सांसदों से मर्यादा की अपेक्षा

पिछले दिनों (13 दिसम्बर) नये संसद भवन में दर्शक दीर्घा से दो युवक सदन में कूदे। युवकों ने रंगीन धुएं के केन से सदन को धुएं से भर दिया। इसके साथ ही नारेबाजी भी की। युवकों को दबोच लिया गया और उनके तीन अन्य साथी भी मिल गये। गहनता से जांच हो रही है। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने उच्च स्तरीय जांच के आदेश दिये थे। सरकार मानती है कि यह बहुत बड़ी चूक हुई है। गलतियों से पूरी तरह मुक्ति मिल जाए, यह काफी कठिन कवायद होगी लेकिन इसको नजरंदाज भी नहीं किया जा सकता। इसलिए विपक्षी दलों के सांसदांे ने इस चूक पर विरोध जताया तो उचित ही कहा जाएगा लेकिन विरोध मर्यादा के अंदर ही रहना चाहिए था। विपक्षी दलों के सांसदों का विरोध मर्यादा की सीमा से बाहर चला गया था। अभी एक महीना भी नहीं हुआ जब इसी संसद मंे इन्हीं सांसदों ने संविधान दिवस पर (26 नवम्बर) देश के संविधान के अनुसार आचरण करने का संकल्प लिया था। देश की सबसे बड़ी पंचायत लोकसभा और राज्यसभा मंे जनता का जो प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, उनसे कुछ ज्यादा ही मर्यादा पालन की अपेक्षा की जाती है। ये सांसद भले ही अपने को सेवक कहते हैं लेकिन व्यवस्था बनाने मंे राजा का दायित्व निभाते हैं। यथा राजा, तथा प्रजा के अनुसार अगर राजा ही मर्यादा का पालन नहीं करेगा तो प्रजा से इसकी अपेक्षा कैसे की जा सकती है। लोकतंत्र मंे विरोध जताने की भी मर्यादा है, इसलिए अमर्यादित आचरण करने वाले सांसदों को एक सीमित समय के लिए निलंबित किया गया है। विपक्षी दलों के निलंबित सांसदों को इस बीच विचार मंथन भी करना चाहिए। संसद भवन में सुरक्षा की चूक पर सरकार को भी गंभीरता से विचार करना पड़ेगा। आरोपितों मंे से एक युवक का कहना था कि उसने संसद मंे जाने वालों की जांच प्रक्रिया की बारीकी से टोह ली और पता चला कि लोगों के जूतों की जांच नहीं की जाती। इसीलिए स्मोक गन को जूतों मंे छिपाया था। इस तरह की तमाम बातें हैं जिन पर ध्यान देना पड़ेगा।
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला और सरकारी पक्ष के अन्य नेता भी यह स्वीकार करते हैं कि संसद भवन के अंदर आगमन को लेकर सुरक्षा मंे चूक हुई है। विपक्षी सांसद कह सकते हैं कि यह चूक नहीं ब्लंडर है लेकिन इस बात को लेकर सदन मंे हंगामा और नारेबाजी की क्या जरूरत है। आपकी शिकायत सुनी जा रही है और उसको भविष्य में न होने देने की व्यवस्था करने का आश्वासन भी दिया जा रहा है, तब भी हंगामा क्यों किया जा रहा था। सुरक्षा के लिए पुलिस और अन्य सुरक्षा अधिकारी तैनात रहते हैं तो इसकी जिम्मेदारी केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह की है। गृहमंत्री अमित शाह कहते हैं कि यह बहुत ही गंभीर मामला है और बेशक इसमंे चूक भी हुई है लेकिन विपक्षी दलों को सुरक्षा मंे चूक पर राजनीति नहीं करनी चाहिए। गृहमंत्री ने कहा कि संसद की सुरक्षा लोकसभा अध्यक्ष अर्थात् स्पीकर के अधीन रहती है और स्पीकर ने गृहमंत्री को पत्र भी लिखा है। इसी आधार पर जांच समिति गठित की गयी है इसकी रिपोर्ट लोकसभाध्यक्ष को सौंपी जाएगी। अमित शाह कहते हैं कि समिति से यह भी कहा गया है कि वह इस पर भी सुझाव दे ताकि संसद की सुरक्षा को और मजबूत कैसे किया जाए। इसी प्रकार लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला कहते हैं कि सदन मंे 13 दिसम्बर को, जब संसद पर आतंकी हमले की बरसी मनायी जा रही थी, तभी दर्शक दीर्घा से युवकोें के कूदने और पीला धुंआ फैलाने की अकल्पनीय घटना से सभी चिंतित हैं। वह मानते हैं कि संसद परिसर की सुरक्षा लोकसभा सचिवालय की जिम्मेदारी है। सुरक्षा को चार स्तरीय बनाया भी गया है। इसके बावजूद दो युवक स्मोक गन लेकर संसद भवन परिसर मंे प्रवेश पा गये। लोकसभा स्पीकर कहते हैं कि सभी की सुरक्षा सुनिश्चित करना स्पीकर की जिम्मेदारी है। इस पर विपक्षी सांसदों के साथ चर्चा करने की बात भी उन्हांेने कही लेकिन विपक्षी दलों के सांसद लगातार हंगामा करते रहे। इसलिए अमर्यादित व्यवहार और पीठीसीन की अवमानना के आरोप मंे लोकसभा के 13 और राज्यसभा के एक सांसद समेत विपक्ष के 14 सांसदों को 14 दिसम्बर को निलंबित कर दिया गया।
निलंबित होने वाले सांसदों मंे कांग्रेस के चार सांसद हैं। कांग्रेस सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी है हालांकि सांसदों का पर्याप्त संख्या बल न होने के कारण कांग्रेस को लेाकसभा मंे मुख्य विपक्षी दल का दर्जा हासिल नहीं हो सका। लोकसभा मंे कार्यवाही शुरू होते ही 14 दिसम्बर को रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने इस मामले पर बयान दिया। विपक्षी सदस्य गृहमंत्री अमित शाह से विस्तृत बयान और उस पर तत्काल चर्चा की मांग कर रहे थे। मांग करते हुए सांसद बेल मंे आकर नारेबाजी करने लगे। विपक्षी सांसदों के इस प्रकार आचरण की इजाजत संविधान ने नहीं दी है। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने पहले इन सांसदों से शालीनतापूर्वक रहने, नारेबाजी न करने और अपनी सीट पर बैठने का अनुरोध किया। विपक्षी दलो के सांसदों ने स्पीकर का अनुरोध अनसुना कर दिया। इस प्रकार पहले प्रश्नकाल और फिर शून्यकाल मंे विपक्षी दलों के सांसद सिर्फ हंगामा करते रहे। संसद की कार्यवाही का एक-एक मिनट बहुत कीमती होता है। इस अवधि मंे विपक्षी सांसद अगर कोई बेहतरीन सुझााव देते तो जनता भी उनका समर्थन करती। सरकार भी संभवतः उनके सुझाव पर विचार करती लेकिन सांसद सकारात्मक विरोध करना तो लगभग भूल ही चुके हैं। सदन की कार्यवाही बार-बार स्थगित हुई लेकिन शोर नहीं थमा तब 14 सांसदों को पूरे सत्र के लिए निलंबित किया गया।
निलंबित होने वाले आठ सांसदों में चार कांग्रेस के सदस्य हैं। इनमंे बीके श्री कंदन, बेनी बेहानन, मोहम्मद जावेद और मनिकम टैगोर कांग्रेस के सांसद हैं। इसी प्रकार सीपीआईएम के पीआर नटराजन और एस वेंकटेशन को निलंबित किया गया है। डीएमके की कनिमोझी और सीपीआई के के. सुब्रमण्यम ने भी मर्यादा को दरकिनार किया। उच्च सदन अर्थात् राज्यसभा से तृणमूल कांग्रेस के सांसद डेरेक ओ ब्रायन को भी निलंबित किया गया है। विपक्षी दलों के सांसदों ने संसद भवन मंे गंभीर सुरक्षा चूक बताते हुए मामले की जिम्मेदारी तय करने की मांग की थी। कांगे्रस संसदीय दल के नेता अधीर रंजन चैधरी ने कहा था कि यह मामला बहुत गंभीर है और इसकी गंभीरता को देखते हुए पहले गृहमंत्री अमित शाह को बयान देना चाहिए और स्पीकर को उस पर विस्तृत चर्चा करनी चाहिए। सरकार और स्पीकर दोनों ने लगभग यही प्रक्रिया अपनायी है लेकिन राज्यसभा सदस्य और टीएमसी के नेता डेरेक ओ ब्रायन ने हंगामा करने के बावजूद स्पीकर का आदेश नहीं माना और सदन से बाहर नहीं गये। उनके हंगामे के चलते ही राज्यसभा की कार्यवाही पांच बार स्थगित करनी पड़ी थी। इसलिए डेरेक ओ ब्रायन के आचरण को ज्यादा गंभीर माना गया है और विशेषाधिकार समिति को सौंपा गया है। समिति तीन महीने मंे इस पर रिपोर्ट देगी।
गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस में लिखा है- ‘छूटहि मल कि मलहि के धोए’ अर्थात् गलती का सुधार गलती से ही नहीं हो सकता। सांसदों को यह बात समझनी होगी। सरकार की तरफ से अगर गलती हो रही है तो उसका विरोध करना विपक्षी दलों का दायित्व है लेकिन विरोध जताना भी मर्यादा की सीमा में होना चाहिए। सुरक्षा में बड़ी चूक के बाद अब काफी बदलाव किये जा रहे हैं। (हिफी)
(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)