सम-सामयिक

भारत में राजनीतिक स्थिरता

 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी पार्टी भाजपा के लिए यह खुशी की खबर है कि भारत मंे राजनीतिक स्थिरता के लिए कोई जोखिम नहीं है। यह बात यूएस-इंडिया स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप फोरम के प्रमुख मुकेश अधी ने कही है। राजनीतिक अस्थिरता होने से राष्ट्र का विकास ही अवरुद्ध नहीं हो जाता बल्कि उसकी विश्वसनीयता भी कम हो जाती है। देश-विदेश के निवेशक भी वहां निवेश करने मंे जोखिम महसूस करते हैं। अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष जैसी संस्थाएं भी कर्ज देने से कतराती हैं क्योंकि पता नहीं अगली सरकार कैसी नीतियां लागू करें। भारत को लेकर मौजूदा समय मंे यही कहा जाता है कि किसी को किसी प्रकार का जोखिम नहीं हैं। मुकेश अघी तो भारत मंे राजनीतिक स्थिरता को अमेरिका से भी बेहतर मानते हैं। वह कहते हैं कि अमेरिका मंे राजनीतिक अस्थिरता चरम पर है। फोरम की तरफ से यह बयान उस समय आया है जब भारत मंे तीन महीने बाद ही आम चुनाव होने है। इसका मतलब यह कि भाजपा के नेता जिस प्रकार दावा करते हैं कि 2024 मंे भी केन्द्र में उनकी पार्टी की ही सरकार बनेगी और नरेन्द्र मोदी ही प्रधानमंत्री बनेंगे तो इसको यूएस-इंडिया स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप फोरम भी स्वीकार करती है। पीएम मोदी ने विकसित भारत बनाने का संकल्प लिया है।

यूएस-इंडिया स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप फोरम के प्रमुख का कहना है कि हाल के सालों में भारत के नेतृत्व में विश्वास बढ़ा है। इसे अब राजनीतिक जोखिम के नजरिए से सबसे स्थिर देश माना जा रहा है। हाल ही एक साक्षात्कार में मुकेश अघी ने वैश्विक राजनीति की बदलती गतिशीलता के बारे में विस्तार से बात की। उन्होंने बताया कि कैसे अमेरिका को अब अहम राजनीतिक जोखिम वाला देश माना जाता है। वैश्विक मंच पर यूएस-इंडिया पार्टनरशिप फोरम के प्रमुख मुकेश अघी ने कहा कि भारत की नजर आर्थिक वृद्धि पर है। चीजें जैसे-जैसे आगे बढ़ेंगी, भारत का आत्मविश्वास भी बढ़ता रहेगा। मुकेश अधी ने भारत के राजनीतिक परिदृश्य की ऐतिहासिक धारणा पर जोर देते हुए कहा कि देश के जोखिम विश्लेषण के बारे में बात करनी चाहिए। उन्होंने कहा भारत को हमेशा राजनीतिक जोखिम वाले देश के रूप में देखा जाता था। उन्होंने कहा, पहली बार, मैं कह रहा हूं कि राजनीतिक जोखिम के नजरिए से भारत सबसे स्थिर देश बन रहा है। उन्होंने अमेरिका में पैदा हुई अनिश्चितता की तुलना करते हुए कहा, अमेरिका में राजनीतिक अस्थिरता चरम पर है। हमें नहीं पता कि वहां क्या होने वाला है। ट्रंप वापस आ सकते हैं या राष्ट्रपति बाइडेन को दोबारा चुना जा सकता है या निक्की हेली को भी मौका मिल सकता है। उन्होंने इसे उथल-पुथल बताते हुए अमेरिका में राजनीतिक अस्थिरता की बात कही।

मुकेश अघी ने कहा कि दुनिया बदलाव की तरफ बढ़ रही है। करीब 50 प्रतिशत आबादी अमेरिका और भारत से लेकर रूस, इंडोनेशिया और पाकिस्तान तक विभिन्न देशों में मतदान करने के लिए तैयार है। उन्होंने कहा, दुनिया परिवर्तन की स्थिति में है।करीब 50 फीसद आबादी मतदान करने जा रही है, अमेरिका, भारत से लेकर रूस, इंडोनेशिया, पाकिस्तान तक लोग तैयार हैं। हम एक बदलाव देख रहे हैं। मुझे लगता है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पहली बार, शक्ति संतुलन में बदलाव देखा जा रहा है।

इस उभरते भारत की भूमिका के बारे में बात कर तो मुकेश अघी ने कहा भारत जैसे देश अधिक आर्थिक रूप से मजबूत हो रहे हैं। और कहा, भारत जैसे देश आर्थिक विकास के नजरिए से अधिक समृद्ध हो रहे हैं। 2017 में गठित यूएस-इंडिया स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप फोरम का उद्देश्य व्यापार और सरकार के बीच की खाई को पाटना और अमेरिका और भारत में अर्थव्यवस्था और समाज के सभी पहलुओं में सार्वजनिक-निजी क्षेत्र की साझेदारी को बढ़ावा देना है।

भारत को लेकर फोरम ने जो अवधारणा बनायी है, उसके पीछे मोदी सरकार के बीते 9 सालों की नीतियां हैं। उन्हांेने 2014 मंे पहली सरकार बनायी और देश-विदेश की नीतियों मंे तमाम बदलाव भी किये। देश की जनता ने उनके परिवर्तन को अपनी स्वीकृति देते हुए 2019 मंे भाजपा के हाथ मंे फिर से सत्ता सौंप दी थी। इतना ही नहीं पार्टी ने भी मान लिया कि उनके नेता नरेन्द्र मोदी दूरदर्शिता से परिपक्व निर्णय करते हैं। अभी हाल में मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ मंे मुख्यमंत्रियों का चयन जिस तरह से किया गया, उसको देखकर कई लोग हैरान भी हुए लेकिन एक अच्छा संदेश गया कि नेतृत्व के लिए नये चेहरे लाने मंे पार्टी अब संकोच नहीं करेगी। राजनीतिकों, राजनयिकों और अर्थशास्त्रियों का भी यही कहना है कि भारत को वैश्विक मामलों मंे एक प्रमुख हित धारक माना जाता है। इनका मानना है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एक मजबूत नेता हैं जिन्होंने दुनिया भर के सबसे शक्तिशाली नेताओं के बीच अपनी दमदाम छवि बनायी है। विश्व मंच पर मोदी ने दृढ़ आत्मविश्वास का परिचय दिया है। भारत एक बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था का प्रतिनिधित्व करता है। यही कारण है कि जब कोरोना जैसी महामारी के चलते दुनिया भर मंे देश आर्थिक संकट का सामना कर रहे थे, तब भी भारत मंे उसका सफलतापूर्वक मुकाबला किया गया। कोरोना की वैक्सीन बनाकर भारत ने न सिर्फ अपनी जनता को रोग प्रतिरोधक ताकत दी बल्कि कई देशों को भी मदद पहुंचाई थी।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दृढ़ फैसले लेने मंे कोई संकोच नहीं करते है।ं जम्मू-कश्मीर मंे अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी बनाने और जी-20 की अध्यक्षता करते समय अफ्रीकी दीपों को उसका सदस्य बनाने का फैसला इसका उदाहरण है। पीएम मोदी से रूस-यूक्रेन युद्ध और इजरायल- गाजापट्टी संघर्ष मंे भी मध्यस्थता की अपेक्षा की जा रही है। भारत ने मोदी के नेतृत्व मंे ही विस्तारवादी चीन का मुकाबला करने की ताकत पैदा की है। मोदी 2014 में जब पहली बार प्रधानमंत्री बने थे तब पहला विदेश दौरान जापान का किया था। इसके बाद विदेश से उनके संबंध बनते ही चले गये। आज स्थिति यह है कि भारत के अमेरिका से प्रगाढ़ संबंध हैं तो रूस से भी उतने ही बेहतर रिश्ते हैं। यूक्रेन से युद्ध के चलते रूस पर यूरोपीय देशों ने प्रतिबंध लगाये, इसके बावजूद भारत ने रूस से तेल खरीदा और लेन-देन मंे भारतीय मुद्रा रुपये का प्रयोग किया। यह भारत की राजनीतिक स्थिरता के चलते ही हो सका है। (हिफी)

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button