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लंबे इंतजार के बाद भी पूरी नहीं हुई नौकरी में आरक्षण की मुराद

देहरादून। धामी सरकार राज्य आंदोलनकारियों को सरकारी नौकरी में 10 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण का लाभ देना चाहती है। इसके लिए इसी साल फरवरी में सरकार ने प्रवर समिति की सिफारिशों को मानते हुए विधेयक कुछ संशोधनों के साथ राजभवन भेजा, जो एक बार फिर लटक गया है। पिछले चार माह से राजभवन विधेयक पर निर्णय नहीं ले पाया, जिससे राज्य आंदोलनकारियों और उनके आश्रितों की लंबे इंतजार के बाद भी नौकरी में आरक्षण की मुराद पूरी नहीं हो पाई है। हालांकि, राजभवन से इसमें देरी की एक वजह लोकसभा चुनाव और राज्यपाल के नैनीताल में होने बताया गया है। विस से इस साल फरवरी में यूसीसी विधेयक पास करने के साथ चिह्नित राज्य आंदोलनकारियों और उनके आश्रितों को राजकीय सेवा में आरक्षण विधेयक 2023 संशोधन के साथ पारित किया गया था। यूसीसी को राजभवन से मंजूरी मिल चुकी है, लेकिन राज्य आंदोलनकारियों को नौकरी में आरक्षण का विधेयक राजभवन में लंबित है। इस विधेयक को इससे पहले आठ सितंबर 2023 को सदन में पेश किया गया था, लेकिन कुछ सदस्यों ने विधेयक के प्रावधानों में संशोधन के लिए इसे प्रवर समिति को भेजने की मांग की थी। राज्य आंदोलनकारियों के मुताबिक, एनडी तिवारी सरकार ने वर्ष 2004 में राज्य आंदोलनकारियों को नौकरी में 10 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण का शासनादेश जारी किया था।
तब दो शासनादेश हुए थे। पहला समूह ग और घ के लिए जिसमें बिना परीक्षा के सीधे नियुक्ति थी। इसके लिए शर्त थी कम से कम सात दिन जेल में रहे हों या घायल हुए हों। दूसरा सात दिन से कम की जेल या घायल इनके लिए राज्याधीन सेवाओं में 10 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण की व्यवस्था की गई थी। इस शासनादेश के बाद करीब 1,700 कर्मचारी, आंदोलनकारी कोटे से नौकरी में लगे हैं। वर्ष 2018 में हाईकोर्ट ने इस शासनादेश को रद्द कर दिया था। वरिष्ठ राज्य आंदोलनकारी रविंद्र जुगरान के मुताबिक, तत्कालीन त्रिवेंद्र सरकार ने अधिसूचना जारी कर आदेश को रद्द कर दिया था, जबकि होना यह चाहिए था कि सरकार को कोर्ट के आदेश को रद्द कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट जाना चाहिए था या फिर विस में विधेयक लाना चाहिए था। हालांकि, हरीश रावत सरकार का विधेयक वर्ष 2016 से राजभवन में लंबित था।

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