राजनीतिलेखक की कलम

राजस्थान में लड़खड़ाता तीसरा मोर्चा

 

विधानसभा चुनाव से पहले तीसरे मोर्चे के नेता बड़े-बड़े दावे कर सत्ता की चाबी अपने हाथ में होने की बात कह रहे थे। मगर मौजूदा चुनावी परिदृश्य को देखकर तो लगता है कि तीसरे मोर्चे के दल अपनी उपस्थिति दर्ज करवा पाने में ही नाकाम लग रहे हैं।

राजस्थान विधानसभा चुनाव का प्रचार चरम पर पहुंच गया है। सभी राजनीतिक दलों के बड़े नेता व स्टार प्रचारक लगातार चुनावी रैलियों को संबोधित कर रहे हैं। भाजपा की तरफ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा सहित कई प्रदेशों के मुख्यमंत्री व बड़े नेता लगातार चुनावी रैलियां को संबोधित कर रहे हैं। वहीं, कांग्रेस की तरफ से राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे सहित मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने चुनाव प्रचार की कमान संभाल रखी है। भाजपा जहां सभी 200 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। वहीं कांग्रेस 199 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। कांग्रेस ने भरतपुर सीट राष्ट्रीय लोक दल को गठबंधन में दी है।
कांग्रेस व भाजपा जहां पूरे जोश खरोश के साथ चुनाव लड़ रहे हैं, वहीं तीसरी ताकत बनकर चुनाव परिणाम को बदलने का दावा करने वाले तीसरे मोर्चे के दलों की स्थिति कमजोर लग रही है। विधानसभा चुनाव से पहले तीसरे मोर्चे के नेता बड़े-बड़े दावे कर सत्ता की चाबी अपने हाथ में होने की बात कह रहे थे। मगर मौजूदा चुनावी परिदृश्य को देखकर तो लगता है कि तीसरे मोर्चे के दल अपनी उपस्थिति दर्ज करवा पाने में ही नाकाम लग रहे हैं। तीसरे मोर्चे में शामिल बसपा, आप, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी, एमआईएमआईएम, वामपंथी दल, हरियाणा की जननायक जनता पार्टी, भारतीय ट्राइबल पार्टी व भारत आदिवासी पार्टी ने चुनाव से पूर्व अधिकांश सीटों पर चुनाव लड़ने के बड़े-बड़े दावे किए थे मगर चुनावी मैदान में इनमें से कोई भी पार्टी सभी सीटों पर प्रत्याशी नहीं उतार पाई है।

पिछले चार चुनावों से प्रदेश में अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रही बहुजन समाज पार्टी ने भी 175 प्रत्याशियों को चुनावी मैदान में उतारा है। इस पार्टी के कई प्रत्याशियों ने तो कांग्रेस व भाजपा के प्रत्याशियों के पक्ष में अपने नाम वापस ले लिये या फिर उनको अपना समर्थन दे दिया है। वहीं तिजारा से पार्टी ने इमरान खान को प्रत्याशी बनाया था, जो अंतिम समय में कांग्रेस से टिकट लेकर चुनाव मैदान में उतर गए। बसपा के प्रदेश अध्यक्ष भगवान सिंह बाबा पार्टी की जीत के बड़े-बड़े दावे तो कर रहे हैं मगर कैसे जीतेंगे इस बात का उनके पास कोई जवाब नहीं है।

बसपा सुप्रीमो मायावती भी चुनावी प्रचार में उतर चुकी है। उन्होंने पूर्वी राजस्थान के अलवर, भरतपुर,झुंझुनू जिलों की कई विधानसभा सीटों पर अपनी पार्टी के प्रत्याशियों के पक्ष में जनसभाएं भी की है। बसपा के सामने सबसे बड़ा संकट पार्टी की साख को लेकर है। बसपा से 2008 व 2018 में 6-6 विधायक चुने गए थे। मगर दोनों ही बार सभी विधायकों ने कांग्रेस में शामिल होकर पार्टी को धत्ता बता दिया था। इसलिए लोगों का मानना है कि यदि बसपा के प्रत्याशियों को जीता भी दिया तो वह पार्टी में रहेंगे इस बात की क्या गारंटी है। पिछली बार के विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी को 6 सीट व 4.03 प्रतिशत मत मिले थे।

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी जहां पिछली बार 142 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, वहीं इस बार सिर्फ 88 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। चुनाव से पहले तो अरविंद केजरीवाल व पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने राजस्थान में कई बड़ी जनसभाओं को संबोधित किया था। मगर चुनावी अभियान के दौरान दोनों ही नेता अब तक राजस्थान नहीं आयें है। पिछले चुनाव में आप पार्टी के सभी प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी। आप को सिर्फ 68051 वोट मिले थे।

नागौर सांसद व राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के अध्यक्ष हनुमान बेनीवाल चुनाव से पहले बड़े-बड़े दावे कर रहे थे। मगर चुनाव में उन्होंने सिर्फ 78 सीटों पर ही प्रत्याशी उतारे हैं और उत्तर प्रदेश की आजाद समाज पार्टी कांशीराम के साथ गठबंधन किया है जिसके अध्यक्ष चंद्रशेखर रावण स्वयं उत्तर प्रदेश के गोरखपुर सीट से चुनाव में बुरी तरह हार चुके हैं। उन्हे मात्र 7640 वोट ही मिले थे। हनुमान बेनीवाल ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सहित कई बड़े नेताओं के सामने प्रत्याशी नहीं उतारे हैं। यहां तक कि पिछले साल सरदार शहर उपचुनाव में 46000 वोट लेने के उपरांत भी उन्होंने वहां से अपने प्रत्याशी का नामांकन फॉर्म वापस करवा दिया।

पिछले विधानसभा चुनाव में बेनीवाल की पार्टी से 58 प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतरे थे, जिनमें तीन जीतने में सफल रहे थे। वहीं 48 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी। बेनीवाल की पार्टी को 856038 यानी 2.40 प्रतिशत मत मिले थे। इस बार बेनीवाल सांसद रहते स्वयं खीवसर से अपने भाई नारायण बेनीवाल के स्थान पर चुनाव लड़ रहे हैं।

आदिवासी बेल्ट में पिछली बार भारतीय ट्राइबल पार्टी नामक नई पार्टी ने 11 सीटों पर चुनाव लड़कर दो सीट जीती थीं। उनके आठ प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी। तब पार्टी ने 255100 यानी 0.72 प्रतिशत मत प्राप्त किए थे। इस बार भारतीय ट्राइबल पार्टी का विभाजन हो गया और इससे टूटकर बनी भारत आदिवासी पार्टी ने 27 व भारतीय ट्राइबल पार्टी ने 17 प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं। हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी की एमआईएमआईएम पार्टी के सिर्फ 10 प्रत्याशी ही खड़े हुए हैं, जबकि चुनाव से पहले ओवैसी 40 से 50 सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कर रहे थे। चर्चा है कि ओवैसी को 10 सीटों पर भी मुश्किल से ही प्रत्याशी मिल पाए हैं।

हरियाणा के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चैटाला की जननायक जनता पार्टी 20 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। दातारामगढ़ सीट पर कांग्रेस के मौजूदा विधायक वीरेंद्र चैधरी के सामने उनकी पत्नी रीटा चैधरी ने जननायक जनता पार्टी से खड़ी होकर चुनावी मुकाबले को रोचक बना दिया है। राजस्थान में वामपंथी दलों की स्थिति भी कोई ज्यादा अच्छी नहीं है। पिछली बार दो सीटों पर जीतने वाली माकपा 17 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। पिछले विधानसभा चुनाव में माकपा ने 28 व भाकपा ने 16 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे, जिनमें माकपा के दो प्रत्याशी चुनाव जीतने में सफल रहे थे। मगर इस बार माकपा व भाकपा के प्रत्याशियों की स्थिति ज्यादा सुदृढ़ नजर नहीं आ रही है।

राजस्थान में कांग्रेस व भाजपा के अलावा अन्य सभी दलों के नेता अपने आपको तीसरा मोर्चा कहलवाना पसंद करते हैं। हालांकि तीसरा मोर्चा के दलों में भी आपस में सामंजस्य नहीं है। वे एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं। चुनाव से पहले यह प्रदेश में सत्ता बनाने के बड़े-बड़े दावे करते रहे हैं। चुनावी मैदान में उनकी स्थिति को देखकर उस लंगड़े घोड़े की याद आती है जो रेस में तो शामिल हो जाता है मगर कभी जीत नहीं पता है। आज वैसे ही स्थिति राजस्थान में तीसरे मोर्चे की हो रही है। आज भी तीसरे मोर्चे के दलों के नेता एक दूसरे की टांग खिंचाई करने से नहीं चूक रहे हैं जो उनकी सबसे बड़ी कमजोरी बनकर उभर रही है। (हिफी)

(रमेश सर्राफ धमोरा-हिफी फीचर)

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