अरुणाचल में पेमाखांडू की जीत

अरुणाचल प्रदेश में भाजपा ने प्रचंड जीत दर्ज कर ली है। भाजपा ने अरुणाचल प्रदेश की 60 विधानसभा सीटों में से 46 सीट जीतकर लगातार तीसरी बार सत्ता में वापसी की है. भाजपा को 2019 की तुलना में चार अधिक सीटें मिली हैं।
सीमावर्ती राज्य अरुणाचल बहुत ही संवेदन शील है। इस पर चीन कुदृष्टि रख रहा है। यहां की विधान सभा के नतीजे सबसे पहले घोषित हो गये हैं। केन्द्र में सत्तारूढ़ दल की ही अरूणाचल में सरकार रहे, यही बेहतर रहता है। अरूणाचल प्रदेश में भाजपा ने जीत की हैट्रिक लगाते हुए साबित कर दिया कि इस राज्य की जनता को सुरक्षा और सुशासन का भरोसा वही दिला सकती है। इसमें मुख्यमंत्री पेमाखांडू की भूमिका को भी नजरंदाज नहीं किया जा सकता। राज्य की 60 सदस्सीय विधान सभा में मुख्यमंत्री पेमाखांडू समेत 10 उम्मीदवार पहले ही निर्विरोध निर्वाचित हो चुके थे। भाजपा ने 46 सीटों पर विजय प्राप्त की है जबकि उसकी सहयोगी नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) ने पांच सीटें जीती हैं। इस प्रकार भाजपा नीत गठबंधन राजग को 51 सीटें मिली हैं। कभी राज्य की सरकार चलाने वाली कांग्रेस को सिर्फ एक विधायक मिल पाया है। पीपुल्स पार्टी आफ अरूणाचल (पीपीए) को दो सीटें और एनसीपी को 3 सीटें मिली है। भाजपा को 54.57 फीसद मतदाताओं का समर्थन मिला और उसकी सहयोगी एनपीपी को 16.11 फीसद मतदाताओं ने वोट दिये हैं। इस प्रकार सीएम पेमाखांडू की जीत राज्य के विकास के आश्वासन पर हुई है। तीन निर्दलीय प्रत्याशी भी विजयी रहे हैं। तीन दशकों तक राज करने वाली कांग्रेस को वहां प्रत्याशी तक नहीं मिल पाये थे और सिर्फ 19 सीटों पर ही कांग्रेस ने प्रत्याशी खड़े किये थे। पेमाखांडू भी कांग्रेस के ही नेता हुआ करते थे।
भाजपा ने अरुणाचल प्रदेश में प्रचंड जीत दर्ज की कर प्रदेश की 60 विधानसभा सीटों में से 46 सीट जीतकर लगातार तीसरी बार सत्ता में वापसी की है। भाजपा को 2019 की तुलना में चार अधिक सीटें मिली हैं। वहीं, कांग्रेस की बुरी हालत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उसे 41 सीटों पर उम्मीदवार ही नहीं मिले। अरुणाचल प्रदेश की 60 विधानसभा सीटों में से 41 पर कांग्रेस ने अपने उम्मीदवार नहीं उतारे थे। 41 सीटों पर उम्मीदवार न जुटा पाना दर्शाता है कि कांग्रेस की स्थिति कितनी खराब हो चली है। वह भी तब, जब अरुणाचल में तीन दशक से अधिक समय तक कांग्रेस का ही कब्जा था। लोकसभा चुनाव से पहले आए नतीजों में अरुणाचल में भाजपा संग लड़ाई में कांग्रेस को महज एक सीट ही हाथ लगी है।
कांग्रेस नेता ऐन वक्त पर मैदान छोड़कर भाग गए। कई तो भाजपा में शामिल हो गए। कांग्रेस ने कुमार वाई को पूर्वी कामेंग जिले के बामेंग विधानसभा क्षेत्र से मैदान में उतारा था। कांग्रेस की तरफ से जीत का परचम लहराने वाले वह इकलौते उम्मीदवार हैं। इस तरह से कांग्रेस को अरुणाचल में यही एक सीट हाथ लगी है। टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक, कांग्रेस ने अरुणाचल प्रदेश चुनाव के लिए 35 उम्मीदवारों की लिस्ट तैयार की थी। इनमें से 10 ने नामांकन ही दाखिल नहीं किया। बाकी बचे उम्मीदवारों में से पांच ने अपना नाम वापस ले लिया। कानुबारी सीट से एक अन्य उम्मीदवार सोम्फा वांगसा ने नॉमिनेशन पेपर्स की स्क्रूटनी के बाद सीट सरेंडर कर दी और भाजपा में शामिल हो गए। कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों की मानें तो भाजपा के साथ कथित तौर पर मिलीभगत करने वालों को निशाना बनाकर पार्टी के कई सीनियर नेताओं को पहले ही बाहर का रास्ता दिखाया जा चुका है। इनमें 9 लोग ऐसे हैं, जिन्हें चुनाव लड़ने के लिए शॉर्टलिस्ट किया गया था, मगर वे चुनाव नहीं लड़े।
कांग्रेस के एक पदाधिकारी ने कहा, ‘इन उम्मीदवारों ने पार्टी को यह भी नहीं बताया कि वे चुनाव नहीं लड़ने जा रहे हैं। वे आखिरी क्षण तक कांग्रेस के टिकट के लिए लड़ते रहे, लेकिन बाद में पीछे हट गए।’ पीसीसी प्रमुख और अरुणाचल के पूर्व सीएम नबाम तुकी ने चुनावी मैदान से आश्चर्यजनक पलायन के लिए धनबल को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि पार्टी की अनुशासन समिति की सिफारिशों के अनुसार दलबदलुओं को निष्कासित किया जाता रहेगा. हम निस्संदेह निराश हैं, लेकिन हतोत्साहित नहीं हैं। हम हार के कारणों पर आत्मनिरीक्षण करेंगे और आने वाले दिनों में संगठन पर काम करेंगे। अरुणाचल प्रदेश में भाजपा को 46 सीटें मिली हैं। विधानसभा चुनाव में प्रचंड जीत हासिल करते हुए भारतीय जनता पार्टी ने विपक्षी दलों, विशेषकर कांग्रेस का सफाया कर दिया।
अरुणाचल के मुख्यमंत्री पेमा खांडू उन 10 उम्मीदवारों में से एक थे जिन्होंने बिना किसी मुकाबले के अपनी सीट जीती। इस प्रचंड जीत के साथ खांडू लगातार तीसरी बार राज्य की कमान संभालने के लिए तैयार हैं। पेमा खांडू अरुणाचल के पूर्व मुख्यमंत्री दोरजी खांडू के बेटे हैं। 2016 में सीएम के रूप में चुने जाने के बाद वह पूर्वोत्तर में बड़े नेता के रूप में उभरे।पेमा के पिता दोरजी खांडू की 2011 में एक हेलिकॉप्टर दुर्घटना में मृत्यु हो गई। खांडू ने तब प्रशंसा और पहचान हासिल की, जब उन्हें 2016 में देश के सबसे युवा मुख्यमंत्री के रूप में चुना गया। सितंबर 2016 में खांडू ने कांग्रेस से नाता तोड़ लिया और पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल में शामिल हो गए। इसी साल दिसंबर महीने में वह बीजेपी में शामिल हो गए।
चीन की सीमा से लगे तवांग के रहने वाले खांडू ने पहली बार 2011 में अपने पिता के निधन के कारण खाली हुई सीट से अरुणाचल प्रदेश
विधानसभा में प्रवेश किया था। इससे पहले वह 2000 की शुरुआत में कांग्रेस में शामिल हुए और 2005 में अरुणाचल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव और 2010 में तवांग जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बनाए गए थे। मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल में खांडू ने अरुणाचल के नागरिकों के लिए कई अभियान चलाए। उन्होंने जमीनी स्तर पर राज्य और केंद्र की प्रमुख कार्यक्रमों को हाइलाइट करने के लिए अरुणाचल राइजिंग अभियान शुरू किया था। सार्वजनिक पहुंच और शिकायत निवारण के लिए सरकार की पहल के रूप में उन्होंने भी राज्य में सरकार आपके द्वार पहल शुरू की थी। इस प्रकार पेमाखांडू ने जनता का विश्वास जीता। (हिफी)
(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)