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प्रियंका बनी सबसे कम उम्र की सांसद

बेंगलुरू। कर्नाटक की चिक्कोड से कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में जीत का परचम बुलंद करने वाली प्रियंका जारकीहोली सबसे कम उम्र की सांसद बनकर भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल कर ली है। हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव के चार जून को आए परिणाम में जीत हासिल करने वाली सबसे कम उम्र की प्रियंका (27) संसद के गलियारों की ओर कदम बढ़ाने वाली आदिवासी महिला बन गई हैं, उनकी यह उपलब्धि समुदाय और लिंग दोनों की दृष्टि से एक मील का पत्थर साबित हुई है।
लोकसभा के आए नतीजों में कांग्रेस उम्मीदवार प्रियंका ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रत्याशी अन्नासाहेब जोले पर प्रभावशाली जीत हासिल की। प्रियंका ने श्री जोले को 90,000 से अधिक मतों के अंतर से हराया। कांग्रेस उम्मीदवार ने कुल 7,13,461 मत हासिल किए, जो उनके निर्वाचन क्षेत्र में व्यापक समर्थन का प्रमाण है। सुश्री प्रियंका की राजनीतिक यात्रा उनके पारिवारिक विरासत निहित है। वह कर्नाटक के लोक निर्माण मंत्री सतीश जारकीहोली पुत्री हैं और राजनीति उनके खून में है।
कांग्रेस नेता प्रियंका ने हालांकि अपने प्रभावशाली परिवार की पहली महिला हैं जो चुनावी मैदान में उतरी हैं। उनकी जीत ने न केवल उनके परिवार की राजनीतिक विरासत को एक नया आयाम दिया है, बल्कि भविष्य की महिला उम्मीदवारों के लिए भी मार्ग प्रशस्त किया है। प्रियंका का चुनाव न केवल एक व्यक्तिगत जीत है, बल्कि भारतीय राजनीति में आदिवासी प्रतिनिधित्व के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। वह कर्नाटक में अनारक्षित सीट जीतने वाली पहली आदिवासी महिला हैं, जिन्होंने अपने समुदाय के लिए नई जमीन तैयार की है। चुनाव के बाद सुश्री प्रियंका ने अपने निर्वाचन क्षेत्र के विकास के लिए अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की। उन्होंने घोषणा की, “मैं उनकी अपेक्षाओं को पूरा करने और निर्वाचन क्षेत्र के समग्र विकास को सुनिश्चित करने का प्रयास करूंगी।” सुश्री प्रियंका ने कांग्रेस विधायकों और कार्यकर्ताओं को धन्यवाद दिया, जिन्होंने उनके अभियान का समर्थन किया। प्रियंका कर्नाटक से चुनी गई तीन महिला सांसदों में से एक हैं, जो राज्य के राजनीतिक क्षेत्र में लैंगिक समावेशन की दिशा में सकारात्मक बदलाव को उजागर करती हैं। उनका चुनाव भारतीय राजनीति में प्रतिनिधित्व में विविधता लाने की दिशा में एक व्यापक आंदोलन का प्रतीक है। सुश्री प्रियंका की ऐतिहासिक जीत ने न केवल पुरानी सारी मिथक को तोडा है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक मिसाल भी कायम की है।
एक युवा आदिवासी महिला से लेकर सांसद बनने तक का उनका सफर दृढ़ संकल्प और बाधाओं को तोड़ने की एक प्रेरक कहानी है। जैसे ही वह अपनी नई भूमिका में कदम रखेंगी, सभी की निगाहें उन पर होंगी क्योंकि वह अपने वादों को पूरा करने और अपने निर्वाचन क्षेत्र में एक ठोस बदलाव लाने की दिशा में काम करेंगी।

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