राजनीति

इस बार हाईकोर्ट पर ममता का पारा चढ़ा

 

तृणमूल कांग्रेस की नेता और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को कलकत्ता हाईकोर्ट का एक फैसला इतना अखर गया है कि वे अपने गुस्से पर काबू नहीं रख सकीं। हाईकोर्ट के फैसले से संतुष्ट न होने पर सुप्रीम कोर्ट मंे जाने का रास्ता रहता है लेकिन कोर्ट के फैसले पर गुस्सा नहीं दिखाया जाता। कलकत्ता हाईकोर्ट ने पश्चिम बंगाल मंे 37 वर्गों को दिये गये ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) आरक्षण को रद्द कर दिया। कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले से मुसलमानों के करीब पांच लाख ओबीसी सर्टिफिकेट रद्द हो जाएंगे और जाहिर है कि इसके तहत मिल रही सुविधाएं भी छिन जाएंगी।इस फैसले के आने के समय लोकसभा के चुनाव भी चल रहे हैं, जो सात चरण मंे
1 जून तक पूरे होंगे। इसी बीच कलकत्ता हाईकोर्ट का फैसला आया तो ममता बनर्जी आक्रामक हो गयीं और कहती हैं कि मैं किसी भी हालात में इसे नहीं मानूंगी। ओबीसी दर्जा रद्द करने और ओबीसी सर्टिफिकेट रद्द करने की अदालत का फैसला उनको स्वीकार्य नहीं है। कलकत्ता हाईकोर्ट का यह फैसला विपक्षी दलों, विशेषकर भाजपा को चुनाव के समय रामबाण साबित हो रहा है। केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने ममता बनर्जी के वोट बैंक राजनीति पर जमकर प्रहार भी किया है। दरअसल, हाईकोर्ट ने भी विशेष समुदाय को रेवड़ियां बांटने की तरफ इशारा किया है।

कलकत्ता हाई कोर्ट ने पश्चिम बंगाल में 37 वर्गों को दिए गए ओबीसी (अन्य पिछड़े वर्ग) आरक्षण रद्द क्या किया। ममता बनर्जी बगावत पर उतर आईं हैं। अदालत में चुनौती देने का संकेत दिया। इसके साथ ही अपनी आवाज को बुलंद करते हुए ममता ने कहा कि वह अदालत का सम्मान करती हैं, लेकिन मुस्लिमों को ओबीसी आरक्षण से बाहर रखने वाले फैसले को वह स्वीकर नहीं करती। ममता बनर्जी का एक वीडियो बीजेपी नेता अमित मालवीय ने अपने एक्स हैंडल पर शेयर किया है, जिसमें वह अदालत की बात मानने से साफ इनकार करती नजर आ रही हैं। ममता का कहना है कि पश्चिम बंगाल में ओबीसी आरक्षण जारी रहेगा, क्योंकि इससे संबंधित विधेयक संविधान की रूपरेखा के भीतर पारित किया गया था। सीएम ममता बनर्जी ने आरक्षण रोके जाने का आरोप भी बीजेपी पर मढ़ दिया। उन्होंने कहा कि बीजेपी केंद्रीय एजेंसियों का इस्तेमाल कर ओबीसी आरक्षण को रोकने की साजिश कर रही है। उन्होंने कहा, कुछ लोग ओबीसी के हितों पर कुठाराघात करने के लिए अदालत गए और उन्होंने याचिकाएं दायर कीं, तब यह घटनाक्रम सामने आया है।
इस बीच केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी बंगाल की ममता बनर्जी सरकार पर हमलावर नजर आए। उन्होंने ममता बनर्जी पर वोट बैंक की राजनीति के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता करने और घुसपैठियों को राज्य की जनसांख्यिकी बदलने की अनुमति देकर पाप करने का आरोप लगाया।

कलकत्ता हाई कोर्ट ने पश्चिम बंगाल में कई वर्गों को दिया गया ओबीसी का दर्जा रद्द कर दिया। साथ ही साल 2010 के बाद जारी सभी ओबीसी प्रमाण पत्रों को रद्द कर दिया। अदालत ने कहा कि राज्य में सेवाओं और पदों में रिक्तियों में 2012 के एक अधिनियम के तहत ऐसा आरक्षण गैरकानूनी है। हाई कोर्ट ने अधिनियम के प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आदेश पारित करते हुए स्पष्ट किया कि जिन वर्गों का ओबीसी दर्जा हटाया गया है, उसके सदस्य अगर पहले से ही सेवा में हैं या आरक्षण का लाभ ले चुके हैं या राज्य की किसी चयन प्रक्रिया में सफल हो चुके हैं, तो उनकी सेवाएं इस फैसले से प्रभावित नहीं होंगी। अदालत के इस फैसले से उन लोगों को बड़ी राहत मिली है जो ओबीसी सर्टिफिकेट के आधार पर आरक्षण पाकर नौकरी कर रहे हैं। हाई कोर्ट की बेंच ने कहा कि राजनीतिक उद्देश्य के लिए मुस्लिमों के कुछ वर्गों को ओबीसी आरक्षण दिया गया। यह लोकतंत्र और पूरे समुदाय का अपमान है। अदालत ने अपनी टिप्पणी में ये भी कहा कि इन समुदायों को आयोग ने जल्दबाजी में इसलिए ओबीसी आरक्षण दिया, क्योंकि ये सीएम ममता बनर्जी का चुनावी वादा था। सत्ता में लौटते ही इस वादे को पूरा करने के लिए असंवैधानिक तरीके से आयोग ने आरक्षण की रेबड़ियां बांटीं। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि 2010 में बंगाल में पिछड़े मुस्लिमों के लिए 10 फीसद आरक्षण की घोषणा के छह महीने के भीतर, राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग ने 42 समुदायों को ओबीसी के रूप में अनुशंसित किया, जिनमें से 41 समुदाय मुस्लिम थे। सिफारिश के बाद, राज्य ने तुरंत इन समुदायों को सूची में शामिल कर लिया। इसके बाद, 11 मई, 2012 में राज्य में 35 वर्गों (ओबीसी-ए श्रेणी में 9 और ओबीसी-बी में 26) को शामिल किया गया। कोर्ट ने कहा कि ममता बनर्जी के चुनावी वादे को पूरा करने के लिए आयोग ने जल्दबाजी में आरक्षण दे दिया।

अदालत का यह फैसला ममता सरकार के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। ममता सरकार ने साल 2012 में एक कानून लागू किया था। इस कानून में ओबीसी वर्ग के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण का प्रावधान था। कोर्ट ने 2012 के उस कानून के एक प्रावधान को भी रद्द कर दिया है। इनमें कई जातियों और अन्य पिछड़ा वर्ग शामिल था। अदालत के फैसले का असर करीब 5 लाख लोगों पर होगा। ममता सरकार के वोट बैंक पर भी इसका असर देखने को मिल सकता है। सरकार के वादे के मुताबिक, जिन लोगों को आरक्षण का फायदा मिल रहा था, वह अब नहीं मिलेगा तो इन समुदायों की ममता सरकार से नाराजगी तो निश्चित है। इसका असर आगामी चुनावों पर पड़ सकता है। ममता सरकार को मुस्लिम समुदायों की नाराजगी भी झेलनी पड़ सकती है।
कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति तपब्रत चक्रवर्ती और न्यायमूर्ति राजशेखर मंथा की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि 2010 से पहले ओबीसी के 66 वर्गों को वर्गीकृत करने वाले राज्य सरकार के कार्यकारी आदेशों में हस्तक्षेप नहीं किया गया, क्योंकि इन्हें याचिकाओं में चुनौती नहीं दी गई थी। पीठ ने निर्देश दिया कि पांच मार्च, 2010 से 11 मई, 2012 तक 42 वर्गों को ओबीसी के रूप में वर्गीकृत करने वाले राज्य के कार्यकारी आदेशों को भी रद्द कर दिया गया। (हिफी)

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

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