जीवन से हताश क्यों हो रही है तरुणाई?

हाल ही में विभिन्न बोर्ड के हाईस्कूल-इंटर परीक्षाओं के परिणाम घोषित होने के बाद देश के कई हिस्सों में किशोर छात्र-छात्राओं द्वारा सुसाइड करने की ढेर सारी दुखद घटनाओं के समाचार आ रहे हैं। हमारे नौनिहालों पर पंद्रह सत्रह साल की उम्र में ही परीक्षा में कम नम्बर आने पर जिंदगी से हार मान लेने की हताशा दिलो-दिमाग पर छा रही है। हमारे स्कूलों में शिक्षा का कैसा माहौल चल रहा है यह किसी से छिपा नहीं है। स्कूल कालेज विशुद्ध व्यापार या कार्पोरेट कंपनी की तर्ज पर चलाए जा रहे हैं। सरकारी स्कूलों के इंतजामात बदतर है प्राइवेट स्कूल कालेजों की फीस एक औसत परिवार की कमर तोड़ देती है ऐसी स्थिति में भारी भरकम फीस चुका कर कोचिंग और ट्यूशन में ठगा जाने वाला आम अभिभावक अपने बच्चों से परीक्षा में अव्वल आने का हसीन ख्वाब पाल लेता है क्योंकि वह सिर्फ महंगी फीस चुकाकर अपना फर्ज पूरा करने की मानसिकता में जीते हैं जबकि बच्चों को सिर्फ उनकी अपनी वंशानुगत या गाड गिफ्टेड बौद्धिक व तर्क क्षमता के अनुरूप सीखने समझने का मौका मिलता है। ऐसे में हर बच्चा डिस्टिंक्शन माक्र्स हासिल कर सके। यह सम्भव ही नहीं है लेकिन तमाम परीक्षाओं और आगामी पढ़ाई की प्रवेश परीक्षाओं में नम्बर गेम हावी है और ऐसा भयावह माहौल तैयार किया जा रहा है कि यदि नम्बर गेम में पिछड़े तो जिन्दगी में भी पिछड़ जाओगे ऐसे बेहद कुटिल संवेदना रहित प्रतिस्पर्धी माहौल में बच्चों के ऊपर बन रहे दबाव, मिल रहे तानों और करियर बिगड़ जाने के खतरे के साथ साथ बेरोजगार रह जाने के भय के बीच मां-बाप की अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरने की हीन भावना बच्चों को जीवन से हार मान लेने की ओर धकेल रही है। यह हालात तैयार करने के लिए सरकार सिस्टम शिक्षा पद्धति अभिभावक सब सामूहिक रूप से जिम्मेदार हैं। सिर्फ एक परीक्षा में अपेक्षित परिणाम न आने पर हमारी किशोर व नवयुवा जनरेशन सुसाइड की राह चुन रही है।
एक अध्ययन में बताया गया कि भारत में आत्महत्याओं की सर्वाधिक दर 15 से 29 वर्ष आयु वर्ग के युवाओं के बीच है। वर्ष 2022 में होने वाली आत्महत्याओं में 7.6 प्रतिशत छात्र थे और उस वर्ष 13,000 से अधिक छात्रों ने आत्महत्या की थी।हाल ही में परीक्षाओं के परिणामों की घोषणा के बाद आत्महत्याओं की दुखद घटनाओं से कलेजा फट पड़ता है 12 अप्रैल, 2024 को मुम्बई के कांदीवाली में अजय जांगिड़ नामक एम.बी.बी.एस. के छात्र ने परीक्षा में कम अंक आने के कारण अवसाद से पीड़ित होकर अपने घर में फांसी लगाकर जान दे दी। 8 मई को झारखंड के गिरिडीह में कार्मेल स्कूल की छात्रा शाम्भवी कुमारी ने आई. सी.एस.ई. की दसवीं कक्षा की परीक्षा में कम अंक आने के परिणामस्वरूप अवसादग्रस्त हो जाने के कारण फंदे से लटक कर आत्महत्या कर ली। 9 मई को उत्तर प्रदेश के फतेहपुर में 10वीं कक्षा की परीक्षा में साक्षी नामक छात्रा को हालांकि 95.3 फीसद अंक प्राप्त करने पर विद्यालय ने सम्मानित किया था, परंतु वह स्कूल में मात्र 3 अंकों के अंतर से टॉपर बनने से वंचित रह जाने के कारण गुमसुम रहती थी और इसी कारण उसने आत्महत्या कर ली। 14 मई को पूर्वी दिल्ली के लक्ष्मीनगर इलाके में सी.बी.एस.ई. की 12वीं कक्षा की परीक्षा में 2 विषयों में फेल होने पर अर्जुन सक्सेना नामक 16 वर्षीय छात्र ने फंदा लगाकर आत्महत्या कर ली।14 मई को ही उत्तर प्रदेश में चंदौली के चकियां कोतवाली इलाके में सी. बी. एस.ई. की 10वीं कक्षा की छात्रा हिना अपनी आशा के विपरीत मात्र 70 प्रतिशत अंक पा कर इतनी निराश हुई कि अपने कमरे में जाकर आत्महत्या कर ली। 14 मई को ही सी.बी.एस.ई. की 12वीं कक्षा का परिणाम घोषित होने के बाद उत्तर प्रदेश के बागपत में लक्ष्य नामक एक छात्र ने 4 विषयों में फेल हो जाने पर निराश होकर पेड़ पर फंदा लगाकर आत्महत्या कर ली। बरेली के नवाबगंज की रहने वाली छात्रा काजल ने इंटरमीडिएट की परीक्षा में फेल होने पर सुसाइड कर लिया जबकि बड़ौत की पट्टी चैधरान के रहने वाले आयुष बालियान नामक छात्र ने कम अंक आने पर जहरीला पदार्थ निगल कर जान दे दी। 14 मई को ही उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में ओजस्वी नामक एक छात्र को सी.बी.एस.ई. की 12वीं की परीक्षा में कम नंबर आने का इतना दुख हुआ कि उसने सुसाइड नोट लिखकर आत्महत्या कर ली। 14 मई को ही पंजाब में नंगल सब डिवीजन के गांव संगतपुर में एक स्कूल में 12वीं कक्षा के छात्र ने परीक्षा में कम अंक आने पर निराश होकर फंदा लगाकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली।बठिंडा की बीए पार्ट टू की छात्रा तलवीर कौर ने भी फांसी लगाकर जान दे दी। कन्नोज के सौरिख में यूपी बोर्ड की हाईस्कूल परीक्षा में अनुत्तीर्ण होने पर छात्रा ने साड़ी का फंदा गले में कसकर आत्महत्या कर ली।
वहीं नीट और जेइइ प्रवेश परीक्षा की तैयारी के लिए मशहूर कोचिंग सिटी कोटा भी अब सुसाइड सिटी बन कर रह गया है वहां हर साल दो दर्जन से अधिक छात्र छात्राओं की सुसाइड की घटनाएं चिंताजनक हैं। ऐसी घटनाओं की बहुत लम्बी श्रृंखला है सवाल उठता है कि जिस परिवार का बच्चा आत्मघाती कदम उठा लेता है। उसका तो सब कुछ छिन जाता है आजकल अधिकांश परिवारों में न्यूक्लियर फैमिली सिस्टम है एक या दो बच्चे हैं जिनके लिए मां बाप दिन रात मेहनत कर फीस जुटाते है और दुर्भाग्यवश ऐसी कोई वारदात हो जाए तो उस परिवार के सामने अंधकार छा जाता है। ऐसी घटनाओं से कितने कुल दीपक बुझ गए कितने ही परिवार उजड़ गए हैं। इस वर्ष यूपी बोर्ड के रिजल्ट आते ही 26 अप्रैल को एक दर्जन छात्रों ने मौत को गले लगा लिया। तेलंगाना तथा मध्य प्रदेश में अप्रैल में घोषित इंटरमीडिएट तथा 10वीं कक्षा की बोर्ड परीक्षाओं के परिणाम घोषित होने के बाद 11 छात्रों ने अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली थी। यही हालत बिहार, राजस्थान, हरियाणा, उत्तराखंड, केरल, आंध्र प्रदेश समेत देश के कोने-कोने में देखने को मिली है।
बच्चों पर माक्र्स फोबिया इस कदर हावी है कि वह जरा सा कम नम्बर आते ही डिप्रेशन का शिकार बन रहे हैं और तुरंत जीवन से किनारा करने की ठान रहे हैं। इसके लिए अभिभावकों की महत्वाकांक्षाएं बच्चों की क्षेत्रवार सही क्षमता का आकलन किए बिना उन्हें जबरन अनिच्छा वाले फील्ड में धकेलना बच्चों को हताशा में धकेल रहा है। इसके अलावा पडोसियों या सहपाठी छात्र छात्राओं से अपने बच्चों की तुलना कर उन्हें मानसिक रूप से तनाव देना साथ ही पड़ोसियों रिश्तेदारों द्वारा जानबूझकर बच्चों की परीक्षा के बारे में बार बार पूछना अपनी प्रतिक्रिया देना भी बच्चों के मन में ईगो हर्ट कर ग्लानि या निराशा पैदा करता है। अभिभावकों को अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलवाने के साथ-साथ काऊंसलिंग द्वारा या स्वयं प्रेरणा देकर उनके मन में इस तरह की बातों पर हताश न होने तथा आगे और अधिक पक्के इरादे के साथ मेहनत करने के लिए उनके भीतर एक जज्बा और आत्मविश्वास तैयार करने की कोशिश करना चाहिए ।
अभिभावकों को अंतिम तौर पर यह मानना चाहिए कि सृष्टि में हर जीव को ईश्वर किसी खास मकसद से जन्म देकर उन्हें उनके प्रारब्ध के अनुसार योग्यता पद प्रतिष्ठा कार्यक्षेत्र प्रदान करता है। प्रयास जरूर करें लेकिन परिणाम को सहज स्वीकार करने की मानसिक स्थिति बनाएं। बच्चे को मुसीबतों से जूझने के लिए तैयार करें कमरे में बंद पढाकू न बनाएं उसे नियमित आउटडोर गेम्स खेलने की प्रेरणा दें। इस दौरान वह हम उम्र मित्रों के साथ कुछ समय स्पेंड करेगा जो उसके मानसिक स्वास्थ्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। बच्चों को भी यह समझाना जरूरी है कि छोटी-छोटी विफलता जीवन में आती रहेंगी भारत की क्रिकेट टीम हर बार विश्वकप नहीं जीत सकती है न ही हर बार राहुल द्रविड़ शतक जमा सकता है। इसलिए मेहनत करें लेकिन परिणाम ईश्वर के हाथ है, हताश होने की बजाय उनका मजबूती के साथ सामना करने में ही जीवन की सार्थकता है। (हिफी)
(मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)