घोर अपराध है नकली दवा का धंधा

(मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)
कल्पना कीजिए कि आप अपने किसी बीमार बच्चे या परिजन के लिए खून-पसीने की कमाई खर्च कर दवा खरीद कर लाएं और वह दवा नकली हो तो आपके ऊपर क्या बीतेगी? लेकिन विश्वास करें या न करें देश भर में प्रतिदिन लाखों लोगों को नकली दवा बेचकर मानवता के दुश्मन अपनी काली कमाई कर रहे हैं। यह मानवता के साथ घोर अपराध है। देश में नकली दवाओं को लेकर सरकार को कई बड़े सबूत मिलते रहे हैं जिसके आधार पर जल्द ही बंगाल से लेकर बिहार, यूपी और उत्तराखंड दिल्ली राजस्थान हिमाचल महाराष्ट्र गुजरात तक में समय-समय पर छापामारी कर करोड़ों की नकली मिलावटी व गुणवत्ता विहीन दवा बरामद की जा चुकी है। तमाम कानून हैं लेकिन चूहा-बिल्ली का खेल चलता रहता है न अवैध दवा का निर्माण और विपणन नियंत्रित नहीं किया जा सका और ये दवाएं लाखों लोगों की जान के साथ खिलवाड़ कर रहीं हैं। जानकारी सामने आई है कि करीब 12 कंपनियां नकली दवाएं बंेच रही हैं।
केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन के अनुसार करीब 12 से ज्यादा फार्मा कंपनियां लेबल लगी नकली दवाएं बेच रही है। इस काम में कोई एक व्यक्ति नहीं बल्कि पूरा एक समूह शामिल है, जिन्हें लेकर जल्द कार्रवाई की जाएगी। पिछले दिनों जांच में जुटे अधिकारियों को मिले साक्ष्य के आधार पर दर्जनों नामी दवा कपंनियों की नकली दवाएं पायी गई हैं।
अब सबसे ताजा मामला देश की राजधानी दिल्ली में सामने आया है। आम आदमी पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल की सरकार के आधीन चल रहे सरकारी अस्पतालों में नकली एवं घटिया दवाएं आपूर्ति की जा रही थीं। न केवल सरकारी अस्पतालों, बल्कि जिन मोहल्ला क्लीनिक का ढिंढोरा मुख्यमंत्री केजरीवाल जगह-जगह पीटते रहे हैं, उनमें भी यही दवाएं आपूर्ति कर गरीब रोगियों की जान से खिलवाड़ किया जा रहा था। उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने दिल्ली सरकार के अस्पतालों में गुणवत्ता मानक परीक्षणों में विफल और जीवन को खतरे में डालने की क्षमता वाली दवाओं की कथित आपूर्ति की केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) से जांच की सिफारिश की है। उपराज्यपाल के आदेश के बाद दिल्ली सरकार में हड़कंप मचा और दवाओं का परीक्षण शुरू हुआ तो पता चला कि वहां मिरगी की दवा भी नकली थी।
एक रिपोर्ट के अनुसार उपराज्यपाल ने दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव को लिखे एक नोट में उल्लेख किया है कि यह चिंताजनक है कि ये दवाएं लाखों मरीजों को दी जा रही हैं। नोट में कहा गया है, मैंने फाइल का
अध्ययन किया है। यह बहुत चिंता की बात है। मैं इस तथ्य से बेचैन हूं कि लाखों गरीबों और रोगियों को ऐसी नकली दवाएं दी जा रही हैं जो गुणवत्ता मानक संबंधी परीक्षणों में विफल रही हैं। दिल्ली स्वास्थ्य सेवा (डीएचएस) के तहत केंद्रीय खरीद एजेंसी (सीपीए) द्वारा खरीदी गई ये दवाएं दिल्ली सरकार के अस्पतालों को आपूर्ति की गईं और संभव है कि इन्हें मोहल्ला क्लीनिक को भी आपूर्ति की गई हो।
सीबीआई जांच के आदेश के बाद दिल्ली सरकार के सतर्कता निदेशालय ने स्वास्थ्य विभाग को पत्र लिखकर गुणवत्ता मानक जांच में विफल हुई दवाओं को वापस लेने का निर्देश दिया है। अधिकारियों के अनुसार जो दवाएं घटिया गुणवत्ता की पाई गईं, उनमें फेफड़ों और मूत्र तंत्र के संक्रमण के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली महत्वपूर्ण जीवन रक्षक एंटीबायोटिक सेफैलेक्सिन शामिल हैं। फेफड़ों, जोड़ों और शरीर में सूजन को ठीक करने के लिए एक स्टेरॉयड डेक्सामेथासोन, मिर्गी और चिंता
विकार मनोरोग दवा ‘लेवेतिरसेटम’ और उच्च रक्तचाप दवा एम्लोडेपिन भी शामिल है।
सरकारी अस्पतालों तक नकली व घटिया दवाएं यूं ही नहीं पहुंच सकतीं, इनके पीछे पूरा गिरोह काम कर रहा है। नकली दवाएं बनाने से लेकर, संबंधित राज्यों के औषधि नियंत्रक और उसके बाद जिस राज्य में अस्पतालों में वे दवाएं आपूर्ति की जानी हैं, उनके स्वास्थ्य अधिकारी, दवाओं के मानक तय करने वाले जांच अधिकारी आदि सब शामिल हैं। किसी एक की भी असहमति हो तो नकली दवाओं को इस तरह खपा पाना आसान नहीं होगा। सरकारी अस्पतालों में पहुंचाई जा रही दवाओं में से कहीं से भी कोई भी दवा लेकर औचक जांच की जाती है ताकि दवाओं की गुणवत्ता बनी रही किन्तु दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में दवा बनाने वाले राज्यों के अधिकारियों से लेकर दिल्ली सरकार तक, सब विफल साबित हुए।
गौरतलब है कि भारत इतना बड़ा देश है कि यहां नकली दवाएं खपाना अत्यंत सरल है। दवाओं की जांच का जिम्मा सरकारी अधिकारियों पर है और अपने देश में सरकारी प्रणाली कैसे काम करती है, यह किसी से छिपा नहीं है। यह कल्पना करना भी व्यर्थ है कि सरकारी अधिकारी हर दवा दुकान में जाकर सैंपल लेकर दवाओं की जांच करें। जब ऊपर से टार्गेट दिया जाता है, तब यह जांच हो पाती है। मिलावटखोरी अन्य खाने-पीने की चीजों में भी होती है, किन्तु नकली दवाएं बनाना तो किसी ऐसे व्यक्ति के जीवन से सीधा खिलवाड़ है जो अस्वस्थ होने के कारण पहले ही कमजोर है। नकली या मिलावटी चीजें स्वस्थ मनुष्य का ही स्वास्थ्य बिगाड़ दें तो रोगियों पर इनका क्या प्रभाव होता होगा, यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। यह तो विश्वासघात भी है, क्योंकि कोई भी रोगी दवाएं इस विश्वास के साथ लेता है कि वे उसे स्वस्थ बनाने में मदद करेंगी।
नकली दवा बनाने वालों से लेकर उन्हें अस्पतालों में आपूर्ति कराने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों पर तो गंभीर आपराधिक मामला चलना चाहिए और दोषी पाए जाने पर उनको हत्या का षड्यंत्र रचने जैसा दंड दिया जाना चाहिए। जब तक सजा का डर नहीं होगा, तब तक इस तरह के गंभीर अपराध रुकेंगे नहीं।
पिछले दिनों दावा किया गया था कि जल्द ही दवाओं के रैपर पर क्यू आर कोड प्रिन्ट किया जाएगा जिस से कंज्यूमर जल्द ही यह जांच कर पाएंगे कि जिस दवा को उन्होंने खरीदा है, वह सुरक्षित है और नकली तो नहीं है। सरकार ने नकली और घटिया दवाओं के उपयोग को रोकने और गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए सबसे ज्यादा बिकने वाली दवाओं के लिए ‘ट्रैक एंड ट्रेस’ व्यवस्था शुरू करने की योजना बनाई गयी है। इसके लिए पहले चरण में दवा कंपनियां सबसे अधिक बिकने वाली 300 दवाओं की प्राथमिक उत्पाद पैकेजिंग लेबल पर बारकोड या क्यूआर कोड प्रिंट करेंगी या चिपकाएंगी। प्राथमिक उत्पाद पैकेजिंग में बोतल, कैन, जार या ट्यूब शामिल हैं, जिसमें बिक्री के लिए दवाएं होती हैं लेकिन इस सबको अमली जामा पहनाने में लगातार कोताही बरती जा रही है। आम मरीजों को बिना अधिक ज्ञान लगाए सही मूल्य और सही गुणवत्ता की दवा मिले, यह सरकार को सुनिश्चित करना होगा। दवा माफिया अब इतना संगठित व मजबूत हो चुका है कि इस पर काबू पाना आसान नहीं है। सरकार को इस के खिलाफ कमर कसनी होगी। (हिफी)