ओडिशा के लिए मोदी की वचनबद्धता

ओडिशा अर्थात् उड़ीसा मंे लोकसभा के साथ विधानसभा के भी चुनाव हो रहे हैं। लोकसभा की 21 सीटें हैं जबकि विधानसभा की 147 सीटें हैं। पूर्वी भारत मंे जहां भाजपा अपने पैर जमाना चाहती है, उनमें ओडिशा भी शामिल है। भाजपा ने यहां पर कांग्रेस से मुख्य विपक्षी दल का दर्जा छीन लिया है लेकिन नवीन पटनायक के बीजू जनता दल (बीजेडी) से सत्ता छीनने मंे सफलता नहीं मिली। भाजपा के लिए ओडिशा इस दृष्टि से भी महत्व रखता है कि यह विपक्षी दलों के गठबंधन इंडिया मंे शामिल नहीं है। नवीन पटनायक ने राज्यसभा मंे सरकार की कई बार मदद भी की है। लोकसभा और विधानसभा के चुनाव मंे ओडिशा को एनडीए मंे शामिल करने का प्रयास भी किया गया था लेकिन बात नहीं बनी। इसाीलिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की वचनबद्धता को राजनीतिक नजरिए से भी देखा जा रहा है। ओडिशा मंे डबल इंजन की सरकार न होते हुए भी हर प्रकार की मदद करने का आश्वासन दिया गया है। संबंधों की बलि चढ़ाने का यही मतलब निकाला जा रहा है क्योंकि इस बार भी भाजपा के नेतृत्व मंे अगर सरकार बनती है तो नवीन पटनायक मददगार साबित हो सकते हैं। इसके अलावा ओडिशा में तीन चरणों का मतदान सम्पन्न हो चुका है और आगामी 1 जून को चैथे चरण का मतदान सम्पन्न होना है। मोदी की यह वचनबद्धता चैथे चरण के मतदान को भी प्रभावित करेगी। बीते 10 सालों में बीजेडी ने मोदी सरकार को राष्ट्रीय महत्व के प्रसंगों पर समर्थन दिया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि वो ओडिशा की भलाई के लिए अपने निजी संबंधों की बलि चढ़ा देंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आरोप लगाया कि ओडिशा में पिछले 25 साल से विकास ठप पड़ा है। इसी साल फरवरी-मार्च में ओडिशा में आयोजित कार्यक्रम में मोदी ने ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक को अपना दोस्त बताया था। इसके बाद से इस बात की चर्चा तेज हो गई थी कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी और बीजेडी में समझौता हो सकता है, लेकिन यह समझौता नहीं हो पाया। अब प्रधानमंत्री विकास के लिए अपने निजी संबंधों की बलि चढाने की बात कर रहे हैं। कहते हैं प्रधानमंत्री हिंदुस्तान के सभी राजनीतिक दलों से हमारे संबंध अच्छे ही हैं, लोकतंत्र में राजनीतिक दलों से हमारी दुश्मनी नहीं होती है, हमारे संबंध अच्छे होने ही चाहिए। मेरे सामने सवाल यह है कि मैं अपने संबंधों को संभालू या ओडिशा के भाग्य की चिंता करुं, ऐसे में मैंने चुना कि मैं ओडिशा के उज्ज्वल भविष्य के लिए अपने आप को खपा दूंगा। इसके लिए अगर मुझे अपने संबंधों को बलि चढ़ानी पड़ेगी तो ओडिशा की भलाई के लिए मैं अपने संबंधों की बलि चढ़ा दूंगा। उन्होंने कहा कि चुनाव के बाद मैं सबको यह समझाने की कोशिश करुंगा कि मेरी किसी से दुश्मनी नहीं है। लेकिन 25 साल से ओडिशा में प्रगति नहीं हो रही है। यह सबसे बड़ी चिंता है। तीन फरवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ओडिशा के संबंलपुर और पांच मार्च को चंडीखोल आए थे। इस अवसर पर उन्होंने मुख्यमंत्री नवीन पटनायक को अपना मित्र और लोकप्रिय मुख्यमंत्री बताया था। इस दौरान उन्होंने पटनायक सरकार के कामकाज पर कोई टिप्पणी नहीं की थी लेकिन कई दौर के बातचीत के बाद दोनों दलों में कोई समझौता आकार नहीं ले सका।इसके बाद बीजेपी ने 23 मार्च को अकेले ही चुनाव में जाने का फैसला किया। अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष मनमोहन सामल ने की थी। सोशल मीडिया पर अपनी पोस्ट में सामल ने पिछले 10 सालों में राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर मोदी सरकार को समर्थन देने के लिए बीजेडी का आभार भी जताया था। इससे इस बात को बल मिला कि दोनों दल चुनाव के बाद भी समझौता कर सकते हैं। सामल ने भी बीजेडी, ओडिशा सरकार, या मुख्यमंत्री नवीन पटनायक पर एक शब्द भी नहीं कहा था। उन्होंने केवल ओड़िया अस्मिता, गौरव और जनहित की बात कही थी। ओडिशा में बीजेडी से समझौते की चर्चा बीजेपी के नेता ही ज्यादा कर रहे थे। बीजेडी के नेता इसको लेकर संयम बरत रहे थे। बीजेडी नेताओं का कहना था कि वे अपने बूते लोकसभा और विधानसभा चुनाव जीत सकते हैं।
ओडिशा में दरअसल समझौता दोनों दलों की जरूरत थी। एक तरफ बीजेपी एनडीए का कुनबा बढ़ाना चाहती थी, जिससे अबकी बार 400 पार के नारे को जमीन पर उतारने में मदद मिले। वहीं समझौते के बाद राज्य सरकार में हिस्सेदारी भी मिलती। वहीं बीजेडी को इस बात का डर था कि बीजेपी से समझौता न करने पर कहीं उसका भी हाल वही न हो जाए जो विपक्ष की दूसरी सरकारों का हुआ था। बीजेडी की इस चुनाव में सत्ता विरोधी लहर का डर भी सता रहा है। इसलिए वो अपनी मुख्य विरोधी दल से ही हाथ मिलाना चाह रही थी। सीटों के बंटवारे और सत्ता की भागीदारी को लेकर समझौता नहीं हो सका लेकिन दोनों दलों ने चुनाव के बाद समझौते की उम्मीदों को जिंदा रखा है।
बीजेपी ने गत 14 फरवरी को राज्यसभा उम्मीदवारों की दूसरी लिस्ट जारी की थी। इस लिस्ट में 5 उम्मीदवारों के नाम थे। बीजेपी ने ओडिशा से केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव को उम्मीदवार बनाया, जबकि मध्य प्रदेश से माया नरोलिया और एल मुरुगन को टिकट दिया गया। मध्य प्रदेश से दो अन्य उम्मीदवारों को टिकट दिया गया। जिनके नाम बंसीलाल गुर्जर और उमेश नाथ महाराज है। खास बात ये है कि ओडिशा की सत्ताधारी पार्टी बीजद ने अश्विनी वैष्णव की उम्मीदवारी का समर्थन किया है।
ओडिशा में बीजेपी-बीजेडी गठबंधन बनते-बनते बिगड़ गया था। गठबंधन होने की आखिरी उम्मीद बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष मनमोहन सामल के अकेले चुनाव लड़ने के ऐलान ने खत्म कर दी थी। मनमोहन सामल ने ट्वीट के जरिये जानकारी दी कि बीजेपी ओडिशा में अपने अकेले दम पर सभी 21 लोकसभा और 147 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी। (हिफी)
(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)