क्रिमिनल लाॅ में गुलामी की निशानी मिटी

एक जुलाई से तीन नए क्रिमिनल लॉ लागू हो गये हैं। इसी के साथ 1860 में बनी इंडियन पीनल कोड (आईपीसी) की जगह भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) ने ली है। भारतीय न्याय संहिता में कई अपराधों में कानून को पहले से ज्यादा सख्त कर दिया गया है। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता अपराधिक प्रक्रिया संहिता को रिप्लेस करेगी। इसमें अब 533 धाराएं रहेंगी। 160 धाराओं को बदल दिया गया है, 9 नई धाराएं जोड़ी गई हैं और 9 धाराओं को निरस्त किया गया है।
भारतीय न्याय संहिता भारतीय दंड संहिता को स्थानांतरण करेगी। इसमें 511 धाराओं के स्थान पर अब 356 धाराएं होंगी। 175 धाराओं में बदलाव किया गया है और 8 नई धाराएं जोड़ी गई और 22 धाराओं को निरस्त किया गया है। भारतीय साक्ष्य विधेयक साक्ष्य अधिनियम को रिप्लेस करेगा। इसमें पहले की 167 के स्थान पर अब 170 धाराएं होंगी, 23 धाराओं में बदलाव किया गया है, 1 नई धारा जोड़ी गई है और 5 धाराएं निरस्त की गई हैं।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि ये तीनों पुराने कानून गुलामी की निशानी से भरी हुए थी, इन्हें ब्रिटेन की संसद ने पारित किया था, कुल 475 जगह गुलामी की इन निशानियों को समाप्त कर नए कानून लेकर आए हैं। कानून में दस्तावेजों की परिभाषा का विस्तार कर इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल रिकॉर्ड्स, ई-मेल, सर्वर लॉग्स, कम्प्यूटर, स्मार्ट फोन, लैपटॉप्स, एसएमएस, वेबसाइट, लोकेशनल साक्ष्य, डिवाइस पर उपलब्ध मेल, मैसेजेस को कानूनी वैधता दी गई है। पुलिस प्राथमिक से केस डायरी, केस डायरी से चार्जशीट, चार्जशीट से जजमेंट तक की सारी प्रक्रिया को डिजिटलाइज किया गया है।
भारतीय दंड संहिता में 511 धाराएं थीं, लेकिन अब धाराएं 358 रह गई हैं। संशोधन के जरिए इसमें 20 नए अपराध शामिल किए हैं, तो 33 अपराधों में सजा अवधि बढ़ाई है। 83 अपराधी मामले में जुर्माने की रकम भी बढ़ाई है। 23 अपराधों में अनिवार्य न्यूनतम सजा का प्रावधान है।
छह अपराधों में सामुदायिक सेवा की सजा का प्रावधान किया गया है। रेप, गैंगरेप और चाइल्ड किडनैपिंग से जुड़े अपराधों में सजा सख्त कर दी गई है। कुछ अपराध ऐसे हैं, जिनमें अगर उम्रकैद की सजा सुनाई जाती है तो फिर दोषी जेल से जिंदा बाहर नहीं आ सकेगा। धारा 65- भारतीय न्याय संहिता की धारा 65 के तहत, अगर किसी व्यक्ति को 16 साल से कम उम्र की किसी लड़की से दुष्कर्म के मामले में दोषी ठहराया जाता है, तो उसे कम से कम 20 साल की जेल की सजा हो सकती है। सजा को उम्रकैद तक भी बढ़ाया जा सकता है और ऐसे में दोषी को जिंदा रहने तक जेल में रहना होगा। धारा 66- अगर दुष्कर्म के दौरान किसी महिला की मौत हो जाती है या फिर वो कोमा जैसी अवस्था में पहुंच जाती है, तो ऐसे मामलों में दोषी को कम से 20 साल की सजा होगी, जिसे उम्रकैद तक बढ़ाया जा सकेगा। इस अपराध में भी उम्रकैद की सजा होने पर दोषी जिंदा नहीं बाहर आ सकेगा। धारा 70- ये धारा गैंगरेप से जुड़ी है। इसी धारा में नाबालिग से दुष्कर्म के अपराध के लिए भी सजा का प्रावधान किया गया है। दोनों ही मामलों में गैंगरेप के सभी दोषियों को कम से कम 20 साल की सजा होगी। इसमें जुर्माने का प्रावधान है, जो पीड़िता को दिया जाएगा। इसके अलावा सजा को उम्रकैद तक बढ़ाया जा सकेगा, जिसमें दोषी को जिंदा रहने तक जेल में ही रहना होगा। धारा 71- अगर किसी व्यक्ति रेप या गैंगरेप से जुड़े किसी मामले में दोषी ठहराया जा चुका हो और फिर से इसी अपराध में दोषी करार दिया जाता है तो उसे जिंदा रहने तक उम्रकैद की सजा काटनी होगी।
धारा 104- उम्रकैद की सजा काट रहा दोषी अगर किसी की हत्या करता है तो उसे सजा-ए-मौत या फिर उम्रकैद की सजा सुनाई जा सकती है। इस अपराध में भी उम्रकैद की सजा मिलने पर दोषी जिंदा बाहर नहीं आ सकेगा। धारा 109- इस धारा के सब-सेक्शन 2 के तहत, अगर हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहा कैदी किसी व्यक्ति को नुकसान पहुंचाता है तो उसे सजा-ए-मौत या फिर उम्रकैद की सजा हो सकती है। उम्रकैद की सजा होने पर कैदी को जिंदगी भर जेल में ही रहना होगा।
धारा 139- अगर कोई व्यक्ति किसी बच्चे का अपहरण उससे भीख मंगवाने के लिए करता है तो दोषी पाए जाने पर उसे 10 साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है। धारा 139(2) के तहत, अगर भीख मांगने के मकसद से बच्चे को अपंग किया जाता है तो फिर दोषी को जीवनभर के लिए उम्रकैद की सजा काटनी होगी। धारा 143- मानव तस्करी से जुड़े अपराध के लिए सजा का प्रावधान करती है। अगर कोई व्यक्ति एक से ज्यादा बार किसी बच्चे की तस्करी में शामिल होने का दोषी पाया जाता है तो उसे जिंदगीभर के लिए उम्रकैद की सजा सुनाई जाती है। धारा 143(7) के तहत अगर कोई सरकारी सेवक या पुलिसकर्मी किसी व्यक्ति की तस्करी में शामिल होने का दोषी पाया जाता है तो उसे भी जीवनभर के लिए उम्रकैद की सजा सुनाई जाती है। आमतौर पर ये माना जाता है कि उम्रकैद की सजा 14 साल या 20 साल की होती है। लेकिन ऐसा नहीं है। 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में साफ कर दिया था कि उम्रकैद की सजा का मतलब आजीवन कारावास से है। यानी, अगर किसी दोषी को उम्रकैद की सजा मिली है तो उसे जिंदा रहने तक जेल में रहना होगा। हालांकि, कोर्ट का काम सिर्फ सजा सुनाना है और उस सजा को एग्जीक्यूट करने का काम राज्य सरकार का है। कानूनन अगर किसी कैदी को उम्रकैद की सजा मिली है तो उसे कम से कम 14 साल की सजा काटनी होगी। उम्रकैद की सजा पाया कोई कैदी 14 साल जेल में काट लेता है तो उसके केस को सेंटेंस रिव्यू कमेटी के पास भेजा जाता है। कैदी के बर्ताव को देखते हुए कमेटी उसकी सजा को कम कर सकती है। यही कारण है कि उम्रकैद की सजा पाया कोई कैदी 14 या 20 साल में छूट जाता है।लेकिन भारतीय न्याय संहिता में जिन अपराधों में जिंदा रहने तक उम्रकैद की सजा काटने का प्रावधान है, उनमें कैदी की सजा को माफ नहीं किया जा सकेगा।
आईपीसी की धारा 124 राजद्रोह से जुड़े मामलों में सजा का प्रावधान रखती थी। नए कानूनों के तहत राजद्रोह को एक नया शब्द देशद्रोह मिला है यानी ब्रिटिश काल के शब्द को हटा दिया गया है। भारतीय न्याय संहिता में अध्याय 7 में राज्य के विरुद्ध अपराधों की श्रेणी में देशद्रोह को रखा गया है।
इसी प्रकार आईपीसी की धारा 144- घातक हथियार से लैस होकर गैरकानूनी सभा में शामिल होना के बारे में थी। इस धारा को भारतीय न्याय संहिता के अध्याय 11 में सार्वजनिक शांति के विरुद्ध अपराध की श्रेणी में रखा गया है। अब भारतीय न्याय संहिता की धारा 187 गैरकानूनी सभा के बारे में है।
अभी पुलिस अभियोजन वकीलों और जजों को नए कानून और प्रक्रिया संहिता के बदलाव को समझना जांचना और लागू करना भी कम मुश्किल नहीं है। इसके लिए सरकार गोष्ठियों व अन्य माध्यमों से जागरूकता व प्रशिक्षण दे रही है। (हिफी)
(मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)