चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट

तीन सदस्यीय भारत निर्वाचन आयोग में दो चुनाव आयुक्तों की तैनाती नहीं हो पा रही थी। इसके चलते लोकसभा चुनाव की तारीखें घोषित होने में संवैधानिक बाधा आ गयी थी। नरेन्द्र मोदी की सरकार ने नया कानून बनाकर चुनाव आयुक्तों की तैनाती की प्रक्रिया से सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) को बाहर करके एक केन्द्रीय मंत्री को चयन समिति में शामिल किया है। इस प्रकार चुनाव आयुक्तों की चयन समिति एक तरह से सरकार के पक्ष की हो गयी है। तीन सदस्यीय समिति में प्रधान मंत्री, नेता प्रतिपक्ष और केन्द्रीय मंत्री शामिल हैं। सरकार के पक्ष के दो सदस्य हो गये तो मनमर्जी तो सरकार की ही चलेगी। इसके बावजूद इस बार दो नौकरशाह- सुखबीर सिंह संधू और ज्ञानेश कुमार को चुनाव आयुक्त तैनात करने के खिलाफ जब सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गयी तो विद्वान न्यायाधीश की टिप्पणी ध्यान आकर्षित करती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा फिलहाल हम चुनाव आयुक्तों की तैनाती पर रोक नहीं लगा सकते। याचिका कर्ता के वकील विकास सिंह ने वर्ष 2023 के 2 मार्च के आदेश का हवाला भी दिया जब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि चुनाव आयुक्तों के पदों पर नियुक्ति चीफ जस्टिस, पीएम और नेता प्रतिपक्ष वाली समिति के माध्यम से की जाए लेकिन जस्टिस पी.एम. और नेता प्रतिपक्ष वाली समिति के माध्यम से की जाए लेकिन जस्टिस संजीव खन्ना ने नियुक्ति पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट का यह मामला उस समय से चल रहा है जब एक नौकरशाह के वी।आर।एस। के दो दिन बाद ही सरकार ने उसकी तैनाती चुनाव आयुक्त के पद पर कर दी थी। उस समय सुप्रीम कोर्ट ने उस तैनाती को निरस्त कर दिया था। इसी के बाद सरकार ने नया कानून बनाया है। राजीव कुमार सिंह मुख्य चुनाव आयुक्त हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर बड़ी टिप्पणी की है। कोर्ट ने चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के खिलाफ दाखिल की गई याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि फिलहाल इस नियुक्ति पर रोक नहीं लगा रहे हैं। इस याचिका पर तीन जजों की बेंच सुनवाई कर रही थी। याचिकाकर्ता ने कोर्ट से मांग की थी कि वह फिलहाल इस नियुक्ति पर रोक लगाए। इसके लिए दलील ये दी गई थी कि कोर्ट पहले भी ऐसे फैसले ले चुका है। याचिकाकर्ता की तरफ से कोर्ट को बताया गया कि नए कानून के मुताबिक दो चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति भी हो गई है। वकील विकास सिंह ने पिछले साल 2 मार्च को सुप्रीम कोर्ट के फैसले की जानकारी भी दी। विकास सिंह ने कहा कि इस फैसले ने आदेश दिया था कि इन पदों पर नियुक्ति, चीफ जस्टिस, पीएम और विपक्ष के नेता वाली कमेटी द्वारा की जाएं। अगर एससी ने अपने फैसले में कोई व्यवस्था दी है तो उसकी यूं अवहेलना नहीं हो सकती।
नौकरशाह सुखबीर सिंह संधू और ज्ञानेश कुमार को देश का अगला चुनाव आयुक्त चुना गया है। दोनों नौकरशाहों को चुनाव आयुक्त बनाने का फैसला पीएम मोदी नीत पैनल ने किया था। इस पैनल में गृहमंत्री अमित शाह के साथ-साथ कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चैधरी भी थे। सुखबीर संधू और ज्ञानेश कुमार 1988-बैच के सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी हैं। जहां संधू आईएएस के उत्तराखंड कैडर से हैं, वहीं कुमार केरल कैडर से हैं।
नवम्बर 2022 में चुनाव आयोग में सुधार और स्वायत्तता के मुद्दे पर चार दिनों तक चली सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। जस्टिस केएम जोसफ, जस्टिस अजय रस्तोगी, जस्टिस अनिरुद्ध बोस, जस्टिस हृषिकेश रॉय और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने फैसला सुरक्षित रखा। सभी पक्षकारों को लिखित दलीलें देने के लिए पांच दिनों की मोहलत दी। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयुक्त की नियुक्तियों पर सवाल उठाए। पीठ ने पूछा, बिजली की तेजी से चुनाव आयुक्त की नियुक्ति क्यों? चैबीस घंटे के भीतर ही नियुक्ति की सारी प्रक्रिया कैसे पूरी कर ली गई? किस आधार पर कानून मंत्री ने चार नाम को शॉर्टलिस्ट किया? इन सवालों पर केंद्र सरकार ने कहा, तय नियमों के तहत नियुक्ति की गई। हालांकि, नियुक्ति की प्रक्रिया पर सरकार के जवाब से कोर्ट संतुष्ट नहीं हुआ।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार पर सवाल उठाते हुए कहा, चुनाव आयुक्त की नियुक्ति में इतनी जल्दबाजी क्यों? इतनी सुपरफास्ट नियुक्ति क्यों? जस्टिस जोसेफ ने कहा, हम मामले की सुनवाई करते हैं। उसी दिन आप फाइल पेशकर आगे बढ़ा देते हैं, उसी दिन पीएम उनके नाम की सिफारिश करते हैं। यह जल्दबाजी क्यों?
इस प्रकार की बहसों के बाद ही केन्द्र सरकार ने नया कानून बनाया, ऐक्ट के तहत कहा गया है कि चीफ इलेक्शन कमिश्नर और इलेक्शन कमिश्नरों की नियुक्ति सिलेक्शन कमिटी की ओर से की जाएगी। इस कमिटी में प्रधानमंत्री, नेता प्रतिपक्ष और केंद्र सरकार के मंत्री होंगे। इस मामले में कहा गया था कि केंद्र सरकार ने 2023 में जो कानून बनाया है उसमें सिलेक्शन कमिटी में चीफ जस्टिस को हटाकर उनकी जगह पीएम की ओर से नामित केंद्रीय मंत्री को रखा गया है। इस तरह से सिलेक्शन प्रक्रिया खतरे में होगी और हेरफेर का अंदेशा है क्योंकि सिलेक्शन प्रक्रिया इग्जेक्युटिव के कंट्रोल में होगा।
इसी साल 13 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के इस कानून की धारा-7 के अमल पर रोक से इनकार कर दिया था और सुनवाई के लिए अप्रैल की तारीख तय कर दी थी। हाल में चुनाव आयुक्त अरुण गोयल ने इस्तीफा दे दिया है। इससे पहले चुनाव आयुक्त अनूप चंद्र पांडे रिटायर हो चुके हैं। इस तरह दो चुनाव आयुक्तों के पद खाली थे। इनको अब भरा गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जमीनी स्थिति खतरनाक है और वह दिवंगत टी एन शेषन जैसा सीईसी चाहती है, जिन्हें 1990 से 1996 तक चुनाव आयोग के प्रमुख के रूप में महत्वपूर्ण चुनावी सुधार लाने के लिए जाना जाता है। अदालत ने कहा कि ष्अब तक कई सीईसी रहे हैं, मगर टीएन शेषन जैसा कोई कभी-कभार ही होता है। हम नहीं चाहते कि कोई उन्हें ध्वस्त करे। तीन लोगों (सीईसी और दो चुनाव आयुक्तों) के नाजुक कंधों पर बड़ी शक्ति निहित है। हमें सीईसी के पद के लिए सबसे अच्छा व्यक्ति खोजना होगा। (हिफी)
(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)