गैर अनुशासित बच्चे

हाल ही में किशोर अपचारियों द्वारा किए गए अपराध और उनके संदर्भ में अदालत द्वारा दिए गए आदेश परस्पर विसंगति दर्शा रहे हैं। आपको बता दें कि हाल ही में उत्तराखंड के एक स्कूल में 14 साल की गर्ल क्लासमेट का अश्लील वीडियो वायरल करने वाले छात्र को सुप्रीम कोर्ट ने जमानत देने से इनकार कर दिया। इस वीडियो से हुई बदनामी के भय की वजह से पीड़ित बच्ची ने कथित तौर पर आत्महत्या कर ली थी। मिली रिपोर्ट्स के मुताबिक, आरोपी को जमानत न देने वाली अदालत के इस फैसले से एक नजीर पेश हुई है कि कानून तोड़ने वाले बच्चों को अपराध गंभीर होने के बाद भी जमानत मिलनी चाहिए, ये अपवाद है। उत्तराखंड मामले में अदालत के फैसले के बाद पुणे के उस केस की चर्चा तेज हो गई है, जिसमें पोर्शे कार से दो लोगों की जान लेने वाले नाबालिग आरोपी को महज 300 शब्दों का निबंध लिखवाकर और अन्य शर्तों के साथ जुबेनाइल कोर्ट से जमानत मिल गई।हालांकि इस मामले में पुलिस आरोपी के लिए सख्त सजा की मांग कर रही है. उत्तराखंड का मामला पुणे केस में भी एक नजीर साबित हो सकता है। इन दोनों मामलों में दोनों अदालतों के नजरिए में साफ विसंगति नजर आ रही है। एक ओर सर्वोच्च न्यायालय की पीठ उस किशोर अपचारी की जमानत याचिका खारिज करने के हाइकोर्ट के निर्णय को सही ठहराती है जिस किशोर की कथित करतूत के कारण एक नाबालिग छात्रा ने सुसाइड कर अपनी जान गंवा दी। दूसरी ओर निचली अदालत ने 17 साल के उस उद्दंडी नाबालिग को हाथों हाथ जमानत देदी थी जिसने शराब पीकर रश ड्राइविंग कर दो युवा आइटी इंजिनियरो को पुणे में सड़क पर कुचल कर मार दिया।
जब किसी बच्चे द्वारा कानून या समाज के खिलाफ कोई कार्य किया जाता है, तब उसे बाल अपराध की संज्ञा दी जाती है जिसे किशोर अपचार अथवा बाल अपचारिता भी कहा जाता है। किशोर न्याय कानूनों में अपराध शब्द की जगह अपचारिता शब्द का प्रयोग किया गया है, क्योंकि समाज का मानना है कि बच्चे कभी अपराध नहीं करते, उनके कृत्य अभद्र, अशिष्ट या निन्दनीय हो सकते हैं, लेकिन वे कभी दण्ड योग्य नहीं हो सकते। भारत में बाल न्याय अधिनियम, 1986 (संशोधित 2000) के तहत 16 वर्ष की आयु तक के बालकों एवं 18 वर्ष की आयु तक की बालिकाओं द्वारा किये गए कानून विरोधी कार्य बाल अपराधी की श्रेणी में आते है। यह अलग बात है की राज्य एवं देश के अनुसार बाल अपराधी की अधिकतम आयु सीमा भी अलग हो सकती है। बाल अपराध के सम्बन्ध में हम केवल आयु को ही निर्धारित नहीं मान सकते इसमें कभी-कभी अपराध की गंभीरता भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, यानि 7 से 16 का बालक या 7 से 18 वर्ष की बालिका द्वारा कोई ऐसा अपराध किया जाता है, जिसकी सजा मृत्यु दण्ड या आजीवन कारावास है, उस स्थिति में हम उन्हें बाल अपराधी नहीं मान सकते, जैसे- हत्या, देशद्रोह, घातक आक्रमण आदि कार्य को करना।
समाज में आ रहे सामाजिक बदलाव व अपराध की बढ़ती प्रवृत्ति लोकाचार का समाप्त हो रहा भय डाॅन बतौर पहचान बनाने की ललक जैसे कारण है कि किशोरों में अपराधिक प्रवृत्ति बढ़ रही है राजधानी दिल्ली में ही पिछले कुछ वर्षों में कई नृशंस हत्याकांड को नाबालिग किशोर अपचारियों ने कारित किया है देश भर में किशोर अपचारियों की अपराधिक करतूतें लगातार बढ़ रही हैं। ऐसी स्थिति में कानून द्वारा किशोर अपचारियों को दिया गया संरक्षण अनेक गंभीर मामलों में उनकी अपराध करने की मनोवृति को प्रोत्साहित करने का काम करता मालूम पड़ता है। यहां तक कि अब संगठित गिरोह कानून में मिल रही नरमदिली का फायदा उठाकर किशोरों के हाथों सुपारी किलिंग जैसे अपराध को अंजाम दिलाने के लिए किशोरों का इस्तेमाल कर रहे हैं। हमारे विधि एवं न्याय व्यवस्था के नीति निर्माताओं को इन तथ्यों पर भी विचार कर किशोरों को मिल रही साफ्ट हार्ट ट्रीटमेंट की पुनर्समीक्षा करनी होगी।
उत्तराखंड के स्कूल में हुए अश्लील वीडियो मामले में इस साल 10 जनवरी को, जुबेनाइल कोर्ट, हरिद्वार ने कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चे की जमानत याचिका खारिज कर दी थी। बच्चे पर आईपीसी की धारा 305 और 509 और पोक्सो अधिनियम की धारा 13 और 14 के तहत मामला दर्ज किया गया था। जुबेनाइल कोर्ट के फैसले को हाई कोर्ट की तरफ से बरकरार रखे जाने के बाद आरोपी लड़के ने अपनी मां के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।
सीनियर वकील लोक पाल सिंह ने अदालत में दलील दी कि बच्चे के माता-पिता उनकी देखभाल करने के लिए तैयार हैं, उसे बाल सुधार गृह में नहीं रखा जाना चाहिए और उसकी हिरासत उसकी मां को दी जानी चाहिए. लेकिन न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की शीर्ष अदालत की बेंच ने हाल ही में हाई कोर्ट के फैसले की जांच करते हुए लड़के को जमानत देने से इनकार करने के फैसले को सही पाया। बता दें कि हाई कोर्ट ने जमानत देने से इनकार करते हुए लड़के को गैर अनुशासित बच्चा कहा था। बच्ची के पिता ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी कि लड़के ने उनके अश्लील वीडियो शूट कर क्लिप को छात्रों के बीच सर्कुलेट किया। बदनामी के डर से उनकी बेटी ने जान दे दी। बता दें कि अश्लील वीडियो सर्कुलेट होने के बाद बच्ची पिछले साल 22 अक्टूबर को अपने घर से लापता हो गई थी और बाद में उसका शव बरामद किया गया था. उत्तराखंड हाई कोर्ट के जज न्यायमूर्ति रवींद्र मैठाणी ने 1 अप्रैल को आरोपी को जमानत देने से इनकार करते हुए एक तर्कसंगत आदेश दिया था। उन्होंने कहा कि कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चे के लिए, हर अपराध जमानती है और वह सीआईएल जमानत का हकदार है, भले ही अपराध को जमानती या गैर-जमानती के रूप में वर्गीकृत किया गया हो। हालांकि, अदालत ने आगे कहा कि अगर यह मानने के लिए उचित आधार है कि रिहाई से कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चे को किसी ज्ञात अपराधी की संगति में लाने, उसे नैतिक, शारीरिक या मनोवैज्ञानिक खतरे में डालने की संभावना है, या फिर उसकी रिहाई से न्याय के उद्देश्य विफल हो जाएंगे, तो उसकी जमानत से इनकार किया जा सकता है।
बच्चों-किशोरों के अपराध की ओर आकर्षित होने के पीछे सामाजिक बदलाव भी जिम्मेदार है। आजकल छोटे न्यूक्लियर परिवार में एक दो बच्चे होते हैं जो मां-बाप के लाड प्यार में बेहद जिद्दी लापरवाह व उद्दंडी हो जाते हैं। अधिकांश परिवारों में दादा दादी ताऊ ताई या अन्य बड़ों का हस्तक्षेप या संरक्षण भी शून्य हो चला है। साथ ही आउटडोर गेम में हिस्सेदारी न कर अधिकांश बच्चे मोबाइल पर चिपके हैं। मोबाइल इन बच्चों को तमाम फूहड़ विकृति भरा माहौल घर बैठे दे रहा है। तमाम तरह की गंदी रील नृशंसता क्रूरता हैवानियत ओटीटी प्लेटफार्म पर भरमार है ऐसी स्थिति में बच्चे समय से पहले सेक्स और अपराध की ओर बढ़ रहे हैं। पुणे सड़क दुर्घटना के मामले में ही गौर कीजिए। सत्रह साल का किशोर दो करोड़ की पाॅर्श गाड़ी में रात के एक बजे पब में शराब की पार्टी करता है 48000 का पब का भुगतान किया जाता है फिर ढाई सौ की स्पीड पर गाड़ी ड्राइव करता है लेकिन दो युवा आइटी इंजीनियरों को कुचलने के लिए पकड़े जाने पर नाबालिग होने का कानूनी लाभ उठाता है। जाहिर है कि हमारा समाज बच्चों किशोरों को अनुशासित बनाने और लोकाचार शिष्टाचार संस्कार देने में नाकाम होता जा रहा है। इन हालातों को देखते हुए बाल किशोर अपचारियों के लिए बनाए गए कानून का पुनरीक्षण कर पुनः परिभाषित करने की जरूरत है। (हिफी)
(मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)