (संशोधन) विधेयक 2023 को सदन की प्रवर समिति मंे भेजने का प्रस्ताव करने के लिए, सदन के कुछ सदस्यों से सहमति लिये बिना ही प्रस्तावित समिति के लिए उनका नाम लेने का आरोप है। माना गया कि इससे सदन की अवमानना हुई।
राज्यसभा में 11 अगस्त को उच्च सदन के नेता पीयूष गोयल ने आप नेता राघव चड्ढा को निलंबित किए जाने का प्रस्ताव पेश किया था, जिसे सदन ने स्वीकार कर लिया था। चड्ढा पर दिल्ली राजधानी क्षेत्र (संशोधन) विधेयक, 2023 को सदन की प्रवर समिति में भेजने का प्रस्ताव करने के लिए, सदन के कुछ सदस्यों से सहमति लिये बिना ही प्रस्तावित समिति के लिए उनका नाम लेने का आरोप है। आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा के निलंबन के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दखल दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने राघव चड्ढा को राज्यसभा में सभापति जगदीप धनखड़ से मिलकर बिना शर्त माफी मांगने को कहा है। कोर्ट ने कहा कि सभापति सहानुभूतिपूर्वक विचार करेंगे और मामले को आगे नहीं बढ़ाएंगे। मामले की अगली सुनवाई 20 नवंबर को होगी। सुप्रीम कोर्ट ने आप सांसद की याचिका पर सुनवाई दिवाली की छुट्टियों के बाद निर्धारित की, अटॉर्नी जनरल से इस मामले में आगे के घटनाक्रम की जानकारी देने को कहा है। मामले की सुनवाई के दौरान सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, हमें ये ध्यान रखना चाहिए कि राघव चड्ढा कम उम्र के और पहली बार के सांसद हैं। वह बिना शर्त माफी मांग लेंगे। ऐसे में इस मुद्दे को खत्म कर देना चाहिए। राघव चड्ढा मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई तो चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, आपने बिना शर्त माफी की बात कही थी। बेहतर होगा कि आप सभापति से अपॉइंटमेंट लेकर उनसे मिलें। उनकी सुविधा के मुताबिक, आप उनके घर, दफ्तर या सदन में माफी मांग लें, क्योंकि यह सदन और उपराष्ट्रपति सह राज्यसभा सभापति की गरिमा का मामला है। इस पर राघव के वकील शादान फरासत ने कहा, राघव राज्यसभा के सबसे युवा सदस्य हैं। उनको माफी मांगने में कोई हर्ज नहीं है। वो पहले भी क्षमा याचना कर चुके हैं। शादान ने कहा कि राघव के निलंबन का प्रस्ताव पूरे सदन ने पारित किया था, लेकिन सभापति अपने स्तर पर भी इसे रद्द कर सकते हैं। सीजेआई ने कहा कि सभापति इस पर सहानुभूतिपूर्वक विचार कर सकते हैं।
राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा के निलंबन का मामले में सीजेआई ने एजी से पूछा कि इस तरह के अनिश्चितकालीन निलंबन का असर उन लोगों पर पड़ेगा जिनके निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व नहीं हो रहा है। विशेषाधिकार समिति के पास सदस्य को अनिश्चितकाल के लिए निलंबित करने की शक्ति कहां है? क्या इससे विशेषाधिकार का उल्लंघन होता है? यह लोगों के प्रतिनिधित्व के बारे में है। हमें उन आवाजों को संसद से बाहर न करने के बारे में बहुत सावधान रहना चाहिए। एक संवैधानिक न्यायालय के रूप में यह चिंता का एक गंभीर कारण है। अनिश्चितकालीन निलंबन चिंता का कारण है। सीजेआई ने एजी से कहा कि क्या उन्होंने जो किया है उससे सदन की गरिमा कम होती है? एक सदस्य, जिसे चयन समिति का हिस्सा बनने के लिए अन्य सदस्यों की सहमति को सत्यापित करना चाहिए था, ने प्रेस को बताया कि यह जन्मदिन के निमंत्रण कार्ड की तरह था, लेकिन क्या यह विशेषाधिकार का उल्लंघन है? अगर सदन में बयान देने वाले किसी व्यक्ति को 5 साल जेल की सजा हो जाए? आनुपातिकता की भावना होनी चाहिए। क्या ये ऐसा उल्लंघन है जहां किसी को अनिश्चित काल के लिए निलंबित किया जाना चाहिए? यदि वह स्पीकर को पत्र लिखकर माफी मांगना चाहते हैं तो क्या इसे स्वीकार कर लिया जाएगा। मामला बंद कर दिया जाएगा या हमें सुनवाई करनी चाहिए और इस पर कानून बनाना चाहिए? वह हम कर सकते हैं।
संसदीय कार्यवाही के दौरान सदस्यों के बीच तल्ख लहजे में आरोप-प्रत्यारोप होना आम बात है और कभी-कभी अभद्र भाषा का इस्तेमाल भी एक-दूसरे के खिलाफ होता है, जिस पर स्पीकर ऐसा करने वाले सदस्यों को चेतावनी देते हैं, उनके आपत्तिजनक शब्दों को सदन की कार्यवाही से निकाल देते हैं तो कभी पूरा सदन समवेत स्वर में संबंधित सदस्यों के ऐसे व्यवहार की निंदा करता है और उसे खेद व्यक्त करने के लिए बाध्य करता है। कुछ एक मामलों में स्पीकर ने ऐसे सदस्यों को कुछ दिनों के लिए या पूरे सत्र से निलंबित करने की कार्रवाई भी की है, लेकिन 21 सितंबर को लोकसभा में जो कुछ हुआ वह भारतीय संसद ने और देश ने पहली बार देखा। चंद्रयान-3 की कामयाबी पर चर्चा के दौरान दक्षिण दिल्ली से निर्वाचित भाजपा सांसद रमेश बिधूड़ी ने अमरोहा से निर्वाचित बहुजन समाज पार्टी के सांसद कुंवर दानिश अली के लिए अभद्र और देश के सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय के प्रति सांप्रदायिक नफरत से भरे शब्दों को इस्तेमाल किया और उन्हें सदन से बाहर निकलने पर देख लेने की धमकी भी दी। इस दौरान सदन की कार्यवाही का संचालन कर रहे पीठासीन अध्यक्ष कोडिकुन्नील सुरेश ने बिधूड़ी को रोकने की कोशिश भी की लेकिन बिधूड़ी अपने आपत्तिजनक शब्दों को दोहराते रहे। इस तरह विपक्ष ही नहीं सत्तापक्ष से भी इस तरह की गलतियां होती रहती हैं। (हिफी)
(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)