अखिलेश यादव ने रचा इतिहास

अक्तूबर 2022 में नेता जी के नाम से मशहूर मुलायम सिंह यादव का निधन हो गया। इस घड़ी में अखिलेश यादव ने पार्टी और परिवार को बहुत अच्छे से संभाला. दुख की इस घड़ी से निकलने के बाद अखिलेश यादव 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुट गए। उन्होंने पीडीए का समीकरण तैयार किया। पार्टी को नए सिरे से खड़ा किया। बहुत से फेरबदल किये। उन्होंने एक बार फिर समझौता किया.वो चुनाव से पहले बने इंडिया गठबंधन में शामिल हुए। गठबंधन ने कमाल किया। इसके बदौलत सपा अपना अब तक सबसे ऐतिहासिक प्रदर्शन करने में कामयाब हुई।
उत्तर प्रदेश की जनता ने 2012 में एक युवा नेता से जो उम्मीदें की थीं, वे पूरी नहीं हो पायीं। वह युवा नेता थे अखिलेश यादव जो बसपा से सत्ता छीनकर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे। उस समय एक साफ-सुथरी और विकासोन्मुख राजनीति की अपेक्षा की गयी थी। उस समय उनके परिवार का झगड़ा इतना बढ़ गया कि अखिलेश यादव के बारे में कोई पुख्ता राय नहीं बनायी जा सकी। हालांकि लखनऊ आगरा एक्सप्रेस वे का निर्माण उन्हीं के कार्यकाल में हो गया था लेकिन 2014 में जब भाजपा की कमान नरेन्द्र मोदी के हाथों में आयी, तब यूपी की राजनीति को समझना सबके वश में नहीं रह गया था। अखिलेश यादव भी अपरिपक्व फैसले लेने पर मजबूर हुए। हालांकि एक समय ऐसा आया था जब बसपा के साथ मिलकर अखिलेश ने गोरखपुर और फूलपुर के संसदीय उपचुनाव जीत कर भाजपा को पछाड़ा था लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा ने फायदा उठाकर सपा को कमजोर कर दिया। बसपा को 10 सांसद मिले थे जब कि सपा को सिर्फ पांच सांसद मिल पाये। इसबीच अखिलेश यादव चिंतन-मनन करते रहे और 2024 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने ऐसी रणनीति बनायी कि भाजपा के रणनीतिकार भी भौचक रह गये। राज्य की 80 सीटों में समाजवादी पार्टी को सबसे ज्यादा (37) सांसद मिले। इतना ही नहीं सपा ने अपनी सहयोगी पार्टी कांग्रेस को भी 6 सांसद दिलाये जिसको 2019 में सिर्फ एक सीट मिल पायी थी। उनकी सोशल इंजीनियरिंग ने कई मिथक भी तोड़ दिये हैं। सपा को अब सिर्फ यादवों और मुसलमानों की पार्टी नहीं कहा जा सकता। सपा पर लगा गुंडों की पार्टी का दाग भी अखिलेश यादव मिटाना चाहते हैं। बसपा प्रमुख मायावती भी अब सोच रही होंगी कि अखिलेश के साथ समझौता न करके उन्होंने कितनी बड़ी गलती की है। बसपा को इस बार एक भी सांसद नही मिला है।
सपा प्रमुख अखिलेश यादव को उनके कुछ करीबी दोस्त माइक्रोसाफ्ट के नाम से पुकारते हैं. यानी कि छोटा मुलायम। लोकसभा चुनाव के नतीजे आए तो अखिलेश यादव अपने इस नाम को चरितार्थ करते हुए नजर आए। यह पहला ऐसा चुनाव था, जिसमें अखिलेश यादव के साथ उनके पिता मुलायम सिंह यादव नहीं थे. इस चुनाव में समाजवादी पार्टी ने 37 सीटें जीतकर इतिहास रचा है। सपा ने इतनी बड़ी जीत अबतक दर्ज नहीं की थी।
मुलायम सिंह यादव के इस्तीफे के बाद 2000 में कन्नौज लोकसभा सीट पर उपचुनाव कराया गया था। कन्नौज में आयोजित एक जनसभा में मुलायम पहुंचे। उनके साथ अखिलेश यादव भी थे। सभा को संबोधित करते हुए मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश यादव को कन्नौज की जनता के सामने खड़ाकर कहा था कि इसे नेता बना देना। यह अखिलेश का पहला चुनाव था। वो जीते भी, इसके बाद उन्होंने लगातार तीन चुनाव कन्नौज से जीते। साल 2019 का लोकसभा चुनाव उन्होंने आजमगढ़ से जीता। कन्नौज में मिली जीत के बाद अखिलेश यादव राजनीति में जमते चले गए।
फिर आया 2012 के विधानसभा चुनाव का समय। इसके लिए अखिलेश यादव ने जमकर पसीना बहाया। पूरे प्रदेश को साइकिल से ही नाप दिया। चुनाव परिणाम आए तो सपा ने अकेले के दम पर बहुमत हासिल कर लिया। इससे बहुत से लोगों को लगा कि मुलायम सिंह यादव फिर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन होंगे। लेकिन राजनीति के अखाड़े के पुराने पहलवान मुलायम सिंह यादव ने सबको चैंकाते हुए अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा दिया। उनके इस फैसले ने कई लोगों को हैरान परेशान कर दिया। लेकिन कई लोगों ने इसे मुलायम सिंह यादव का परिपक्व फैसला बताया। पार्टी पर पकड़ मजबूत करने और प्रशासन के कामकाज को समझने के लिए यह जरूरी था। अखिलेश 38 साल की उम्र में उत्तर प्रदेश जैसे राज्य के मुख्यमंत्री बन गए। कुछ जानकार बताते हैं कि अखिलेश शाम पांच बजने के बाद ऑफिस से निकलकर मुख्यमंत्री आवास चले जाया करते थे और बाकी का समय परिवार के साथ बिताते थे। इसके बाद मुलायम के करीबी और अखिलेश के मंत्रिमंडल सहयोगियों ने मनमानी शुरू कर दी। बाद में तो यह कहा जाने लगा कि उत्तर प्रदेश में ढाई लोग मिलकर सरकार चला रहे है। कहने वालों का इशारा अखिलेश यादव,उनके चाचा शिवपाल सिंह यादव और मुलायम सिंह यादव के करीबी आजम खान की ओर था लेकिन बहुत जल्द ही अखिलेश यादव इस कहावत से बाहर आ गए। उन्होंने सरकार और पार्टी पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली। कार्यकाल के अंतिम दिनों में उन्होंने पार्टी पर पूरी तरह से कब्जा कर लिया। हालत यह हो गई कि अखिलेश के खिलाफ बगावत करने वाले उनके चाचा शिवपाल सिंह यादव ने भी 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले उनका नेतृत्व स्वीकार कर लिया। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में सपा ने उत्तर प्रदेश की 80 सीटों में केवल पांच सीट ही जीत पाई थी और 2019 में मायावती की बसपा से हाथ मिलाया। फिर भी अखिलेश केवल पांच सीट ही जीत पाए।
साल 2022 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने तीन अंकों में सीटें जीतीं। इससे पार्टी में उत्साह का संचालन हुआ। अखिलेश यादव 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुट गए। उन्होंने पीडीए का समीकरण तैयार किया। पार्टी को नए सिरे से खड़ा किया। बहुत से फेरबदल किये। उन्होंने एक बार फिर समझौता किया। वो चुनाव से पहले बने इंडिया गठबंधन में शामिल हुए। गठबंधन ने कमाल किया। इसके बदौलत सपा अपना अब तक सबसे ऐतिहासिक प्रदर्शन करने में कामयाब हुई। इसी के साथ अखिलेश में अब उत्तर प्रदेश में 2026-27 में होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारी करने लगे हैं।
(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर) (हिफी)