मिशन कांग्रेस थ्रो प्रियंका

कांग्रेस मंे नयी जान फूंकने की तैयारी दो दशक से चल रही है। श्रीमती सोनिया गांधी ने 2004 मंे पार्टी को गठबंधन की राजनीति से जोड़कर यूनाइटेड प्रोग्रेसिव एलायंस (यूपीए) बनाया था जिसने भाजपा से सत्ता छीन ली और लगातार 10 साल तक कांग्रेस नेतृत्व मंे ही सरकार चली। इस बीच गठबंधन चलता रहा लेकिन घटक दल बदलते रहे। कांग्रेस को 2014 मंे भाजपा ने नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व मंे सत्ता से बाहर किया। उसी समय से एक विलक्षण व्यक्तित्व की राजनीति मंे अहमियत हो गयी। कांग्रेस को प्रियंका गांधी वाड्रा की उसी समय जरूरत थी लेकिन किसी कारणवश उनको आगे नहीं लाया जा सका। इस बीच कांग्रेस का अंकगणित लगातार गिरता गया और 2019 के लोकसभा चुनाव मंे कांग्रेस के गढ़ रहे उत्तर प्रदेश मंे सिर्फ रायबरेली की सीट ही पार्टी को मिल पायी। राहुल गांधी अमेठी से पराजित हो गये। अब 2024 मंे कांग्रेस ने सपा के साथ गठबंधन कर यूपी मंे 6 सांसद पाये हैं। देश भर में विपक्षी दलों का एक महागठबंधन इंडिया के नाम से बना है जिसके तहत कांग्रेस को तमिलनाडु और महाराष्ट्र मंे सबसे ज्यादा सफलता मिली है। पूरे देश मंे कांग्रेस ने 99 सीटें जीती हैं। शतक बनाने के लिए प्रियंका गांधी वाड्रा को केरल के वायनाड से उपचुनाव लड़वाया जा रहा है जहां से उनके भाई राहुल गांधी ने इस्तीफा दिया है। यह रणनीति अच्छी है लेकिन प्रियंका गांधी को उत्तर प्रदेश मंे लौटना ही पड़ेगा अगर कांग्रेस ने 2029 की तैयारी अभी से शुरू कर दी है। माना जा रहा है कि कांग्रेस इंडिया गठबंधन के बैनर पर 99 सीटें जीती हैं तो 2029 मंे इंडिया गठबंधन 272 का आंकड़ा भी प्राप्त कर सकता है जो इस बार 235 पर अटक गया है। प्रियंका को यूपी मंे प्रतिनिधित्व देकर कांग्रेस उस कहावत को फिर चरितार्थ करेगी कि दिल्ली का रास्ता यूपी से होकर गुजरता है। हालंाकि 37 सीटें जीत कर सपा का लक्ष्य भी दिल्ली ही है। ममता बनर्जी, चन्द्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार का लक्ष्य भी दिल्ली है लेकिन ये सभी एक राज्य तक ही सीमित हैं।
प्रियंका गांधी अपने जीवन का पहला चुनाव लड़ रही हैं। सीट चुनी है दक्षिण भारत के केरल राज्य की वायनाड। वही वायनाड, जहां से राहुल गांधी दो बार सांसद का चुनाव जीत चुके हैं। राहुल के रायबरेली सीट रखने और वायनाड छोड़ने के बाद प्रियंका की एंट्री चुनावी राजनीति में हो रही है। वैसे तो राजनीति में कदम रखने वाला हर कार्यकर्ता चुनावी राजनीति के जरिए संसद पहुंचने का सपना देखता है लेकिन प्रियंका गांधी को यह मौका काफी देर से मिला है। प्रियंका गांधी वायनाड से यूं ही नहीं उतर रही हैं। इसके पीछे गांधी परिवार की बड़ी रणनीति है। दरअसल, प्रियंका गांधी राजनीति में सोनिया गांधी के प्रचार के जरिए जुड़ीं। उसके बाद राहुल गांधी के चुनावी कार्यक्रम की पूरी कमान उनके पास आ गई। इसके बाद वो अमेठी और रायबरेली की कर्ता धर्ता बन गईं। मां और भाई दोनों के चुनाव की बागडोर उनके ही हाथ में रही। सोनिया की उम्र ढलने और राहुल गांधी के राष्ट्रीय फलक पर उभरने के दौरान प्रियंका गांधी पूरी तरह अमेठी और रायबरेली पर ध्यान केंद्रित कर चुनाव लड़वाती रहीं।
उधर, केरल और वायनाड के लोगों ने एक सुर में मांग की कि राहुल अगर वायनाड छोड़ रहे हैं तो गांधी परिवार के ही किसी सदस्य को यहां से चुनाव लड़ना चाहिए। स्वाभाविक है की वो नाम प्रियंका का ही होता। वही हुआ। केरल और वायनाड ने 2019 और 2024 दोनों लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का जमकर साथ दिया। केरल के लोगों ने लोकसभा में सीटों से कांग्रेस की झोली भर दी। राहुल गांधी उस आधार को खोना नहीं चाहते। इसलिए भी प्रियंका गांधी को टिकट देना सियासी मजबूरी बन गई।
लोकसभा चुनाव 2029 के लिए कांग्रेस ने अभी से तैयारी शुरू कर दी। कांग्रेस पार्टी भले ही इंडिया गठबंधन के बैनर तले दिख रही हो लेकिन 99 सीटें जीतने के बाद उसे अपने दम पर अगले चुनाव में 272 दिखने लगा। यही वजह है की राहुल गांधी ने प्रियंका को चुनावी मैदान में उतारकर पूरे दमखम और दोगुनी ताकत से 2029 की तैयारी शुरू कर दी है। कांग्रेस ने इंडिया गठबंधन में एलायंस करके 328 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन सिर्फ 99 सीटों पर उसे जीत मिली। हालांकि, यह पिछले लोकसभा चुनाव से लगभग दोगुनी है। तब कांग्रेस को सिर्फ 52 सीटें मिली थीं। लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद कांग्रेस काफी उत्साहित नजर आ रही थी। हर ओर जीत के दावों की गूंज थी, लेकिन सरकार गठन के बाद कांग्रेस ने हार की समीक्षा करने का फैसला किया है। जिन राज्यों में पार्टी का प्रदर्शन बेहद खराब रहा है या जहां उसे शून्य सीटें मिली हैं, उन पर ज्यादा फोकस रहेगा। इसके लिए पार्टी ने राज्यवार समितियों का गठन किया है। पैनल रिपोर्ट सौंपेंगे, उसके बाद पार्टी इस पर आखिरी फैसला लेगी।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कर्नाटक, तेलंगाना और हिमाचल प्रदेश सहित कुछ राज्यों में पार्टी के बेहद खराब प्रदर्शन का आकलन करने के लिए छह समितियों का गठन किया है। इन सभी राज्यों में पार्टी सत्ता में है। मध्य प्रदेश, दिल्ली और उत्तराखंड पर भी पार्टी का फोकस रहेगा, क्योंकि इन राज्यों में कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली थी। एआईसीसी संगठन महासचिव के सी वेणुगोपाल ने कहा, कांग्रेस अध्यक्ष ने जो पैनल तय किया है, उनका काम हार की वजह तलाशना है। मध्य प्रदेश में हार की वजह तलाशने के लिए महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण, सप्तगिरी उलाका और जिग्नेश मेवाणी को जिम्मेदारी दी गई है। तीन सदस्यीय यह पैनल राज्य में पार्टी को कोई भी सीट नहीं मिलने के कारणों पर गौर करेगा। छत्तीसगढ़ के लिए जो समिति बनाई गई है, उसमें पूर्व केंद्रीय मंत्री वीरप्पा मोइली और राजस्थान के पूर्व मंत्री हरीश चैधरी शामिल हैं। पार्टी के वरिष्ठ नेता अजय माकन और तारिक अनवर ओडिशा में हार के कारणों का आकलन करेंगे। (हिफी)
(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)