सम-सामयिक

सांस्कृतिक बौद्धिक विरासत है नालंदा विश्वविद्यालय

हमारी संस्कृति पर कितना सुनियोजित तरीके से प्रहार कर विदेशी आक्रान्ताओं ने सांप्रदायिक उन्माद के चलते नष्ट भ्रष्ट करने की कोशिश की, नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहर आज भी इस बर्बादी के गवाह हैं। लेकिन अब समय बदल रहा है और 800 साल के लंबे इंतजार के बाद भारत की विरासत और दुनिया के पुराने शिक्षा मंदिर नालंदा विश्वविद्यालय का कायाकल्प हो चुका है। नालंदा विश्वविद्यालय अपने नए स्वरुप में उभरकर सामने आया है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 1600 साल पुराने नालंदा विश्वविद्यालय के नए परिसर का उद्घाटन 19 जून को किया है। बता दें, नालंदा विश्वविद्यालय का 1600 साल पुराना इतिहास रहा है। नालंदा विश्वविद्यालय तब से है जब ऑक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज जैसे यूनिवर्सिटी अस्तित्व में भी नहीं आए थे।
नालंदा यूनिवर्सिटी का निर्माण गुप्त काल में 5वीं सदी में किया गया था। 7वीं सदी तक नालंदा यूनिवर्सिटी काफी प्रसिद्धि हासिल कर चुका था। नालंदा यूनिवर्सिटी बौद्ध मठ का हिस्सा था, जिसकी सीमा 57 एकड़ जमीन में फैली हुई थी। नालंदा यूनिवर्सिटी को ज्ञान का भंडार कहा जाता था। यहां इतनी किताबें थीं, जिसे गिन पाना भी मुश्किल हो। 12वीं शताब्दी में बख्तियार खिलजी ने इसे जला दिया था। आज कैम्ब्रिज और ऑक्सफोर्ड जैसी यूनिवर्सिटी का बहुत नाम है, लेकिन इन विश्वविद्यालयों के आने से 600 साल पहले नालंदा यूनिवर्सिटी बन चुका था।

यहां धार्मिक ग्रंथों के अलावा लिट्रेचर, थियोलॉजी, लॉजिक, मेडिसिन, फिलोसॉफी, एस्ट्रोनॉमी जैसे विषय का गहन अध्ययन कराया जाता था। कहा जाता है कि नालंदा यूनिवर्सिटी में जिन विषयों को पढ़ाया जाता था, उन विषयों के बारे में दुनिया के अन्य किसी विश्वविद्यालयों में नहीं पढ़ाया जाता था। इस विश्वविद्यालय को लेकर कई कहानियां कही जाती हैं। इनमें से एक ये है कि जब बख्तियार खिलजी बीमार पड़ा था तो उसने यहीं पर अपना इलाज कराया था, लेकिन उसे अपने राज्य के नीम हकीम के नाकाम होने और एक हिन्दू वैद्य के कामयाब होने पर द्वेष भाव पैदा हुआ और उसने अपने लाव लश्कर के साथ इस विश्व शिक्षा केंद्र पर हमला कर दिया और पूरी यूनिवर्सिटी में आग लगा दी। महीनों तक यूनिवर्सिटी जलती रही।

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नालंदा विश्वविद्यालय के नए परिसर का उद्घाटन किया है। इस मौके पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी मौजूद रहे। बता दें, नालंदा यूनिवर्सिटी दुनिया के पुराने विश्वविद्यालयों में से एक है। विश्वविद्यालय का खास इतिहास रहा है।नालंदा विश्वविद्यालय ऑक्सफोर्ड और कैम्ब्रीज से 600 साल पुराना है। यहां ऐसे विषयों को पढ़ाया जाता है, जिनको दुनिया में अन्य कहीं नहीं पढ़ाया जाता था। भारत की ये धरोहर बख्तियार खिलजी के भेंट चढ़ गई। इस यूनिवर्सिटी में करीब 300 से ज्यादा कमरें थे। इसके अलावा 7 बड़े-बड़े हॉल भी थे। यहां की लाइब्रेरी सबसे खास थी।
कहा जाता है कि नालंदा विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी नौ मंजिल की थी, जिसका नाम धर्मगूंज था। 5वीं सदी में गुप्त काल के शासक सम्राट गुप्त प्रथम ने 5वीं सदी में इसका निर्माण कराया था। हालांकि, 12वीं सदी में बख्तियार खिलजी ने इसको पूरी तरह से बर्बाद कर दिया था। खिलजी ने इस विश्व विद्यालय में आग लगवा दी। यहां की लाइब्रेरी में इतनी किताबें थीं कि तीन महीने तक ये जलता रहा। 7वीं सदी तक नालंदा यूनिवर्सिटी काफी प्रसिद्धि हासिल कर चुका था। नालंदा यूनिवर्सिटी बौद्ध मठ का हिस्सा था, जिसकी सीमा 57 एकड़ जमीन में फैली हुई थी।

20 देशों से स्टूडेंट्स पढ़ने आते थे। यहां धार्मिक ग्रंथों के अलावा लिट्रेचर, थियोलॉजी, लॉजिक, मेडिसिन, फिलोसॉफी, एस्ट्रोनॉमी जैसे विषयों का गहन अध्ययन कराया जाता था। इस वजह से करीब 20 देशों के स्टूडेंट्स यहां पढ़ने के लिए आया करते थे। करीब 10 हजार से ज्यादा स्टूडेंट्स यहां पढ़ने के लिए आया करते थे।

आर्यभट्ट ने नालंदा विश्वविद्यालय का नेतृत्व किया था। यहां के विद्वान और सर्वश्रेष्ठ प्रोफेसर चीन, कोरिया, जापान, इंडोनेशिया और श्रीलंका जैसे देशों में बौद्ध शिक्षाओं और दर्शन के प्रचार के लिए भेजे जाते थे। यहां की लाइब्रेरी में 90 लाख से ज्यादा हस्तलिखित, ताड़-पत्र पांडुलिपियां थीं।

नालंदा यूनिवर्सिटी को ज्ञान का भंडार कहा जाता था। यहां इतनी किताबें थीं, जिसे गिन पाना भी मुश्किल हो। 12वीं शताब्दी में बख्तियार खिलजी ने इसे जला दिया था। आज कैम्ब्रिज और ऑक्सफोर्ड जैसी यूनिवर्सिटी का बहुत नाम है, लेकिन इन विश्वविद्यालय के आने से 600 साल पहले नालंदा यूनिवर्सिटी बन चुका था। विश्वविद्यालय में 6 रिसर्च सेंटर हैं जिनमें बौद्ध अध्ययन, दर्शन और तुलनात्मक धर्म स्कूल ऐतिहासिक अध्ययन स्कूल पारिस्थितिकी और पर्यावरण अध्ययन स्कूल और सतत विकास और प्रबंधन स्कूल शामिल हैं।प्राचीन नालंदा के खंडहरों में मठ और शिक्षण संस्थान के पुरातात्विक अवशेष शामिल हैं। इसमें स्तूप, मंदिर, विहार (आवासीय और शैक्षणिक भवन) तथा प्लास्टर, पत्थर और धातु से बनी महत्वपूर्ण कलाकृतियां शामिल हैं। नालंदा भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय है।

पीएम मोदी ने एक पोस्ट में लिखा, यह हमारे शिक्षा क्षेत्र के लिए बहुत खास दिन है। आज राजगीर में नालंदा विश्वविद्यालय के नए परिसर का उद्घाटन किया जाएगा। नालंदा का हमारे गौरवशाली अतीत से गहरा नाता है। यह विश्वविद्यालय निश्चित रूप से युवाओं की शैक्षिक आवश्यकताओं को पूरा करने में बहुत मददगार साबित होगा।

नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना पांचवीं शताब्दी में हुई थी जहां दुनियाभर से छात्र अध्ययन के लिए आते थे। विशेषज्ञों के अनुसार, 12वीं शताब्दी में आक्रमणकारियों द्वारा नष्ट किए जाने से पहले यह प्राचीन विश्वविद्यालय 800 वर्षों तक फलता-फूलता रहा।नए विश्वविद्यालय ने 2014 में 14 छात्रों के साथ एक अस्थायी स्थान से काम करना शुरू किया। विश्वविद्यालय के नये परिसर का निर्माण कार्य 2017 में शुरू हुआ। भारत के अलावा इस विश्वविद्यालय में जिन 17 अन्य देशों की भागीदारी है उनमें ऑस्ट्रेलिया, बांग्लादेश, भूटान, ब्रूनेई दारुस्सलाम, कंबोडिया, चीन, इंडोनेशिया, लाओस, मॉरीशस, म्यांमार, न्यूजीलैंड, पुर्तगाल, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया, श्रीलंका, थाईलैंड और वियतनाम शामिल हैं।

भारत की सांस्कृतिक विरासत को पुनर्जीवित करने के लिए नालंदा विश्वविद्यालय का पुनर्निर्माण मील का पत्थर साबित होगा। (हिफी)

(मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)

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