लेखक की कलमसम-सामयिक

भारतीय कुशल हाथों ने बचायी मजदूरों की जान

 

उत्तराखंड की उत्तरकाशी में सत्रह दिन से मौत के मुह में फंसे 41 मजदूरों की पाताल लोक सरीखे मृत्यु लोक से जिंदा वापसी देशवासियों के चेहरे पर सुकून लेकर आई है। इस बचाव अभियान ने एक बात साबित कर दी है कि सिर्फ तकनीक और मशीनरी के भरोसे जिंदगी नहीं है जहां अमेरिकी खनन मशीन फेल हो गई वहां हमारे रैट माइनर्स के कुशल हाथों ने साथ दिया और मशीनरी की नाकामी को अपने जज्बे से दरकिनार कर दिया। यहां यह भी गौर तलब है कि हाथ से रैट होल माइनिंग में बेहद खतरा होने के कारण इस पर 2014 से कानूनी प्रतिबंध है लेकिन जब तमाम मशीनों ने जबाव दे दिया तब यही प्रतिबंधित मैन्युअल तकनीक काम आई। हमारे नीति नियंताओं को इस बात पर भी विशेष तौर पर विचार करना होगा। मशीनों के साथ कुशल पारंगत इंसानी हाथों की स्किल्स का बेजोड़ संगम भविष्य में भी उन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है जो अकेले मशीन या अकेले मानवीय श्रम के बूते संभव नहीं है।

दीपावली के दिन 12 नवंबर को सुबह निर्माणाधीन सिलक्यारा सुरंग धंसने से अंदर फंसे 41 मजदूरों को 17 दिन बाद सुरक्षित निकाल लिया गया। देश में किसी दुर्घटनाग्रस्त सुरंग में इस तरह का बचाव अभियान पहली बार चलाया गया, जिसमें सफलतापूर्वक 41 जिंदगियां बचा ली गईं। यह बचाव अभियान इसलिए भी अपने आप में अद्वितीय रहा क्योंकि इसमें लगाई गई मशीनें तक जवाब दे गई थीं, उसके बाद चूहों की भांति खुदाई में माहिर रैट माइनर्स को जिम्मेदारी सौंपी गई और उन्होंने हाथ के सरिये से खुदाई कर मजदूरों तक पहुंचने का रास्ता बनाया और रात सवा 8 बजे से एक-एक कर श्रमिकों को बाहर निकालना शुरू कर दिया गया। इन मजदूरों का सुरक्षित निकाला जाना न केवल इनके परिवार के लिए खुशी की खबर लेकर आया, बल्कि पूरे देश की नजर इस पर थी और पूरे देश ने राहत की सांस ली। दीपावली के दिन सुबह सिलकयारा सुरंग का पहले बनाया गया एक हिस्सा धंस गया था। जिस समय यह हिस्सा धंसा, उसके आगे अंरद की ओर 41 मजदूर कार्यरत थे।

दरका हिस्सा लगभग 60 मीटर का था और कहने की आवश्यकता नहीं कि उसके साथ लोहे और कंक्रीट का वह ढांचा भी गिर गया था, जो पूरे पहाड़ को संभालने के लिए सरंग में लगाया गया था। अब सुरंग खोद रही कंपनी और बचाव एजेंसियों के सामने दोहरी चुनौती थी, कंक्रीट के साथ-साथ उस लोहे को भी काटना था, जो कंक्रीट के साथ नीचे गिरा था। इसी कारण पहाड़ों को खोदकर सुरंग बना देने के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध 25 टन की अमेरिकी ऑगर मशीन भी जवाब दे गई। एक बार नहीं, यह मशीन पांच बार खराब हुई और अंततः उससे काम लेना बंद करना पड़ा। यह अभियान अपने आप में अद्वितीय रहा क्योंकि इसमें अनेक अलग-अलग बचाव एजेंसियां एक साथ मिलकर काम कर रही थीं और इनके प्रयासों की निगरानी सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा की जा रही थी। इसलिए न त्रुटी की कोई जगह थी, न चूक की कोई गुंजाइश। जब सुरंग धंसी, उस समय बचाव टीमों की मजदूरों से दूरी 60 मीटर थी। मशीनों के माध्यम से कई प्रयास रकने के बावजूद मजदूरों तक नहीं पहुंचा जा सका और लगभग 12 मीटर दूरी पर सभी मशीनें जवाब दे गईं। इसके बाद दो ही विकल्प बचे थे- पहला, हाथों से 12 मीटर खुदाई कर मजदूरों तक पहुंचा जाए या दूसरा पहाड़ के ऊपर से छेद कर मजदूरों तक पहुंचने का प्रयास किया जाए। सेना और राष्ट्रीय आपदा बचाव बल से लेकर तमाम एजेंसियां हर संभव कोशिश में जुटी थीं। सेना की सहायता से पहाड़ी के ऊपर भी मशीनें पहुंचा कर 45 मीटर ड्रिलिंग की जा चुकी थी, इसी बीच रैट माइनर्स को हाथों से सुरंग खोदने का काम सौंपा गया।

सोमवार को उन्होंने काम शुरू किया और मंगलवार शाम तक 12 मीटर खुदाई कर डाली। यह असंभव भले न हो, किन्तु अविश्वसनीय अवश्य है कि जहां मशीनें जवाब दे गईं, वहां हाथों से खुदाई कर 41 जिंदगी बचा ली गईं। रैट माइनर्स ने 800 मिलीमीटर के पाइप में घुसकर ड्रिलिंग की। ये बारी बारी से पाइप के अंदर जाते, फिर हाथ के छोटे फावड़े से खुदाई करते थे। इसके पश्चात ट्राली से एक बार में लगभग 2.5 क्विंटल मलबा लेकर बाहर लाते थे। रैट-होल माइनिंग में पतले से छेद से पहाड़ के किनारे से खुदाई शुरू की जाती है, पोल बनाकर धीरे-धीरे छोटी हैंड ड्रिलिंग मशीन से ड्रिल किया जाता है, हाथ से ही मलबे को बारह निकाला जाता है। रैट-होल माइनिंग 4 फीट से कम चैड़ी जगह पर खुदाई करने की एक प्रक्रिया है, इसका इस्तेमाल आमतौर पर कोयले की माइनिंग में खूब होता रहा है। लेकिन रैट होल माइनिंग काफी खरतनाक काम है, इसलिए इसे कई बार बैन भी किया जा चुका है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने साइंटिफिक नहीं होने के कारण रैट- होल माइनिंग पर 2014 में बैन लगा दिया था। हमारे नीति निर्माताओं को इस तरह के अपने फैसलों पर पुनर्विचार करना होगा जिन्हें आधुनिक मशीन इजाद होने के बाद खतरे के नाम पर प्रतिबंध लगा दिया गया है क्योंकि मानवीय कुशलता दिलेरी को जिंदा रखना होगा मुसीबत में यही काम आता है।

कहते हैं अंत भला तो सब भला। यह जीत किसी भी खेल की जीत से बड़ी है, इसने पूरे देश को किसी भी अन्य आयोजन की तुलना में अधिक एकजुट किया, अपने देश पर भारतीयों को अधिक भरोसा जगाया। इस अविश्वसनीय प्रतीत होने वाले
बचाव अभियान को सफलतापूर्वक पूरा करने में योगदान देने वाला हर व्यक्ति अपने आप में बधाई का पात्र है। उनके जज्बे, जोश को सैल्यूट है जिन्होंने अपनी जान जोखिम में डाल कर भी सुरंग में फंसे दूसरे लोगों की जान बचा दी है। दिल से प्रणाम! (हिफी)

(मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)

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