सम-सामयिक

चारधाम यात्रा की व्यवस्था नाकाफी

 

उत्तराखंड की चारधाम यात्रा के ज्यादातर रास्ते सैलानियों की बेतादाद भीड़ से ब्लाक हो रहे हैं। खासकर केदारनाथ के रास्ते साठ किलोमीटर पहले से ही यातायात जाम से जूझ रहे हैं। चार धाम यात्रा के शुरुआती नौ दिनों के दौरान कम से कम 29 तीर्थयात्रियों की मौत हो गई है, मुख्य रूप से हृदय संबंधी जटिलताओं के कारण। मृतकों में बद्रीनाथ, यमुनोत्री, गंगोत्री और केदारनाथ में हुई मौतें शामिल हैं, जिसके बाद अधिकारियों ने तीर्थयात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाए हैं, जिसमें घोड़ों और खच्चरों की आवाजाही पर प्रतिबंध लगाना भी शामिल है।

चारधाम यात्रा को लेकर श्रद्धालुओं का उत्साह चरम पर है. रोजाना बड़ी तादाद में तीर्थयात्री यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ पहुंच रहे हैं। इसी बीच यात्रियों की सुविधा के लिए उत्तराखंड सरकार ने आदेश जारी किया है कि सभी तीर्थयात्रियों के लिए पंजीकरण कराना अनिवार्य है। इसे लेकर उत्तराखंड की मुख्य सचिव ने आदेश जारी किया है कि हरिद्वार और ऋषिकेश में ऑफलाइन पंजीकरण बंद कर दिए जाने से अब ऑनलाइन पंजीकरण के बाद ही श्रद्धालु चारधाम यात्रा पर आ सकते हैं। शासनादेश में कहा गया है कि उम्मीद है कि असुविधा से बचने के लिए सभी तीर्थयात्री यात्रा एडवाइजरी का पालन करते हुए शासन-प्रशासन को सहयोग करेंगे। बता दें कि 10 मई से प्रारंभ हुई चारधाम यात्रा में अब तक करीब 8 लाख चारों धामों के दर्शन कर चुके हैं। इस साल चारधाम यात्रा 3 नवंबर तक चलेगी।

10 मई को केदारनाथ और यमुनोत्री गंगोत्री धाम के कपाट खोले गए जबकि बद्रीनाथ मंदिर में दर्शन 12 मई से शुरू हुए। इसी के साथ पर्यटकों की भारी भीड़ ने तमाम इंतजामात को ध्वस्त कर दिया। यहां पहले ही दिन हजारों लोगों की भीड़ के कारण अव्यवस्था देखने को मिली। वहीं श्रद्धा आस्था के ऊपर पर्यटन वाली मानसिकता हावी होती देखी जा सकती है, जिसके चलते पहाड़ के नाजुक पर्यावरण के साथ भी खिलवाड़ की जा रही है। आस्था और पर्यटन का यह संगम पहाड़ की सेहत के लिए भी खतरा खड़ा कर सकता है। अब 31 मई तक के लिए यात्रा का आफलाइन पंजीकरण बंद कर दिया गया है।
पिछले साल यात्रा खत्म होने के बाद सरकार द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक केदारनाथ में 96, यमुनोत्री धाम में 34, गंगोत्री धाम में 29, बद्रीनाथ धाम में 33 और हेमकुंड साहिब में 7 और गौमुख ट्रेक में 1 यानी कुल दो सौ लोगों की मौत हुई थी. वहीं 2022 में चारधाम यात्रा के दौरान 232 श्रद्धालुओं की मौत हुई थी। यह आंकड़े काफी डराने वाले हैं। अगर आप अभी उत्तराखंड में चारधाम यात्रा करने का प्लान बना रहे हैं तो फिलहाल इसे कुछ दिन टाल दें, क्योंकि अधिक भीड़ हो जाने से व्यवस्थाएं चरमरा गई हैं। यह स्थिति इसलिए बनी क्योंकि बिना रजिस्ट्रेशन के यात्री पहुंच रहे हैं बुधवार से प्रशासन ने सख्ती शुरू कर दी है। व्यवस्था सुधारने के लिए सचिव स्तर के अधिकारी पहुंचे हैं। अब तक 2 लाख 76 हजार 416 श्रद्धालु चारधाम के दर्शन कर चुके हैं। उत्तरकाशी-गंगोत्री मार्ग पर पर सोमवार को गंगनानी के पास 45 किलोमीटर लंबा जाम लगा था जिसे बार बार खुलवाया गया है। हालांकि यात्रा सुचारु रुप से चलने का दावा किया गया है।कोशिश है सुगम व सुरक्षित यात्रा के साथ हर श्रद्धालु को दर्शन का लाभ मिले।यात्रा के लिए 35 लाख से ज्यादा रजिस्ट्रेशन हो चुके हैं।

पहले दिन अधिक श्रद्धालु पहुंच गए यमुनोत्री धाम में पांच किमी का रास्ता बेहद संकरा है। यहां पर एक समय में सीमित संख्या में ही लोग आ-जा कर सकते हैं। पिछले साल जब कपाट खुले थे तो उस दिन कुल 6,838 श्रद्धालु आए थे जबकि इस बार कपाट खुलने वाले दिन 12,193 यात्री आ गए। केदारनाथ धाम में पिछले साल कपाट खुलने वाले दिन 18,335 यात्री आए लेकिन इस साल करीब 29 हजार श्रद्धालु पहुंच गए। यमुनोत्री धाम के जानकी चट्टी में कुल 15,455 श्रद्धालु थे जिनमें से आज सुबह 10 बजे तक कुल 4 हजार यात्री दर्शन भी कर चुके थे। गंगोत्री में 3902, केदारनाथ में सुबह 10 बजे तक 8194 एवं बद्रीनाथ में 4518 ने श्रद्धालुओं ने दर्शन किए।सुरक्षा के मद्देनजर कुछ यात्रियों को यमुनोत्री व गंगोत्री मार्ग पर भी ठहराया जा रहा है। सूखी टॉप से लौटते समय व गंगनानी से आगे गेट सिस्टम लागू किया गया है।
10 मई को कपाट खुलने के बाद से अब तक करीब चार लाख श्रद्धालुओं ने केदारनाथ पहुंचकर नया रिकॉर्ड बनाया है।लोगों के लिए न रुकने का ठिकाना, न खाने-पीने की व्यवस्था पिछले चार दिनों के दौरान गंगोत्री जाते वक्त उत्तरकाशी से 20 किमी आगे बढ़ते ही सड़क किनारे बच्चे, महिलाएं, बुजुर्ग आराम करते दिख रहे हैं। यहां न खाने का ठिकाना है और न रुकने का। आसपास के गांवों के लोग पानी की बोतल के 30 से 50 रु. तो शौचालय उपयोग का 100 रु. तक ले रहे हैं।

गंगोत्री रूट पर छह दिन से जाम में फंसे महाराष्ट्र, मप्र, गुजरात, राजस्थान, ओडिशा और दिल्ली के 7 हजार यात्रियों ने आगे की यात्रा स्थगित कर लौटना ही मुनासिब समझा। पौराणिक ग्रंथों के मुताबिक उत्तराखंड में चारधाम यात्रा 1200 साल से हो रही है, लेकिन पहली बार इतने श्रद्धालु पहुंचे हैं।
अधिक तादाद में श्रद्धालुओं के पहुंचने से एक ओर व्यवस्थाओं का गड़बड़ाना लाजिमी है दूसरी ओर पवित्र स्थलों की पवित्रता भी प्रभावित होने की संभावना कम नही है। जब इतना अधिक संख्या में यात्रियों के जमघट चारों धाम पहुंच रहे हैं तो पहाड़ के संवेदनशील भौगोलिक वातावरण पर दुष्प्रभाव होना भी स्वाभाविक है। बेशक पर्यटन से राजस्व कमाने और रोजगार व अर्थव्यवस्था सुधारने के लिए चारधाम यात्रा को आकर्षण बनाने की मुहिम की गई जिसका परिणाम यात्रा के लिए आ रहे लोगों की बढी तादाद है लेकिन तत्कालिक लाभ के लिए पहाड़ की सेहत से खिलवाड़ उचित नहीं है। पूर्व में उत्तराखंड का केदारनाथ जिस प्राकृतिक त्रासदी से दो चार हो चुका है जिसमें कई हजार श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी उस को भी याद रखना चाहिए लेकिन इन दिनों लोगों में कभी बेहद दुर्गम व पवित्र तीर्थ धाम माने जाने वाले इन पावन स्थलों को पर्यटन की तर्ज पर घूमने की होड़ लगी हुई है दरअसल सम्पन्न मध्यमवर्गीय लोगों में आस्था और पर्यटन एक पंथ दो काज करने की मानसिकता बनी है लोग इन समुद्र तल से आठ हजार फुट व अधिक ऊचाईयों वाले कम आक्सीजन वाले धार्मिक स्थलों पर बुजुर्गों और छोटे बच्चों को भी साथ लेकर आ रहे हैं। यात्रा शुरु होने के पहले सप्ताह में ही दर्जनों श्रद्धालुओं की मौत बता रही है कि लापरवाही चरम पर है व्यवस्थाएँ कमजोर है और सिस्टम नाकारा है। इस सब के बावजूद लोगों में पहाड़ पर पर्यटन की तर्ज पर चारधाम जाने की होड़ लगी है। यह उचित नहीं है। धार्मिक स्थलों की मर्यादाओं को ध्यान में रखकर दर्शन करने से ही पुन्य मिल सकता है पर्यटन के भाव से मौज मस्ती और अमर्यादित वस्त्र परिधान पहन कर धार्मिक विश्वास दर्शाना महज धोखा है। इन हालातों में पहाड़ की सेहत से तो जबरदस्त खिलवाड़ की जा रही है ऐसा करना अतिसंवेदनशील पहाड़ी क्षेत्रों की प्राकृतिक सौंदर्य और वातावरण के साथ भी अन्याय है। (हिफी)

(मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)

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