रचनात्मक पत्रकारिता के पुरोधा

¨ पत्रकारिता को तथ्यात्मक के साथ होना चाहिए रचनात्मक।
¨ कर्मचारियों को परिवार का सदस्य मानते थे अरविन्द मोहन स्वामी।
पत्रकारिता को लोकतंत्र का चैथा स्तम्भ माना जाता है अर्थात् न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका के तीन स्तम्भों के साथ अगर चैथा स्तम्भ मजबूती से खड़ा रहे तो कोई तूफान लोकतंत्र को हिला नहीं सकता। पत्रकारिता अपना दायित्व तभी निभा सकती है जब वो तथ्यपरक होने के साथ ही रचनात्मक भी रहे। अभी पिछले महीनों मंे जब 18वीं लोकसभा के चुनावों की तिथियां घोषित की गयी थीं तब मुख्य निर्वाचन आयुक्त राजीव कुमार ने मीडिया से भी कहा था कि किसी पार्टी या नेता के जीतने या हारने की भविष्यवाणी आचार संहिता का उल्लंघन होगा। मुख्य चुनाव आयुक्त ने ऐसा इसलिए कहा था क्योंकि मीडिया यह कार्य करने लगी थी। पत्रकारिता ऐसी स्थिति में कैसे आ गयी, यह सोचकर मन में कष्ट होता है।
इन्हीं बातों पर मंथन करते समय मुझे हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा के संस्थापक अरविन्द मोहन स्वामी की याद आ गयी। उनकी पुण्यतिथि पर श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए मुझे वे दिन याद आ गये। अरविन्द मोहन स्वामी ने पत्रकारिता को असीमित ऊँचाइयों तक पहुंचाया। उनके साथ काम करने का मुझे काफी सुअवसर मिला और उनसे बहुत कुछ सीखा। पत्रकारिता के मिशन को पूरा करतेे हुए अधिक से अधिक लोगों को कैसे रोजगार दिया जा सके, इसके लिए वे सदैव प्रयासरत रहे। क्रूर नियति ने 14 मई 2000 ई. को उन्हंे हम सभी से छीन लिया था।
आज से लगभग 34 वर्ष पहले अरविन्द मोहन स्वामी ने हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा की स्थापना की थी। इसके पीछे लक्ष्य था गांवों, कस्बों और छोटे शहरों में रहने वाले समाज की गतिविधियों को एक-दूसरे से परिचित कराया जाए और सकारात्मक सुझाव भी दिये जाएं। मीडिया उस समय भी था लेकिन बड़े-बड़े समाचार पत्र और पत्रिकाएं बड़े-बड़े शहरों जैसे दिल्ली, बाम्बे (मौजूदा समय का मुंबई) मद्रास (मौजूदा समय का चेन्नई) दिल्ली, और कलकत्ता (मौजूदा समय का कोलकाता) आदि की खबरों तक ही सीमित रहते थे। इसके बाद प्रदेशों की राजधानियां, जिला मुख्यालयों के समाचार स्थानीय स्तर के अखबारों की लीड स्टोरी होते थे लेकिन आमजनता की समस्याओं को उठाने वाले छोटे और मझोले अखबार संसाधनों के अभाव में समाजसेवा का कार्य नहीं कर पाते थे। अरविन्द मोहन स्वामी ने इन छोटे और मझोले समाचार पत्र-पत्रिकाओं को रेडी-टू-पिं्रट देकर उनका आर्थिक बोझ कम किया। हिफी के ज्ञानवर्द्धक और अच्छी परम्परा सिखाने वाले आलेख समाज को सशक्त और सदभावपूर्ण बनाने का कार्य कर रहे थे। यह परम्परा आज भी कायम है।
दूसरी तरफ श्रम के महत्व को भी दर्शाने में अरविन्द मोहन स्वामी निरंतर प्रयास करते रहे। श्रम शक्ति ही नहीं श्रम बल भारत का गौरव है यह बात पत्रकारिता के माध्यम से वह सिद्ध करते रहे। कोरोना के चलते लाकडाउन की समस्या ने श्रमिक वर्ग को सबसे ज्यादा परेशानी में डाला। इसी समस्या को दूर करने के लिए उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों ने श्रम कानून में बदलाव किये ताकि नये उद्यम स्थापित हों और लोगों को काम मिले। सरकार ने श्रम कानून में संशोधन करते हुए न्यूनतम मजदूरी की शर्त तो रखी है लेकिन 8 घंटे की जगह 12 घंटे तक काम कराने की छूट भी मालिकों को दे दी है। इसके पीछे सरकार की भावना बुरी नहीं है लेकिन दुरुपयोग की आशंका तो बनी ही रहती है। लाकडाउन के चलते उद्योग जगत को बहुत बड़ा झटका लगा है। उत्तर प्रदेश में साइकिल उद्योग को 350 करोड़ का झटका बताया जा रहा है। इससे जुड़े 25 हजार मैकेनिक अपनी रोजी-रोटी खो बैठे हैं। इस प्रकार कई उद्यम ठप हो गये हैं। लइया-चना, पूड़ी, समोसा बेचने वाले भी घर बैठे हैं। उनके पास काम करने वाले भी खाली हाथ बैठे हैं। लाखों श्रमिक बेरोजगार हैं। पत्रकारिता के क्षेत्र मंे भी बेरोजगारी की समस्या पैदा हुई। तमाम समाचार पत्रों का प्रकाशन बंद हो गया।
अरविन्द मोहन स्वामी ने श्रम बल को धनबल से भी बड़ा समझा और श्रमिकों के परिश्रम का हमेशा सम्मान किया हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा लिमिटेड ने सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक और अन्य विषयों पर प्रेरणादायक आलेखों के साथ ही विज्ञापन आलेख और जाॅबवर्क भी प्रारंभ कर दिया था। किसी भी संस्थान के लिए आर्थिक रूप से मजबूत होना भी जरूरी होती है। स्वामी जी ने जाॅबवर्क करते समय संस्था के कर्मचारियों को सिर्फ वर्कर के रूप में नहीं देखा बल्कि संस्था के एक कर्मयोगी के रूप में हमेशा उनकी सराहना की। कार्य में व्यस्त कर्मचारियों को स्वयं चाय बनाकर पिलाने में उन्हें कभी संकोच नहीं हुआ। कर्मचारी क्या चाहते हैं उनकी क्या जरूरत है यह बताने की जरूरत नहीं पड़ती थी। उनके कार्यकाल के दौरान काम करने वाले कई कर्मचारी आज भी कई ऐसे प्रसंग बताते हैं और उन सुखद स्मृतियों को ताजा करते हुए कहते हैं कि तब जरूरत पड़ने पर 12 से 15 घंटे तक कार्य करते रहते थे और किसी के चेहरे पर शिकन तक नहीं आती थी।
उन कर्मचारियों की बातें सुनकर मौजूदा समय में श्रम कानून बदलाव पर सोचने का एक दृष्टिकोण भी मिलता है। उत्तर प्रदेश की सरकार समेत लगभग आधा दर्जन राज्यों ने नये उद्योग लगाने को प्रोत्साहन देने के लिए श्रम कानून में अस्थायी परिवर्तन कर दिये हैं और इनमें एक बदलाव श्रमिक संगठनों में ज्यादा चर्चा का विषय बना हुआ है। उत्तर प्रदेश में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी महासंघ के एक नेता ने श्रम कानूनों में बदलाव पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि श्रमिकों को 12 घंटे तक काम करने की बाध्यता श्रमिकों के हित में नहीं है। श्रमिक संगठन के नेता को यह नहीं मालूम कि भारत के श्रमिक कभी घड़ी नहीं देखते बल्कि काम देखते हैं। हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा के संस्थापक ने अपने कर्तव्ययोगियों को यही संस्कार दिये हैं और आज भी जरूरत पड़ने पर लोग 12 से 15 घंटे तक काम करने को तैयार रहते हैं। यह तभी संभव होता है जब किसी संस्था को परिवार समझा जाता है। अरविन्द मोहन स्वामी ने भी हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा लिमिटेड को हिफी परिवार कहा था।
30 अगस्त 1948 को गाजियाबाद में जन्मे अरविन्द मोहन स्वामी ने पत्रकारिता की शुरुआत वहीं से की थी लेकिन समाज सेवा के वृहद स्तर पर पहुंचने के लिए उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में वे आऐ थे। शिवशंकर आप्टे की मुंबई में स्थापित हिन्दुस्थान समाचार प्राइवेट लिमिटेड कंपनी ने पहली हिन्दी समाचार एजेंसी शुरू की थी। अरविन्द मोहन स्वामी के पत्रकारिता के अनुभव को देखते हुए 3 जुलाई 1987 को उन्हें हिन्दुस्थान समाचार सहकारी समिति लि. का प्रबंध निदेशक बनाया गया था। वहां से अपने उद्देश्य को सफल होता न देखकर स्वामी जी ने 24 अप्रैल 1990 को हिफी की स्थापना की थी। (हिफी)
(केशवकांत कटारा-हिफी फीचर)