राजनीति

पंजाब का सियासी तापमान बढ़ा

 

कांग्रेस के साथ विपक्षी गठबंधन इंडिया में शामिल आम आदमी पार्टी (आप) के नेता अरविन्द केजरीवाल कहते हैं कि कांग्रेस के साथ न लव मैरिज हुई है और न अरेन्ज मैरिज। उधर, डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम-रहीम भी चर्चा के केन्द्र मंे आ गये क्योंकि सातवें चरण मंे पंजाब मंे लोकसभा चुनाव के लिए मतदान होना है। पंजाब में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी अलग-अलग चुनाव लड़ रही हैं जबकि डेरा सच्चा सौदा का समर्थन भी चुनाव को प्रभावित करता है। डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम-रहीम अपनी दो शिष्याओं की दुराचार के बाद हत्या के आरोप मंे जेल में बंद हैं। उन पर डेरा के प्रबंधक रंजीत सिंह की हत्या का भी आरोप लगाया गया था। सीबीआई कोर्ट ने इस मामले में बाबा गुरमीत राम रहीम को उम्र कैद की सजा सुनाई थी लेकिन मतदान से तीन दिन पहले ही पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम-रहीम को रंजीत सिंह की हत्या के आरोप से बरी कर दिया। डेरा सच्चा सौदा की तरफ से पूर्व में भाजपा को वोट देने की अपील की जाती रही है। इस प्रकार पंजाब की सियासत का ताप मौसम के तापमान से ज्यादा बढ़ गया है।

विपक्षी दलों का गठबंधन बिखरा-बिखरा दिख रहा है तो सत्तारूढ़ भाजपा के पक्ष में हालात अनुकूल हैं। सातवें चरण का मतदान विपक्ष के लिए ज्यादा महत्वपूर्ण है लेकिन स्वार्थ भी टकरा रहे हैं। इसीलिए आम आदमी पार्टी के संस्थापक अरविन्द केजरीवाल पंजाब में अपना वर्चस्व कम नहीं होने देना चाहते। आम आदमी पार्टी ने वहां कांग्रेस से ही सत्ता छीनी है। इसलिए सभी 13 संसदीय सीटों पर आप कब्जा करना चाहती है। कांग्रेस और आप की लड़ाई का फायदा भाजपा उठा सकती है। डेरा प्रमुखों का समर्थन इसमें मदद करेगा। केजरीवाल इसीलिए कांग्रेस से दूरी बना रहे हैं। वह कहते हैं हम लोग (कांग्रेस व आप) देश बचाने के लिए 4 जून तक चुनाव लड़ने के लिए साथ आए हैं, बस। इसके बाद तय करेंगे कि आगे क्या करना है। हालांकि आम आदमी पार्टी चंडीगढ़ में कांग्रेस प्रत्याशी मनीष तिवारी का समर्थन कर रही है।

लोकसभा चुनाव 2024 के आखिरी चरण में पंजाब के राजनीतिक तापमान में तेजी आ गई है। एक बार फिर से डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम चर्चा के केंद्र में आ गए हैं। बता दें कि बीते 28 मई को ही पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने गुरमीत राम रहीम को रंजीत सिंह की हत्या के जुर्म से बरी कर दिया है। सीबीआई कोर्ट ने इसी मामले में राम रहीम को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। हाईकोर्ट का यह फैसला पंजाब में होने वाले लोकसभा चुनाव से ठीक पहले आया है। राजनीतिक विश्लेषक इस फैसले के असर को लेकर अब तरह-तरह की बातें करना शुरू कर दिए हैं। पंजाब की सियासत में गुरमीत राम रहीम और अन्य डेरों के वजूद को दरकिनार नहीं किया जा सकता।

चुनाव पंजाब में हो रहे हैं, लेकिन इस फैसले की गूंज देश के दूसरे राज्यों में भी सुनाई दे रही है। गुरमीत राम रहीम पर हाईकोर्ट के फैसले के बाद हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में भी इसकी चर्चा शुरू हो गई है। हालांकि, राजस्थान, यूपी और हरियाणा में चुनाव हो चुके हैं। डेरा सच्चा सौदा के लाखों अनुयायी इन राज्यों में रहते हैं। ऐसे में क्या अब पंजाब और हिमाचल प्रदेश की लोकसभा सीटों पर इसका असर देखने को मिल सकता है? ‘पंजाब और हरियाणा में 300 से ज्यादा डेरे हैं। इन डेरों को राजनीतिक दलों के द्वारा आश्रय दिया जाता रहा है। यह आज की बात नहीं है, पिछले दो दशकों से भी ज्यादा समय से इन डेरों का प्रभाव पंजाब, हरियाणा के साथ-साथ राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और यूपी के कुछ इलाकों में रहता है। अगर डेरा सच्चा सौदा के प्रभाव वाले इलाके की बात करें तो यह मालवा क्षेत्र में ज्यादा है। संगरूर इलाके में भी डेरा सच्चा सौदा के समर्थक असरदार साबित होते आए हैं। हालांकि, अब इनका ज्यादा प्रभाव नहीं बचा है।’ इस बीच गुरमीत राम रहीम की रिहाई पर कांग्रेस ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी है। पंजाब के पूर्व सीएम और कांग्रेस नेता चरणजीत सिंह ‘चन्नी’ ने कहा, ‘मैं इस मुद्दे पर टिप्पणी नहीं करना चाहता हूं, पिछले साल भी डेरा सच्चा सौदा प्रमुख को पैरोल देने पर हरियाणा की खट्टर सरकार चर्चा में आई थी। इसको लेकर काफी विवाद हुआ था और अदालत को हस्तक्षेप करना पड़ा था। ऐसे में अब देखना होगा कि लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण 1 जून को वोटिंग के दिन डेरा सच्चा सौदा समर्थकों का रुख किस तरफ रहेगा?

दिल्ली के राजनीतिक गलियारे में इंडिया गठबंधन की एक जून को होने वाली बैठक को लेकर भी तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों के द्वारा भी इसके अलग-अलग मायने निकाले जा रहे हैं। इंडिया गठबंधन के नेताओं से पूछने पर वह इस प्रश्न से कन्नी काट लेते हैं, लेकिन इशारों-इशारों में कह जाते हैं कि यह बैठक दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल के लिए महत्वपूर्ण है। ऐसे में लाख टके का सवाल यह है कि यह बैठक अरविंद केजरीवाल के इर्द-गिर्द घूमेगी या फिर इसके पीछे की वजह कुछ और है? आप के एक नेता की मानें तो दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के संपर्क में हैं और माना जा रहा है कि अरविंद केजरीवाल के आग्रह पर ममता भी इस मीटिंग में शामिल हो सकती हैं?

दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल को 2 जून को ही अब वापस तिहाड़ जाना होगा। स्वास्थ्य के आधार पर केजरीवाल को अंतरिम जमानत पर बाहर रहने की जो आस बनी थी, वह 29 मई को टूट गई। अंतरिम जमानत की अवधि 7 दिन और बढ़ाने की याचिका पर तुरंत सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया। ऐसे में अगर कोई किंतु-परंतु न हुआ तो 2 जून को अरविंद केजरीवाल तिहाड़ जेल के अंदर दोबारा से चले जाएंगे। लेकिन, इस दौरान इंडिया गठबंधन के नेता अरविंद केजरीवाल के साथ बंद कमरे में मुलाकात करेंगे। इस मुलाकात में वैसे तो कई मुद्दे हैं, लेकिन सबसे बड़ा मुद्दा जो रहेगा वह ममता बनर्जी को साथ लाने का। कांग्रेस नेता अधीर रंजन चैधरी के बयान से ममता असहज महसूस कर रही हैं। चैधरी ने पिछले दिनों कह दिया था कि ममता बनर्जी बीजेपी के संपर्क में हैं। (हिफी)

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

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