सम-सामयिक

दायित्वहीन विपक्ष, चतुर सत्तापक्ष

 

लोकतंत्र मंे सरकार के साथ विपक्ष भी महत्वपूर्ण होता है। सरकार की गलत नीतियों का अगर कोई विरोध ही नहीं करेगा तो तानाशाही होने मंे विलम्ब नहीं लगेगा। इसी के साथ महत्वपूर्ण मुद्दे पर अगर विपक्ष अपनी राय नहीं रखता तो वह दायित्वहीन कहा जाएगा। नरेन्द्र मोदी की 2014 से सरकार बनी है और विपक्ष उस सरकार पर तानाशाही का आरोप लगाता रहा है। लोकसभा मंे सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस के नेता राहुल गांधी तो अमेरिका में एक निजी कार्यक्रम में आरोप लगा चुके हैं कि मोदी की सरकार सदन मंे विपक्ष को बोलने नहीं देती लेकिन विपक्ष सत्तापक्ष के झांसे मंे आकर अपनी जिम्मेदारी से भटक गया है। चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति का मामला कितना महत्वपूर्ण होता है, यह बताने की जरूरत नहीं लेकिन गत दिनों (21 दिसम्बर को) सरकार ने चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए कानून बनाने की बाधा पार कर ली। संविधान मंे चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति का कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं था।

परम्परा के अनुसार सुप्रीम कोर्ट की भी इसमंे महत्वपूर्ण भूमिका रहती थी लेकिन सरकार का इरादा सुप्रीम कोर्ट को इससे दूर रखने का था। विपक्षी दल चाहते तो यह संभव हो सकता था लेकिन कुछ गैर महत्वपूर्ण बातों को लेकर विपक्ष ने हंगामा किया और दो-तिहाई विपक्षी सांसद निलंबित हो गये। सरकार ने चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए अपनी मर्जी की चयन समिति बनाने मंे सफलता प्राप्त कर ली। इसके लिए विपक्ष का गैर जिम्मेदाराना बर्ताव भी कठघरे मंे खड़ा किया जाएगा। यह कहना विपक्ष का अपनी जिम्मेदारी से बचना है कि मोदी सरकार ने लेाकतंत्र और चुनावी तंत्र की निष्पक्षता को बुलडोजर से कुचल दिया है। अगर बुलडोजर चला है तो विपक्ष की अदूरदर्शिता के चलते। संसद मंे विपक्ष के दो-तिहाई सदस्य मौजूद ही नहीं थे। इस प्रकार चीफ इलेक्शन कमीशनर्स और अन्य चुनाव आयुक्त बिल को लोकसभा और राज्यसभा मंे पारित करा लिया गया। राघव चड्ढा ने बुलडोजर की बात कही है। उन्हांेने लालकृष्ण आडवाणी के बयान की याद दिलाई। उन्हांेंने कहा था कि चुनाव आयुक्त की नियुक्ति नियम को निष्पक्ष बनाया जाए। उन्होंने यह भी कहा कि यह सुप्रीम कोर्ट का अपमान है।

लोकसभा ने सीईसी और अन्य चुनाव आयुक्त बिल को पास कर दिया है। जिस समय में सदन में इस बिल को पास किया गया उस दौरान विपक्षी दलों को दो तिहाई सांसद वहां मौजूद नहीं थे। इससे पहले, राज्यसभा ने सीईसी और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यालय की अवधि) विधेयक, 2023 को मंजूरी दे दी थी। लोकसभा में चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के कानून पर चर्चा के दौरान, कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि शीर्ष चुनाव अधिकारियों की सेवा शर्तों पर 1991 का अधिनियम एक अधूरा प्रयास लगता था और वर्तमान विधेयक पिछले कानून द्वारा छोड़े गए क्षेत्रों को कवर करता है। इसके बाद विधेयक को ध्वनि मत से पारित कर दिया गया।

गौरतलब है कि कई आपत्तियों के बाद इस कानून में महत्वपूर्ण बदलाव किए गए। विपक्ष ने इस कानून की आलोचना करते हुए कहा है कि यह चुनाव आयोग की स्वतंत्रता से समझौता करेगा। इस साल की शुरुआत में, सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी थी कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश के पैनल की सहमति पर की जानी चाहिए। माना जाता है कि इस प्रकार की सहमति का उद्देश्य शीर्ष चुनाव निकाय को राजनीतिक हस्तक्षेप से बचाना और निष्पक्ष रूप देना था। उस समय अदालत ने यह भी कहा कि फैसला तब तक प्रभावी रहेगा जब तक सरकार कोई कानून नहीं लाती। नए कानून में सरकार ने मुख्य न्यायाधीश की जगह एक केंद्रीय मंत्री को नियुक्त किया है। विपक्ष ने आरोप लगाया है कि यह बिल सरकार को शीर्ष चुनाव अधिकारियों की नियुक्ति पर अधिक अधिकार देता है और ये साफतौर पर चुनाव निकाय की स्वायत्तता से समझौता करने जैसा है। राज्यसभा में भी बिल पर चर्चा हुई। इस चर्चा के दौरान कांग्रेस सांसद रणदीप सुरजेवाला ने सत्तापक्ष पर तानाशाही का आरोप लगाते हुए कहा कि भारत के लोकतंत्र और चुनावी मशीनरी की स्वायत्तता, निडरता और निष्पक्षता को बुलडोजर से कुचल दिया गया है। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ने भारत के लोकतंत्र पर हमला किया है। बिल में प्रावधान है कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति एक उच्चस्तरीय चयन कमेटी करेगी। जिसमें प्रधानमंत्री के अलावा एक कैबिनेट मंत्री और लोकसभा में विपक्ष के नेता सदस्य होंगे जबकि मुख्य न्यायाधीश को बाहर करा दिया गया है।

इससे पहले संसद के उच्च सदन राज्यसभा ने मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की प्रक्रिया में बदलाव से जुड़ा मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यालय की अवधि) विधेयक, 2023 पहले ही पारित कर दिया था। विपक्षी दलों ने बिल के प्रारूप का विरोध करते हुए सदन से वाकआउट किया। करीब चार घंटे तक चली चर्चा के बाद राज्यसभा ने मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति और टर्म्स ऑफ ऑफिस में बदलाव से जुड़ा बिल ध्वनिमत से पारित कर दिया। बिल में प्रावधान है कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति एक उच्च स्तरीय चयन कमेटी करेगी। इसमें प्रधानमंत्री के अतिरिक्त एक कैबिनेट मंत्री और लोकसभा में नेता विपक्ष को सदस्य बनाया जायेगा। इस साल मार्च में सुप्रीम कोर्ट ने चयन समिति में प्रधानमंत्री, नेता विपक्ष और सीजेआई को रखने की बात कही थी। मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की सैलरी और दर्जा सुप्रीम कोर्ट जज के समकक्ष होगा। विधि मंत्री की अध्यक्षता में एक सर्च कमिटी बनेगी, जो चयन समिति के समक्ष पांच संभावित नाम प्रस्तुत करेगी।

कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने बिल पेश करते हुए कहा, इसमें मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त के अधिकारों के लिए विशेष प्रावधान है। हमने एक नई धारा धारा 15 (।) भी जोड़ी है। बिल में जिसके तहत कोई भी मुख्य चुनाव आयुक्त या चुनाव आयुक्त अपनी ड्यूटी के दौरान अगर कोई कार्रवाई संपादित करते हैं तो उनके खिलाफ कोर्ट में कोई भी कार्रवाई नहीं हो सकती है। 1991 में जो कानून बना था, उसमें मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त की नियुक्ति का कोई क्लॉज नहीं था। संसद मंे करीब चार घंटे तक चली चर्चा के दौरान विपक्षी सांसदों ने सत्तापक्ष पर आरोप लगाया और कहा इस बिल के पारित होने से लोकतंत्र कमजोर होगा और बिल पारित करने के दौरान सदन से वाकआउट किया।
कांग्रेस सांसद रणदीप सुरजेवाला ने कहा, निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए चार शब्द चुनाव आयोग के लिए बेहद महत्वपूर्ण है- निष्पक्षता, निर्भीकता, स्वायत्तता और शुचिता। सरकार जो कानून लेकर आई है, उससे इन चार शब्दों को बुलडोजर के नीचे कुचल दिया गया है। आगे की रणनीति और कानूनी विकल्पों को लेकर आम आदमी पार्टी के सांसद राघव चड्ढा ने कहा कि हम आपस में चर्चा करेंगे और कानूनी राय भी लेंगे। हमारी कोशिश होगी की विपक्ष एकजुट होकर कानूनी तौर पर इसे चुनौती दे। आप सुप्रीम कोर्ट के फैसले को इस तरह नहीं पलट सकते। सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने के सवाल पर राघव चड्ढा ने कहा कि हम इसे जरूर चुनौती दे सकते हैं, इसका भी वही हश्र होगा जो दिल्ली सेवा बिल का हुआ था। (हिफी)

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button